मैं तो पंछी डाल का ठहरा, आज यहाँ हूं, कल वहां था , जाने कल हो कहां वसेरा! मैं तो पंछी डाल का ठहरा, कलरव के कौतुहल मन से, जाग रहा हूँ जाने कब से। अज्ञानी के अन्धकार में, युद्ध हुआ है खर से मेरा, मैं तो पंछी डाल का ठहरा, स्पंदन तो तब भी था मैं, निस्पंदन था जब जग सारा, स्तब्ध दशा पर उनकी अब तो, लगा हुआहै अद्भुत पहरा सि्मतता से पूरित होकर , नहीं दीखता उनका चेहरा, हाल हुआ है जग का ऐसा, दोष भला कि्या इसमे मेरा, मैं तो पंछी डाल का ठहरा, आज यहां हूं कल वहां था, जाने कल हो कहां वसेरा।