पथ प्रदर्शक
राहुल कुमार गोंड
भूमिका या परिचय
यह काव्य उत्साहित (motivate) करने वाला काव्य है जो पाठक को उत्साहित (motivate) करेगा । यह काव्य (IAS ,PCS ) की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा पुस्तक है । इसकी रचना वीर रस में हुआ है ।
इस काव्य में सर्वप्रथम श्लोक के माध्यम से माता - पिता , गुरु, सरस्वती माता व गणेश जी तथा सभी देवताओं का नमन किया गया है तथा यही से इस काव्य का रचना किया गया है और अगले रचना में माता -पिता के विषय में तथा इसके बाद गुरु के विषय में कुछ बताया गया है ।
इस काव्य में छंद मुक्त कविताएं तथा मुक्तक और गीत संकलित है तथा कुछ रचनाएं चौपाई व दोहा छंद में लिखी गईं हैं जो इनमे संकलित कविता व गीतों के माध्यम से रास्ता चलने वाले व्यक्तियों का मार्ग दर्शन किया गया है ।
यदि आप इस काव्य (पुस्तक )को अपने जीवन में पढ़ते रहेंगे तो आपको सम्पूर्ण जीवन भर मन में उत्सुकता , धैर्यवान आदि गुण भरा रहेगा । यह काव्य एक आम आदमी से लेकर सभ्य व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पथ प्रदर्शक का किताब (रचना ) है ।
यदि आप इसको अपना साथी बनाते हैं तो यह सबसे अच्छा मित्र है क्योंकि किताब या काव्य से सबसे अच्छा मित्र कोई नहीं होता है आप जितना इससे प्रेम करेंगे उतना ही यह आपसे भी प्रेम करेगा। मैं अपने अंतर मन से कह रहा हूं यदि कोई व्यक्ति इस काव्य को पढ़ लेगा तथा वह पथ भ्रष्ट होगा तो वह जरूर सही मार्ग अपना लेगा ।
इस काव्य का मुख्य उद्देश्य है पथ भ्रष्टों को सही राह दिखाना ।
बहुत ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि बहुत से लोग अपना सुमार्ग छोड़ दिए हैं और गलत मार्ग अपना लिए हैं तथा कोई व्यक्ति उत्साहित या उत्सुक नहीं रह रहे हैं जैसे लग रहा है कि भिरू हो गए हैं ,तथा पढ़ाई करने वाले बच्चे पढ़ना नहीं चाहते हैं वह यह चाह रहे हैं कि बिना पढ़े लिखे ही नौकरी मिल जाए ,लेकिन ऐसा संभव नहीं है , इसलिए मैं सबको सही मार्ग पर लाने के लिए और उत्सुक करने के लिए यह काव्य (पथ प्रदर्शक) लिखा हूं ।
Arthor by
Rahul kumar gond
सारणी
श्लोक 9-10
माता -पिता 11-13
गुरु 14-16
वन्दना 17-18
दो शब्द 19-20
एक ही सोच हो,एक ही हो करम 21-23
कांटों में फूल निराला 24-28
मुस्कुराते चलना है। 29-36
लीक 37-39
सोचकर पथ चुनना है 40-42
मनोकामना एक रहेगा 43-47
कीचड़ कांटों में फूल है खिलता 48-50
सींचा करो तुम मूल को 51-55
चींटी की प्रबल इच्छा 56-60
सिर्फ व्यथा ही होता है 61-65
हौसला बुलंद रखना है 66-68
हौसला। 69-70
कभी निराश मत होना 71-73
क्यों तरसता है 74-75
कर सको तो अच्छा करना 76-78
माया में क्यों पड़ते हो 79-83
स्वभाव 84-85
लक्ष्य 86-89
ईर्ष्या 90-94
पथिक -चालीसा 95-103
जन - सुधार पच्चिसा 104-109
चींटी से क्या हम कम हैं 110-111
तुम भी अब्दुल कलाम हो 112-114
बेटी 115-115
उस पार मुझको जाना है 116-120
क्यों पीछे मुड़ता है तू 121-126
श्लोक
नमामि जन्मंदाता मातुम् पितुम्
नमामि ज्ञानंदाता गुरुम् ।
नमामि सारदेमातुम् गजाननम्
नमामि सर्वे देवीः देवान्।।
(जन्म देने वाले माता और पिता को नमस्कार करता हूं तथा ज्ञान को देने वाले गुरु को नमस्कार करता हूं ।सरस्वती माता जी और गणेश जी को नमस्कार करता हूं । तथा सभी देवियों और देवताओं को भी नमस्कार करता हूं ।)
