दिनाँक - १२ / १२ / २०२१
वार — रविवार
राधे राधे सुरीली 🙏🏻 🌹 🙏🏻
आओ, बैठो। चाय पियो ☕☕
सुरीली, तुम अन्तर्यामी हो क्या? 🤔 अरे! एक झटके में हमारा चेहरा देखते ही हमारे मन की बात जान गई। सही कहा सुरीली, हमारे मन में बड़ी दुविधा है आज दोपहर से। जिसका निराकरण करने की चेष्टा हम बहुत कुछ खोज चुके हैं। किन्तु हमारे मनोरुप अभी तक उत्तर नहीं मिला। बड़ी खोज-बीन करने के उपरांत आखिर हमने उत्तर ढूंढ ही लिया सखी। इसलिए अब हमारे चेहरे पर किसी खोई हुई अनमोल वस्तु के पाने जैसा राहत का भाव है।
अरे हाँ भई, बताते हैं कि क्या प्रश्न था। पता है सखी पिछले दो रविवार से हम लोक जागृति कार्यशाला द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन मीटिंग में सम्मिलित होते हैं। ये प्रति रविवार दोपहर बारह बजे से आरम्भ होकर लगभग ढाई बजे तक चलती है। इसमें काशी के विद्वान पंडित विपिन बिहारी महाराज जी के द्वारा राम कथा सुनाई जाती है। उसके बाद राम कथा प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाता है, जिसका मूल उद्देश्य आज की पीढी को अपनी सनातन संस्कृति से परिचय कराना है।
हाँ सुरीली, इसका इतना सुन्दर उद्देश्य जानकर ही हम इससे जुड़े हैं। तो, इसी के अंतर्गत आज किसी से प्रश्न पूछा गया कि माता सीता के पालक पिता विदेहराज जनक का नाम क्या था? कोई कहता था विदेह, किसी ने कहा जनक तो किसी ने उत्तर दिया सीरध्वज। हम सोच में पड़ पड गये। हमें थोडा बहुत धुँधला सा याद आ रहा था तो हमने संकोच त्याग कर अपना संशय उनके समक्ष रखा। कि हमें लगता है कि उनका नाम रोमश्रवा था। और उनके पिता का नाम क्षीरध्वज था। और हम इसी में उलझे हुए थे। एक बार तो सोचा कि माँ को फोन करें, क्योंकि उनके पास हमारे हर प्रश्न का उत्तर होता है। पर फिर सोचा कि उन्हें तब परेशान करेंगे, जब हम हर तरफ से निरुत्तर हो जायेंगे। तब तक खुद से ही खोजने का प्रयत्न करते हैं। अपनी तरफ से बहुत हाथ पाँव मारे, पर कुछ हाथ नहीं लगा।
फिर हमने क्या किया? हमने सब कुछ एक तरफ रखा और थक कर हम सो गये। सोकर उठे तो मन में एक बार फिर से कुलबुलाहट हुई। हमने अपने दिमाग के घोड़े दौडाये और एकदम से याद आया कि रामानन्द सागर जी की रामायण में अश्वमेध यज्ञ के समय जब श्री राम जी अपने ससुर महाराज जनक से यज्ञ के लिए आज्ञा और आशीर्वाद माँगते हैं, तब वे अपना पूरा नाम लेते हैं। हमने तुरंत ही फोन में यू-ट्यूब खोला और वो प्रसंग निकाल कर देखने लगे।
हाँ सुरीली, अंततः हमें पता चल ही गया महाराज जनक का नाम। सुरीली, उनका नाम श्रीतध्वज था, जिन्हें कुछ लोग क्षीरध्वज या शीरध्वज, सीरध्वज आदि नामों से जानते हैं। ये नामिक विसंगतियां भाषा और बोली अलग-अलग होने के कारण है। उनके पिता का नाम हर्श्वलोमा था। विदेहराज हर्श्वलोमा जनक के दो पुत्र थे। बडे पुत्र का नाम श्रीतध्वज और छोटे पुत्र का नाम कुशध्वज था। श्रीतध्वज को मिथिला का राजा बनाया गया, जिनकी राजधानी जनकपुरी थी और कुशध्वज को कुशीनगर का राजा बनाया गया। दोनों भाइयों के दो-दो पुत्रियाँ थीं। उन चारों बहनों का विवाह दशरथ नन्दन चारों राजकुमारों से हुआ। 😊
तो सुरीली, अब जाकर हमारे मन को संतुष्टि मिली है। और हम तुमसे सम्वाद करने बैठ गये।
सुरीली, वैसे यदि तुम चाहो तो इस रामायण पाठ और प्रश्नोत्तरी के लिए किसी और को भी आमंत्रित कर सकती हो। हमें बहुत अच्छा लगेगा उनका जुड़ना।
अच्छा सुरीली, अब हमें आज्ञा दो। मनसा रूप से जल्दी ही तुमसे जुड़ते हैं।
राधे राधे 🙏🏻🌷🙏🏻
तुम्हारी सखी
राधा श्री