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सुरीली मनसा - लोकगीत और उनके अर्थ

14 दिसम्बर 2021

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सुरीली मनसा - लोकगीत और उनके अर्थ

दिनाँक — १४ / १२ / २०२१

वार — मंगलवार

राधे राधे सुरीली 🙏🏻 🌹 🙏🏻

आओ, बैठो, क्या पियोगी? चाय या सूप? हाँ, सूप ही ठीक रहेगा। क्या बात है सखी, तुम तो बहुत सयानी हो गई हो। 😊

अच्छा सुरीली, एक बात तो बताओ? तुम कोई लोकगीत गुनगुना रही हो क्या? कुछ सुनी हुई धुन लग रही है। अरे ये तो वो है *बाजी बंसी मेरे मोहन की कहीं बाजी बंसी*। देखा! हमने तुम्हारे गुनगुनाने से पहचान लिया। अच्छा! तो ये बात है। तुमने सुबह इसे हमारे ही मुँह से सुना था।

अरे सुरीली, पता है क्या? हम इसका अर्थ निकालने की कोशिश कर रहे थे। हाँ, बताते हैं कि हमने क्या अर्थ निकाला। इसमें एक नवयुवती के हृदय की व्यथा है सखी। देखो! वो नवयुवती अपने प्रेमी से मिलने के लिए व्याकुल है और उसका प्रेमी उसे बार-बार आवाज दे रहा है। वो पनघट का बहाना बनाकर घर से निकलती है और रास्ते में समाज और लोक मर्यादा के विषय में सोचती है। वो सोचती है कि मैं अपने प्रीतम से मिलने कैसे जाऊँ क्योंकि मेरे ऊपर लाज का पहरा है। पहला पहरा तो मेरे माता-पिता का है। दूसरा पहरा मेरे बडे बुजुर्गों का है। तीसरा पहरा मेरे ससुराल वालों का है और चौथा पहरा मेरी आँखों का है। इन चार पहरों को तोड़ कर मैं जाऊँ या ना जाऊँ। उसकी इसी मनःस्थिति को दर्शाता हुआ ये लोकगीत है।

हाँ सुरीली, अब दूसरा लोकगीत जिसके बोल हैं *मेरी सास की भरी टोकनी, सरधा होय तो उठा दे। छोरा पानी ना प्याउंगी, मैं परदेसी की नारी*। ये हमारे हरियाणे का काफी प्रचलित लोकगीत है। जिसका अर्थ है एक स्त्री पानी भरने के लिए कुए पर जाती है। वहाँ उसका पति आ जाता है। वो उसे कहती है कि मुझे ये उठा दे। तो वो उसे छेड़ने लगता है और उसका हाथ पकड लेता है। जिस पर वो उसे समाज और अपने सास ससुर और ननद की दुहाई देती है और हाथ छोड़ने की विनती करती है।

पता है सखी, उस पर उसका पति कहता है कि तुझसे कोई कुछ नहीं कहेगा, तू मेरी प्रेम निशानी मेरी घड़ी ले जा। अपने पति की आवाज सुनकर वो तुरंत घूंघट हटा कर देखती है तो उसे बहुत गुस्सा आता है। वो उससे पूछती है कि मुझे इतना क्यों सताया? तब वो उसे कहता है कि मैं तो बाहर रहता हूँ। इसलिए तेरे सत्य धर्म की परीक्षा ले रहा था। तू उसमें खरी उतरी। इस तरह वो उसके साथ घर चला गया।

अब सखी, जो इनके अर्थ हैं, सो तो सही है। पर नारी जीवन की ये कैसी विडंबना है कि लोक लाज, मर्यादा, समाज सभी का मान रखती है। पर जब उसी समाज पर उसके  लाज और धर्म को बचाने का उत्तरदायित्व आता है तो वो उसे अपमानित होने के लिए अकेला छोड़ देता है। अपितु उसके ऊपर उँगली उठाते हुए भी उसके हाथ नहीं कांपते। 

सुरीली, दूसरे गीत में बाहर रहने वाला पुरुष अपनी उस पत्नी की परीक्षा लेता है, जो उसकी अनुपस्थिति में उसके माता-पिता की सेवा करने और उसके सारे परिवार का ध्यान रखने के साथ-साथ उसके समाज की भी जिम्मेदारी निभाती है।

हाँ सुरीली, अब ये कितना उचित है और कितना अनुचित? इसका निर्णय हम आज के समाज पर ही छोड़ते हैं। हमें तो केवल इन दोनों ही लोकगीतों से नारी हृदय की व्यथा ही दिखाई देती है। आप क्या देखते हैं, ये आपके दृष्टिकोण पर निर्भर है।


अच्छा सुरीली, आज के विचार को यहीं विराम देते हैं।

राधे राधे 🙏🏻🌷🙏🏻

तुम्हारी सखी

राधा श्री


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