मां के प्रति भाव
(मैं माता और पिता को परमेश्वर से कई गुना बड़ा और अच्छा मानता हूं । माता जैसी कोई इस जग में है ही नहीं । मां का दिल ममता मयी होता है मां अपने पुत्र से कितना हूं क्यों न रूठी हों , रुठ ने बावजूद भी अपने पुत्र से स्नेह करती हैं । मां अपने पुत्र के साथ साथ दूसरे के पुत्र को भी पुत्र मानती हैं ।)
माता - पिता
बिन पुजा मात तात कै ,
पुजा अधूरा होय ।
दिव धाम सुपग राजीव,
इन्है बड़ा न कोय ।।1।।
(बिना माता पिता के पूजा किए अगर दूसरे कोई का पूजा किया जाता है तो वह पूजा अधूरा होगा अर्थात अधूरा माना जाएगा । माता पिता के कमलरूपी सुंदर पैर में स्वर्ग का जगह है, इनसे बड़ा कोई नहीं है ।)
मात - तात सुपद करो सेवा ।
पद-पंकज ज्युं कोय नहि देवा।।
तात - मात बिन कोय न आगे।
वही अवधि तऊ आज्ञा मागे।।
(माता और पिता के सुंदर रूपी पैर की सेवा कीजिए,इनके कमल रूपी पैर के जैसे कोई
देवता भी नहीं है ,बिना माता पिता के कोई इंसान आगे नहीं हुआ है , किसी काम को करने से पहले उसी समय अपने माता -पिता से आज्ञा मांग लेना चाहिए ।)
इनके मन बिन अच्छा न कामा ।
यह ललिता फैलावे नामा।।
सांच व्याख्या पड़ी वह माता । सीप-मोती दिप-ज्योति आता ।।
(माता-पिता के मन के बिना अच्छा काम नहीं होता है माता -पिता कभी भी अपने पुत्र या पुत्री की सुंदर नाम अर्थात् अच्छाई ही फैलाना चाहते हैं। माता सत्य की व्याख्या पड़ी हुई हैं ,जिस प्रकार सीप से मोती , दीपक से ज्योति मिलता है , उसी प्रकार माता से प्रेम मिलता है ।)
गुरु
परम पद- पंकज वक्ष - प्रित ,
ज्ञान - जलधि गुरु होय ।
गुरु - सेवा - घट किय नहीं ,
बड़ा होखै न कोय ।।
(गुरु का कमल रूपी महान पैर ,प्रेम रूपी हृदय ,और सागर रूपी ज्ञान होता है । जिसने गुरु को घड़े रूपी सेवा नहीं किया वो महान नहीं हो पायेगा , चाहे कोई भी रहे ।)
कपाट - कपाट जौ काल लागा ।
गुरु हिय रहित रहै मन भागा।
हिय-पचि-पचि प्रित पहुंच न पावै ।
गुरु - उर - राखौ राह दिखावैं।।
(जिस समय हृदय में कपटी रूपी दरवाजा लग जाता है , और गुरु हृदय से दूर रहते हैं तो उस समय हृदय खुश नहीं रहता है अर्थात् मन भग जाता है और हृदय में बार -बार प्रेम नहीं पहुंच पाता है ।गुरु को हृदय में बसाए रखिए क्योंकि वहीं राह दिखाते हैं ।)
जेऊ काल गुरु पास जाई।
गुरु ही मात तात सब काहाई।
गुरु-गिरा-अमिय अति आपारा।
मानहु तन को पट आधारा।।
(जिस समय कोई शिष्य गुरु के पास चला जाता है , तो उसी समय से गुरु ही माता और पिता तथा सब कुछ कहे जाने लगते हैं ।
गुरु की अमृत रूपी वाणी अत्यंत (अधिक) अपार होता है , मान लीजिए कि जैसे शरीर को कपड़ा आधार होता है ।)
वन्दना
हे मार्ग दर्शन हे भगवन ;
दयादृष्टी हे जगबंधन,
दया सिंधु हे करुणा निदान;
हे प्रतिपालक गुणा गान।।1।।
मेरे मार्ग को दिखलाओ;
गलत सही का भेद कराओ ,
मैं तो आपका बालक हूं ;
कैसे चलना है बतलाओ।।2।।
तुम सबके हृदय में बसते हो ;
हर कण - कण में भी रहते हो ,
कहां तक मैं दरसाऊं ,
सबके पाप भी सहते हो।।3।।
अन्धकार को दूर। करो ना ;
मेरे मन में प्रकाश भरो ना ,
जीवन में मैं सफल हो जाऊं ;
मेरे दुख को दूर करो ना ।।4।।
दो शब्द
कोई राम कहता है , कोई रहमान कहता है ।
