सुरीली मनसा - लेखक और कलम (2)
दिनाँक — ०७ / १२ / २०२१
वार — मंगलवार
राधे राधे सुरीली 🙏🏻 🌹 🙏🏻
कहो सुरीली आज दिन कैसा बीता? हाँ सुरीली, हमारे दिन तो आजकल पता नहीं कहाँ जा रहे हैं। जबसे हमारे घर के सामने वाले गीता भवन मन्दिर में भागवत कथा का शुभारम्भ हुआ है, दिन मानो द्रुत गति से उड़ रहा है। पाँच दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। आज पाँचवे दिन की कथा में ठाकुर जी की बाल लीलाओं का वर्णन किया था व्यास गद्दी पर बैठे महात्मा जी ने। और कल चौथे दिन की कथा में दशावतारों का वर्णन किया था। बहुत आनंद आ रहा है सखी। ऐसा लग रहा है कि ये कथा कभी समाप्त ही न हो और ऐसे ही रस बरसता रहे और हम उस रस में डूबते रहें। 🥰
सुरीली, कल हम बात कर रहे थे कलम और लेखक की। कहते हैं कि कलम तलवार से भी अधिक धारदार होती है। जो वार कलम कर सकती है, सम्भवतः वो वार कभी तलवार भी नहीं कर सकती। सही ही है सुरीली, क्योंकि कलम का वार सीधे मन और मस्तिष्क के रास्ते विचारों पर होता है, जिससे हमारे सोचने और समझने की शक्ति प्रभावित होती है। सुरीली, जिस तरह के लेख या कहानी या फिर कविता हम पढते हैं, सुनते हैं या फिर देखते हैं, वो सीधे जाकर हमारे विचारों से टकराती है। जिससे पाठक, श्रोता या दर्शक ये सोचने पर विवश हो जाता है कि आखिर ये कितना उचित है और कितना अनुचित। जब विचार इस तरह से प्रभावित होते हैं तो हमारा मन उस सरल रास्ते को खोजने की चेष्टा करता है, जिससे हम आसानी से बिना रुकावट के अपनी लक्ष्य को प्राप्त कर लें।
पर सुरीली, महर्षि विवेकानंद जी ने कहा है कि "जिस दिन तुम्हारे मार्ग में कोई रुकावट ना आये, उस दिन समझ लो कि तुम गलत रास्ते पर हो।" सुरीली, ये वक्तव्य आज की नयी पीढ़ी को बताती है कि रुकावटों से घबराओ मत, ये तो तुम्हारे सही रास्ते की परिचायक हैं। हाँ सुरीली, यही उत्तरदायित्व आज के लेखक के लिए निभाना परम आवश्यक है। खासतौर पर उन लेखकों को, जिनके पाठक आज की युवा पीढ़ी है। जिन लेखकों के पाठक लाखों और करोड़ों की संख्या में हैं, उनका उत्तरदायित्व तो और भी बडा हो जाता है।
सुरीली, तुम सही कह रही हो कि इस उत्तरदायित्व को निभाते कितने लोग हैं? उन्हें केवल अपनी वाहवाही बटोरने से मतलब है। उसके लिये वे कुछ भी लिखते हैं। किसी तथ्य की पूरी जानकारी लिये बिना कुछ भी लिख देती हैं। "जहाँ ना पहुँचे रवि, वहां पहुँचे कवि" कहावत का उपहास उड़ाते हुए उसे अपने स्वार्थ के लिए उपयोग कर अतिशयोक्ति को भी लजा देते हैं। ऐसे लेखक ना केवल अपने कर्तव्य से च्युत होते हैं, पाठकों को गलत संदेश भी देते हैं। ये उसी तरह से होते हैं, जैसे कोई चिकित्सक लालच में आकर अपने रोगी के जीवन से खिलवाड़ करता है।
सुरीली, कलम कहती है कि मुझे उठाने का उद्देश्य तभी सफल होता है जब तुम पाठकों तक सत्य और उचित बात और सही तथ्यों को पहुँचाते हो। जब तुम इतिहास की सही जानकारी सभी लोगों तक पहुँचा कर उन्हें सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस देते हो। जब तुम अपना उत्तरदायित्व पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाते हो। जब तुम्हारे पाठक तुम्हें पढ कर अंतर्मन से संतुष्ट होते हैं।
हाँ सुरीली, कलम कहती है जब इतिहास को तोड़ मरोड़ कर झूठ का प्रचार प्रसार किया जाता है, मुझे बहुत कष्ट होता है। जब मेरे माध्यम से सत्य को दबा कर किसी निर्दोष को दोषी ठहराया जाता है तो मुझे बहुत कष्ट होता है। जब मुझे झूठे, मक्कार, भगोड़े और कायर पुरुषों को वीरता की उपाधि देनी पड़ती है तो मैं हजार मृत्यु एक साथ पाने के जितना कष्ट भोगती हूँ।
अब तुम्हीं कहो सुरीली, एक लेखक के तौर पर क्या हमारा उत्तरदायित्व नहीं बनता कि हम सही इतिहास को ढूंढ कर आज की युवा पीढ़ी को सौंपे? हमें यदि हमारे इतिहासकारों ने हमें गलत इतिहास पढाया तो क्या हमारा उनके प्रति भी ये उत्तरदायित्व नहीं बनता कि हम उनकी भूल को सुधार कर आने वाली पीढ़ी को सत्य, धर्म, न्याय और उचित-अनुचित के भेद को बतायें? उन्हें वास्तविक सत्य और परिस्तिथियों से अवगत कराएं। ये हमारी ही जिम्मेदारी है कि हम अपनी पूर्वज पीढी की गलतियों को सुधार कर भावी पीढ़ी के लिए सही और उचित मार्ग प्रशस्त करें?
अच्छा सुरीली, कलम और लेखक की बात को हम यहीं विराम देते हैं। पर हमारे प्रश्नों पर विचार जरूर करना। और यदि हो सके तो उत्तर भी देना। हम फिर तुमसे मिलने आयेंगे। राधे राधे 🙏🏻🌷🙏🏻
तुम्हारी सखी
राधा श्री