हिन्दी के आंचलिक उपन्यासों में ‘पानी के प्राचीर’ डॉ. रामदरश का बहुचर्चित उपन्यास है, जिसे काफी सम्मान मिला है। यह उपन्यास स्वतन्त्रता प्राप्ति तक के भारतीय गाँव की प्रामाणिकता गाथा प्रस्तुत करता है मिश्र जी गाँव के जीवन के किसी एक पक्ष का इकहरा विधान करने के स्थान पर उसके संश्लिष्ट यथार्थ को बहुत गहराई तथा कलात्मक कौशल से चित्रित करते हैं, प्रस्तुत उपन्यास में भी गाँव के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और संस्कृतिक यथार्थ की संश्लिस्थ गाथा प्रस्तुत की गयी है। यथार्थ की परतें परतों में धँसी हुई है। लेखक ने अपनी जमीन की सारी प्राकृतिक और सामाजिक शक्ति की भरपूर पहचान तथा उपयोग किया है। मेलों, पर्वों, लोकगीतों, नदियुओन, खेतों आदि का विधान मात्र नहीं किया है, उनसे संवेदना की परतों तथा कथा-सूत्रों की सृष्टि भी की है। इस उपन्यास में गाँव की ज़िंदगी की कथा तो है ही, उसमे एक गीतात्मकता, लय भी है जो उपन्यास को जगह-जगह काव्यात्मक सांकेतिकता तथा नाटकीय वक्रता प्रदान करती है। Read more