एक ही सबके दिल में है,कोई यह क्यों न कहता है ।
सब ये लोग जानते हैं , सबका खून लाल ही है ।
लेकिन मिटा मानवता है ,केवल जातिवाद रहता है ।
जिंदा डूब जाता है , मुर्दा तैर दिखाता है ।
हमलोग चढ़ नहीं पाते ,लंगड़ा चढ़ दिखाता है ।
किस्मत लिखी नहीं होती , किस्मत लिखी जाती है ।
जो किस्मत लिख लेता है , वही कुछ कर दिखाता है।
ये तन मिट्टी की मूरत है , कभी भी टूट सकता है ।
जो हंसकर प्यार करता है , कभी भी रुठ सकता है ।
भरोसा मत करो किसी पे , चाहे खून अपना हो ।
जो दिल के पास रहता है , कभी भी छूट सकता है ।
पथ को चुन लेने पर , उसे छोड़े नहीं जाते ।
जिसको लक्ष्य प्यारा हो ,उसे कुछ और नहीं भाते ।
अभी से तुम करो मेहनत, तुम्हे मंजिल को पाना है ।
जो आई एस पी सी एस बनाते हैं, वो आसमा से नहीं आते ।।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम
कुछ नया कीजिए ,ये हुआ है जनम ।
नेह पथ चाहिए , नेह ही है धरम ।
सब खुशी से रहे ,सब मगन हो उठे।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम।।1।।
जो तुझे पालकर , सब किए है करम ।
नमन पूजा करो , एक है यह धरम ।
सब मिलेगा तुझे , भूमि धीरज रखो ।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम।।2।।
सोच दीरघ बना , एक खा लो कसम ।
फल मिलेगा नहीं , एक है यह भरम ।
सब मिलेगा तुझे , सोच ऐसा रखो ।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम।।3।।
समय को क्या कहूं , हो गए जो नरम ।
मार देती उसे , वो करे कुछ सरम ।
काम ऐसा करो , समय भी कुछ रहे ।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम।।4।।
कुछ नया कीजिए ,ये हुआ है जनम ।
नेह पथ चाहिए , नेह ही है धरम ।
सब खुशी से रहे ,सब मगन हो उठे।
एक ही सोच हो ,एक ही हो करम।।5।।
कांटों में फूल निराला
वाह रे फूल निराला
कितने कंटक सहता है ,
आंधी और बरसातों में
कैसे कष्ट में रहता है ?
कभी डालियों में लड़ता
कभी तेज धूप सहता है ,
पंखुड़ियां कोमल हैं
कैसे कष्ट में रहता है ?
भौंरो को मधु देता
तू है मधु का प्याला ,
कांटों में फूल निराला
कांटों में फूल निराला।।1।।
एक साथ जब मिलता है
सुंदर माला बनता है ,
गले में जब जाता है
मान - सम्मान बढ़ाता है ।
स्वागत किए जाते हैं
तन पर तुमको बरसाकर ,
तेरी सुगंध प्यारी है
मन मोहती तरसाकर
जन्म -जन्म का रिश्ता जोड़ता
वर और वधु माला ,
कांटों में फूल निराला
कांटों में फूल निराला।।2।।
औषधि तुमसे बनता है
जन का पीर दूर है करता ,
खुद कष्ट को सहकर के
दूसरे का पीर है हरता ।
मानव तुमसे कम है क्या
देखकर भी ना सीखता है ,
नैना भले खुला हुआ है
मन के नैन से ना दिखता है।
मधु को मधु पिलाती है
मधु से भरी मधुशाला ,
कांटों में फूल निराला
कांटों में फूल निराला।।3।।
मुस्कुराते चलना है
कांटे सब बिछाते हैं
कोई राह चलने पर ,
द्वेष करते हैं सभी
कोई मंजिल पाने पर ।
ना जाने ये कुदरत
कैसा खेल रचता है ,
मेहनत दिल से करने पर
पत्थर भी टूट जाता है ।
जोश मन में जब आती है
इतिहास रचकर जाती है ,
आग बन जाती है पानी
पानी आग बन जाती है ।
ना मन में भेद भाव है
ना किसी से जलना है ,
मुस्कुराते चलना है
मुस्कुराते चलना है।।1।।
प्रेमियों की माला में
मैं नहीं गूंथता कभी ,
मोह माया में क्यों पड़ें
प्यार में फंसते हैं सभी ?
