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गोस्वामी तुलसीदास जी और माता रत्नावली

24 फरवरी 2022

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गोस्वामी तुलसीदास जी और माता रत्नावली 

गोस्वामी तुलसीदास जी अर्थात रामबोला के बारे में आज शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। उन्हें राम बोला इसी लिये कहा जाता था क्योंकि उन्होंने जन्म लेते ही राम शब्द का उच्चारण किया था। जन्म के कुछ समय पश्चात ही माता के देहांत हो जाने से सब उन्हें श्राप समझने लगे। उनकी दाई उन्हें पालने लगी। जब ये पाँच वर्ष के हुए तो दाई माँ भी एक सर्प के काटने से परलोक सिधार गईं। इन्हें इनके गुरु ने पाल-पोष कर बड़ा किया। राम की भक्ति में लीन रामबोला विवाह नहीं करना चाहते थे। किन्तु गुरु की आज्ञा ईश्वर आज्ञा तुल्य समझ कर रत्नावली नाम की कन्या से इन्होंने विवाह कर लिया। 

विवाह के उपरांत ये पत्नी और उसके प्रेम में इतने खो गये कि राम महिमा को घर-घर पहुँचाने के अपने उद्देश्य को भी भूल गए। इन्हें रत्नावली के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता था। ये पूरी तरह से मोहग्रस्त हो गये। वो कहते हैं न कि भगवान बडे दयालू हैं। वो अपने भक्तों को कभी भी इन संसारी दलदलों में फंसने नहीं दे सकते। 

भगवान राम की प्रेरणा से एक बार रत्नावली अपने भाई के साथ तुलसीदास जी के पीछे से मायके चलीं गईं। तुलसीदास जी को जब पता चला तो वे घनघोर बारिश में नदी नालों को पार करते हुए रात में ही ससुराल जा पहुँचे। दरवाजे पर रात में दरवाजा खटखटाने की हिम्मत न हुई और खिडकी पर लटके साँप की पूँछ को रस्सी समझ कर रत्नावली के कक्ष में प्रवेश कर गये। रत्नावली पहले तो अपने प्रति पति प्रेम को समझ कर बहुत खुश हुईं, किन्तु जब उन्हें पता चला कि वे साँप को रस्सी समझ कर ऊपर आये हैं तो अनिष्ट की आशंका से उनका मन बुरी तरह से काँप गया और उन्हें बहुत क्रोध आया। 

वे क्रोध में ही कहने लगी, कि "जिस शरीर की चाह ने आपको इतना पागल बना दिया है, उसका यौवन मात्र कुछ वर्ष का है। यदि इस शरीर से इस चर्म को हटा दिया जाये तो तो यही शरीर इतना वीभत्स लगता है कि भय भी कँम्पायमान हो जाये। आप इस शरीर की लालसा में साँप को रस्सी समझ कर खिड़की से चढ़ आये। यदि इतना ही प्रेम और ऐसी ही चाह आपने भगवान राम के लिए रखी होती तो आज आप उन्हें प्राप्त कर लेते।"

पत्नी के मुँह से ऐसे कठोर शब्द सुनकर पहले तो उनका पुरुषत्व के अहम को बहुत गहरी ठेस लगी और वे तुरंत ही वहां से निकल गये। जब उनका क्रोध कुछ कम हुआ तो उन्होंने सोचा कि मेरी पत्नी तो सच में ही वो देवी है जिसने अपने सुख को त्याग कर मेरा उद्धार करना अधिक श्रेष्ठ समझा। उन्होंने पत्नी के इस त्याग का सम्मान करते हुए भगवान राम की खोज का निश्चय कर लिया। शीघ्र ही हनुमान जी की कृपा से चित्रकूट में उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए। भगवान राम की आज्ञा, हनुमान जी की प्रेरणा और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्होंने काशी में रामचरितमानस का अवधी भाषा में लेखन आरम्भ किया। उस समय माता रत्नावली ने उनके लेखन में बहुत सहयोग किया। वे दिया, स्याही, कलम आदि सुविधाओं का पूरा ध्यान रखती थीं। अपने पति को राम सेवा में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आने देती थीं। रामचरित मानस के लेखन में उनका सहयोग अतुलनीय है। 

रामचरित मानस पर साक्षात भगवान शिव ने अपनी छाप लगाई। जब इसकी तुलना दूसरे ग्रंथों से की गई तो रामचरित मानस स्वयं ही उठ कर सबसे ऊपर आ गई। ये सब राम नाम की महिमा ही थी। 

एक किस्सा उनका और सुनने में आता है कि एक बार वे भक्तराज सूरदास से मिलने बृज में आये। भक्त सूरदास कहने लगे कि "आप अपने राम जी के दर्शन तो कई बार कर चुके होंगे। आइये, आज मैं आपको अपने मुरली मनोहर के दर्शन करवाता हूँ।" वे उन्हें लेकर कृष्ण मन्दिर आ गये। भगवान कृष्ण की टेढी और अनोखी छवि देख कर तुलसीदास जी बहुत प्रेम से मुस्कुराये और भगवान से परिहास करते हुए कहने लगे.... 

"कहा कहूँ छबि आपकी, भले बिराजे नाथ। 
तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुस बान लेओ हाथ॥"

तुलसी जी की वाणी में केवल ठाकुर जी से परिहास करते हुए अनुनय-विनय थी। उसमें अहंकार  लेशमात्र भी नहीं था। भगवान ने अपने भक्त की इच्छा का सम्मान करते हुए तुरंत ही राम सीता के रूप में परिवर्तित हो गये। भगवान की बदली हुई छवि देख कर सूरदास जी समझ गये कि भक्त के वश में हैं भगवान और हँसते हुए कहने लगे..... 

"कित मुरली, कित चन्द्रिका, कित राधे जू कौ साथ। 
तुलसीदास के कारणै, श्रीकृष्ण बने रघुनाथ ॥" 

ये कहते हुए उनकी आँखों में प्रेमाश्रु छलक आये। ऐेसे हैं ये निश्छल और अनन्य भक्त, ऐसी है इनकी अलौकिक भक्ति और ऐसे हैं इनके निराले भगवान..... जो अपने भक्त के परिहास को भी उसकी इच्छा समझ तुरंत पूरी कर देते हैं। 

जय जय श्री सीता राम 🙏🏻 🌹 🙏🏻 
जय जय श्री राधे 🙏🏻 🌷 🙏🏻 

✍🏻 राधा श्री शर्मा 


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