सारी मंजिल बाकी है
सुरुआत हुआ है अभी ,
मंजिल मिल जायेगा
निराश होना मत कभी ।
दूर रहना है मुझे
इन प्रेम माला से ,
मधु समान जो दिखती है
विष होगी मधुशाला से ।
ना किसी से प्रेम है
ना कहीं मचलना है ,
मुस्कुराते चलना है
मुस्कुराते चलना है।।2।।
दुश्मनों को आने दो
मैं नहीं डरता कभी ,
डरते हैं जो कायर हैं
मैं नहीं झुकता कभी ।
बादल से गरजते है जो
बुलबुले ज्यों फूटते हैं ,
जो पल में फूटते हैं
वो कभी ना जुटते हैं ।
शरीर मेरा हार जाने दो
मन ना हारेगा कभी ,
खुद ही पथ यह हारेगा
मैं ना हरूंगा कभी ।
पहले से मैं बिखरा हूं
अब मुझे संभलना है ,
मुस्कुराते चलना है
मुस्कुराते चलना है।।3।।
स्वप्न देखा मैंने था जो
उसको अब पाना है ,
समुन्द्र जैसी गहराई को
मन में अब लाना है ।
दृढ़ निश्चय जब रहेगा
पथ आसान हो जायेगा ,
जैसा मेरा कर्म होगा
वैसा फल भी आयेगा ।
जाने कैसा फल आयेगा
सोच क्यों पछताऊं मैं ,
मेरा स्वामी मंजिल है
मंजिल को अपनाऊं मैं ।
कांटों से भरी इस राहों में
कांटों ज्यों ढलना है ,
मुस्कुराते चलना है
मुस्कुराते चलना है।।4।।
लीक
पथ पर अधिक गाड़ी चलाने से ;
गहरा लीक बन जायेगा ,
फिर गाड़ी चलने पर ;
पहिया उसका धंस जायेगा ,
समय आने पर ही ;
गाड़ी को पथ पर चलाते रहना ,
लेकिन ध्यान रहे क्या ?
गहरा लीक न बनने देना ।।1।।
बटोही चल पथ पे ;
पहले कर के पहचान ,
जड़ से कर महासंग्राम ;
विजई होगा तेरा यह तू ले जान ,
सदैव लघुता से ;
दीर्घता चाहते रहना ,
लेकिन ध्यान रहे क्या ?
गहरा लीक न बनने देना ।।2।।
दिमाग बना नागर ;
जिससे ना पहुंचे आघात ,
बैन बना मृदुल ;
जिससे सुरम्य नर मिलेगा साथ ,
टोटा और अरि - दल को ;
सदैव हटाते रहना ,
लेकिन ध्यान रहे क्या ?
गहरा लीक न बनने देना ।।3।।
भीम कायावान भुधर ;
पथ चलते समय दिखे ,
जो इसे पार हो जाए ;
आरज़ू पूरा उसे मिले ,
जग जीवन में सत्य प्राण को ;
परित्रान करते रहना ,
लेकिन ध्यान रहे क्या ?
गहरा लीक न बनने देना ।।4।।
सोचकर पथ चुनना है
सोच तेरा क्या रहेगा
तुझपे निर्भर करता है ,
कैसा तेरा पथ रहेगा
तुझपे निर्भर करता है ।
जैसा तेरा सोच होगा
वैसा ही गुण आयेगा ,
अधिक परिश्रम करेगा तो
अपना मंजिल पायेगा ।
बुरा ना देखो बुरा ना बोलो
नाही बुरा सुनना है ,
सोचकर पथ चुनना है
सोचकर पथ चुनना है।।1।।
सोच ही बुरा बनाता है
सोच ही सच्चा बनाता है ,
सोच पथ भटकाता है
सोच ही राह दिखाता है ।
ऐसा करो की सोच को
कभी गलत ना होने देना ,
जो ज्ञान है गलत बनाता
उस ज्ञान को कभी ना लेना ।
जो गुण है छूट चुका
उस गुण को ढूंढना है ,
सोचकर पथ चुनना है
सोचकर पथ चुनना है।।2।।
मनोकामना एक रहेगा
दयादृष्टि हे मार्ग दर्शन
अरज हमारी एक रहेगा ,
मनोकामना पूर्ण करो ना
मनोकामना एक रहेगा।।1।।
अनेक मार्ग दिख रहे हैं
मेरे लिए पथ एक रहेगा ,
चाहे मिले या ना मिले
मनोकामना एक रहेगा।।2।।
मैं सोचकर चुन लिया हूं
मेरा मंजिल एक रहेगा ,
तभी मंजिल मिल पायेगा
मनोकामना एक रहेगा।।3।।
अनेक में पड़के सब खोऊंगा
इसलिए पथ एक रहेगा ,
दीर्घ शिखर पर जाना है
मनोकामना एक रहेगा।।4।।
समय बड़ा अनमोल है
समय सीमा भी एक रहेगा ,
सही समय पर पाना है
मनोकामना एक रहेगा।।5।।
कब क्या मन की हो जाये
इसलिए मन एक रहेगा ,
जो चुना हूं वही पाना है
मनोकामना एक रहेगा।।6।।
यह तन कांचा कुंभी है
कर्म तन की एक रहेगा ,
जाने कब फुट जायेगा
मनोकामना एक रहेगा।।7।।
मार्ग मेरा एक ही होगा
बस लड़ाई अनेक रहेगा ,
पहाड़ कांटे कुछ भी आये
मनोकामना एक रहेगा।।8।।
बहुत लोग विचलित होते हैं
महासंग्राम अनेक रहेगा ,
सब परिस्थितियों से लड़ना है
मनोकामना एक रहेगा।।9।।
कीचड़ कांटों में फूल है खिलता
तुम जो भी हो तुम बहुत सही हो
अपने आप को तुच्छ ना समझो ,
तुम बहुत कुछ कर सकते हो
बहुत बड़े को कुछ ना समझो ।
तभी तुम कुछ कर पाओगे
मन में बड़ा कुछ सोच लाओ ,
कुछ अच्छा करके दिखाना है
सही मार्ग को तुम अपनाओ ।
जब पथ पर लोग चलते हैं
उनको शूल , शूल है मिलता ,
कीचड़ कांटों में फूल है खिलता।।1।।
जब कीचड़ कांट को सह लोगे
तभी पुष्प को पाओगे ,
तुम पे निर्भर करता है
क्या - क्या कब अपनाओगे ।
कठिन सौंह को तुम लेलो
सौंह को पूरा करना तुम्हें है ,
अकेला पथ पर चल दिए हो
सब कुछ पूरा करना तुम्हें है ।
विकट परिस्थितियां जब सहे हो
सब अनुकूल , अनुकूल है मिलाता
चड़ कांटों में फूल है खिलता।।2।।
सींचा करो तुम मूल को
फूले फलेगा तरु कैसे
यदि शिखर को सिंचोगे ,
सब मेहनत बेकार होगा
तरु का मूल ना सिंचोगे ?
तरु तो एक उदाहरण है
जीवन की है मूल समझो ,
यदि जीवन में नहीं अपनाए
तेरे लिए है शूल समझो ।
जब कांटों में ना जाओगे
कैसे पाओगे फूल को ,
सींचा करो तुम मूल को
सींचा करो तुम मूल को।।1।।
बिन बाती के दीप ना जलता
बाती उसका सहारा है ,
मूल को भी वही समझो
मूल तरु का पिटारा है ।
सही समय ना जल मिलेगा
तरुवर सुख जायेगा ,
नीर देने से क्या फायदा
समय बीत जब जायेगा ।
समय पर ना सींचा करोगे
नहीं पाओगे फूल को ,
सींचा करो तुम मूल को
सींचा करो तुम मूल को।।2।।
मानव के यह जीवन का
यह ज्ञान तो हीरा है ,
इस ज्ञान को नहीं अपनाए
तो तेरे लिए यह पीड़ा है ।
तुम तो एक राही हो
जीवन भर चलना है ।
मूल तत्व को पा जाओ
सही प्रकृति में पलना है ।
मूल तत्व ना पाओगे
तुम पाओगे शूल को ,
सींचा करो तुम मूल को
सींचा करो तुम मूल को।।3।।
चींटी की प्रबल इच्छा
एक चींटी एक दीवार पर
बार - बार है चढ़ रही ,
बार - बार गिर जाती है
कठिन बल से लड़ रही।।1।।
तन उसका हार गया है
मन ना उसका हारा है ,
बहुत बार वह जोर लगाती
कुछ ना उसका सहारा है।।2।।
क्या होगा क्या ना होगा
केवल ईश्वर जान रहे ,
वह मंजिल पा जाएगी
मैं तो इसको मान रहे।।3।।
सबको कोई सहारा मिलता
उसका कौन सहारा है ,
कोशिश से हार ना होती
यह बचन हमारा है।।4।।
लीक वहां बन गया है
जिस मार्ग से चढ़ रही है ,
क्या शिखर पर चल जायेगी
परम शक्ति से लड़ रही है।।5।।
बहुत समय है बीत चुका
हुआ नहीं है निपटारा ,
क्या उसका प्राण बचेगा
होगा या कोई सहारा।।6।।
कुदरत इस चींटी का
कठिन परीक्षा ले रही है ,
चींटी का मनोबल बढ़ाना है
इसलिए दुख दे रही है।।7।।
एक बार जब जीत जाएगी
कभी किसी से ना हारेगी ,
किसी लक्ष्य को पाने में
तन - मन अपना वारेगी।।8।।
कुदरत अनूठा खेल रचाया
चींटी शीर्ष पे पहुंच जाती है ,
मंजिल निरख - निरख़ कर के
चक्षु प्रेम जल को लाती है।।9।।
मेहनत करने वालों की
कभी हार ना होती है ,
सबको एक सिख दि है
यह ज्ञान एक मोती है।।10।।
सिर्फ व्यथा ही होता है
पथ पे पंथी जब चलता है
वह सुख ना पाता है ,
क्या कर्म से पहले ही
कोई फल को पाता है ?
सुख पहले मिल जायेगा तो
दुख कब वह पायेगा ,
कठिन परिश्रम करने पर ही
सुख सामने लायेगा ।
जो पहले ही सुख चाहे
वह उलझन में रोता है ,
सिर्फ व्यथा ही होता है
सिर्फ व्यथा ही होता है।।1।।
तुम पहले कर्म करो
फल की चिंता मत करना ,
देने वाला कुदरत है
सुख की इच्छा मत करना ।
शूल भरे ये राहें हैं
इसको पार करना है ,
तुझे रोकने जो आये
उसपे वार करना है ।
चलता न जो संभलकर के
सद्परिणाम को खोता है ,
सिर्फ व्यथा ही होता है
सिर्फ व्यथा ही होता है।।2।।
बचपन में व्यथा जो झेल लिया
पचपन में सुख पायेगा ,
जो बोएगा शूल को
वो फूल कहां से पायेगा ।
अगणित प्रतिकूल परीक्षाएं
तुमको पार करना है ,
क्यों ना तुझे असि धार पड़े
तुझे भी वार करना है ।
उसे कभी ना फल मिलता
जो बीज ना बोता है ,
सिर्फ व्यथा ही होता है
सिर्फ व्यथा ही होता है।।3।।
हौसला बुलंद रखना है
हौसला तेरा मूल है
इसे मजबूत बनाना है ,
भव बाधा से लड़कर के
एक उद्देश्य बनाना है ।
चरम सीमा तक लड़ते रहना
तुम लगनशील काहाओगे ,
सिंह जैसी दहाड़ होगी तो
तुम भी शेर कहाओगे ।
क्या सही है क्या गलत है
उसे तुम्हे परखना है ,
हौसला बुलंद रखना है
हौसला बुलंद रखना है।।1।।
जो अपनी लक्ष्य बदलते हैं
वो कुछ ना पाते हैं ,
जो मंजिल को पाते हैं
वो नभ से ना आते हैं ।
कभी तुमसे वो नीचे थे
आज वो मंजिल पाए हैं ,
सुदृढ़ता मेहनत पर
ऐसा कर दिखाए हैं ।
हौसला तेरा कमजोर है
उसे तुम्हें अब लखना है ,
हौसला बुलंद रखना है
हौसला बुलंद रखना है।।2।।
हौसला
कभी हम भी लुटाए थे
आज तुम भी लुटा जाओ ;
कभी हम भी पाए थे
आज तुम भी पा जाओ ,
मैंने बिंदु से रेखा बनाया
क्या तुम भी रेखा बनाओगे ;
मै जो कर दिया था
लग रहा है वह कर दिखाओगे ,
मेरे हौसले बुलंद थे
तेरा भी हौसला बुलंद है ;
मेरा चाहत है तुम्हे मंजिल मिल जाए
तुम्हारे खुशी में ही मेरा परम आनन्द है।।
कभी निराश मत होना
हार मिले या जीत मिले
कुछ भी तुमको पाना है ,
जीत सबको मिलता नहीं
हार भी तो आना है ।
संघर्ष को मत छोड़ना
हार असि धार बनेगा ,
जितनी बार तू हारेगा
वह मजबूती धार बनेगा ।
यह मोह - माया की नगरी है
कभी किसी के खाश मत होना ,
कभी निराश मत होना
कभी निराश मत होना।।1।।
जो सोच रहे हो वह पवोगे
ऐसा मन में सोच लाओ ,
जिसकी चाह मन में है
अपने लक्ष्य को तुम पाओ ।
जब दुख ना पाओगे
सुख का अनुभव कैसे होगा ,
समय - समय सब है जरूरी
तू जो ना सोचा वैसे होगा ।
जो कोई ना समझ सके
कभी वह राज मत होना ,
कभी निराश मत होना
कभी निराश मत होना।।2।।
क्यों तरसता है
तू धीर है गंभीर है ,
कोमल और कठोर शरीर है ।
तू कांटा है तू फूल है ,
विपरीत व अनुकूल है ।
तुम चुभ सकते हो तो ,
तुम चुभा भी सकते हो ।
तुम एक दिन मंजिल पाओगे ,
कायरों से क्यों सरसता है;
क्यों तरसता है ,क्यों तरसता है ।।1।।
तू नभ है तू धरा है ,
तू खाली है तू भरा है ।
तू मधु है तू विष है ,
प्रेम क्रोध का शीश है ।
अपने आप को पहचानो ,
कर क्या सकते हो जानो ।
मंजिल तू भी पायेगा ,
हार पर क्यों बरसता है ;
क्यों तरसता है ,क्यों तरसता है ।।2।।
कर सको तो अच्छा करना
सच्चाई की राहों में
बहुत बुराई आती है ,
सच्चाई को पकड़ने पर
बुराई भी रंग लाती है ।
क्यों तू बढ़ रहा है साच पर
बुराई तुझसे ईर्ष्या है करती ।
सांच छोड़ के बुरा अपना ले ,
बुराई तुझे प्रयास है करती ।
आकर्षित मत तुम हो जाना
भर सको तो ज्ञान भरना ,
कर सको तो अच्छा करना।।1।।
बहुत लोग सच्चाई को
कहते है कभी ना छोड़ूंगा ,
अक्सर वही छोड़ देते हैं
कहते हैं पथ ना मोडूंगा ।
कहने से कुछ ना होता है
करके तुम्हें दिखाना है ,
बुराई सदैव हार पाई है
तुम्हें भी सबक सिखाना है ।
क्यों ना तुम्हें लड़ना पड़े
अवगुण से तुम्हें है लड़ना ,
कर सको तो अच्छा करना।।2।।
माया में क्यों पड़ते हो
यह सारी दुनिया एक
मोह माया की नगरी है ,
कैसे अनंत को लिखूं मैं
पापों से भरा एक गगरी है ।
मोह माया को लिखूं तो
कितना लिख मैं पाऊंगा ,
यह अनंत दिखता है
कैसे इसे दरसाऊंगा ।
बहुत सुंदर पुष्प तुम हो
माया पर क्यों झड़ते हो ,
माया में क्यों पड़ते हो
माया में क्यों पड़ते हो।।1।।
कांटों से भरी यह दुनिया है
सिर्फ कांटे चुभाती है ,
सुख केवल दिखती है
सुख ही दुख लाती है ।
एक दूजे से सब बधे हैं
कोई कहीं ना खाली है ,
जो सभ्य सुकर्मी दिखता
वह भी कूड़ा नाली है ।
इन लोगों में क्यों पड़े हो
क्यों इनसे लड़ते हो ,
माया में क्यों पड़ते हो
माया में क्यों पड़ते हो।।2।।
एक बार भी सोचे नहीं हो
तुमको क्या करना है ,
क्या सही है क्या गलत है
किस पथ को धरना है ।
अपने अंदर झांक देखो
बहुत कुछ कर सकते हो ,
खुद को तुम लघु ना समझो
दुश्मनों से लड़ सकते हो ।
माया एक अरि जाल है
इसमें क्यों पड़ते हो ,
माया में क्यों पड़ते हो
माया में क्यों पड़ते हो।।3।।
स्वभाव
स्वभाव एक मूल गुण है
स्वभाव को उत्तम रखना ,
अंतर से यह उठता है
स्वभाव सरलतम रखना।।1।।
अच्छा आचरण करने से
यह स्वभाव बदलता है ,
मधुर वाणी बोलने से
मन व्यवहार बदलता है।।2।।
स्वभाव जब अच्छा है होता
सबको सुप्रिय बनाता है ,
अच्छे स्वभाव के कारण ही
दुश्मन भी याद आता है।।3।।
हर पल यह प्रकट होता है
इसको अच्छा बनाना है ,
जीवन रहस्य अनुपम है
मोती सी दुति अपनाना है ।।4।।
लक्ष्य
चलना हो बाट पर तो , लक्ष्य बनाओ एक ।
पूरा करम ना होगा , यदि बनेगा अनेक ।।1।।
लक्ष्य एक तुम नहीं बनाए ।
आप सकल गुण कैसे पाए।।
एक लक्ष्य बिन करम न होगा ।
लक्ष्य हीन जन खुद का रोगा।।
लक्ष्य तेरा जब एक रहेगा ।
हृदय - वछ एक बात कहेगा।।
तुझे सफलता सदा मिलेगा ।
हिय अंतर की पुहुप खिलेगा।।
लक्ष्य जन को दिशा दिखाती ।
सही मार्ग को मन में लाती।।
सफलता का रहस्य है एका ।
अपनाना मत मार्ग एनेका।।
अपने लक्ष्य से मत भटको ।
तेरा करम जो उस पे अटको।।
तुझको मंजिल मिल जायेगा ।
पुहूप बाग का खिल जायेगा ।।
जीवन का यह मूल मंत्र , इसको लो अपनाय ।
जैसा तू करम करेगा , वैसा ही फल आय।।2।।
करके तुझे कुछ है दिखाना ।
अपने मंजिल को है पाना।।
दीर्घ को तुम दीर्घ ना समझो ।
लघुही को तुम लघु ना समझो।।
जो दिखता है वह ना होता ।
जो ना दिखता वह है होता।।
अपने बल को तुम आजमावो ।
जो है भाग्य में उसको पावो।।
मेहनतों से भाग्य बदलती ।
यह क्रिया कुदरत की चलती।।
अपने को तुम लघु ना समझो ।
भानु समाना खुद को समझो।।
भानु मंडल अतिक लघु लगता ।
तिभुवन तिमिर उदय से भगता।।
अपने लक्ष्य को सरल बनावो ।
अपने कर्म से फल को पावो।।
ईर्ष्या
जब कोई अपने कर्म पर
उन्नत सुख पाता है ,
तब साथी के अंतर मन में
ईर्ष्या वास बनाता है।।1।।
जो ईर्ष्या करता है
उसका ही नाश होता है ,
ईर्ष्यालु व्यक्तियों का
कभी ना विकाश होता है।।2।।
मन में इसे ना कभी पालना
बहुत जटिल बनाता है ,
जो पहले से पनप रहे हो
उसको भी दबाता है।।3।।
दुनिया में ऐसे बहुत लोग है
जो दूसरों से जलते हैं ,
शाखा , मूल , पत्ती सूखती है
वह कभी ना फलते हैं।।4।।
जो जैसा करनी करता है
वैसा फल मिलता है ,
जो पुष्प एक बार सूखे
वह कभी ना खिलता है।।5।।
यह ऐसा जमाना है
कामयाबी पे ईर्ष्या होती ,
कामयाबी नहीं मिली तो
तेरा वहां मजाक होती।।6।।
जहां ईर्ष्या होती है
अवश्य मान रहता है ,
भाव हिंसा भी होती है
वहां असत्य रहता है।।7।।
शांति मन को मिलती नहीं
बेचैन मन हो जाता है ,
वह दुख के अलावा
सुख कभी ना पाता है।।8।।
जिससे ईर्ष्या तुम करोगे
उसका कुछ ना बिगड़ेगा ,
संतोष सुख निद्रा उड़ेगा
उसका कुछ ना बिगड़ेगा।।9।।
प्रेम कर्म आशा संतोष
इसका अच्छा दवाई है ,
ईर्ष्या तन मन सब जलाता
जलन भी नाम कहाई है।।10।।
पथिक - चालीसा
चलना हो बाट पर तो , लक्ष्य बनाओ एक ।
पुरा कर्म ना होएगा , यदि बनेगा अनेक ।।
पथ तो एक नहीं है होता ।
जो अनेक में पड़ता रोता।।
जब यह बितेगा काल अपना ।
कैसे होगा पूरा सपना।।
पहचान कर राह पर जाना ।
निकले हो वापस मत आना।।
जो है सोच पुरा कर डालो ।
पाना हो जो उसको पालो।।
अति न सोच के काल बिताना ।
बिते काल तो पड़े पछताना।।
बिता हुआ ना वापस आया ।
काल चक्र विपरित है माया ।
दलदलों में फंस जाओगे ।
कभी नाही निकल पाओगे।।
अंतर मन जब पकड़ा राेगा ।
आरज़ू पुरा कैसे होगा।।
सु लक्ष्य बनाओ एक अपना ।
पुरा होगा यह नेक सपना।।
कोई राह कठिन ना होता ।
केवल भीत में पथिक खोता।।
भीत में पड़ के तु ना खोना ।
यह समझो आगे है होना।।
पीछे होना सोच न करना ।
तुम निडर हो कभी ना डरना।।
अरि आय जो सामने कोई ।
कर ऐसा देख भीरु होई ।।
नीर वात अनल घन चारी ।
राह चलत में पड़ते भारी।।
बरखा आंधी चपला बनता ।
इन सभी में फंसते जनता।।
सोच ही छोट - बड़ा बनाता ।
जैसा मन वैसा अपनाता।।
जो अच्छा सोचत है नाही ।
वो हृदय से बुरा बन जा ही।।
यदि आचरण बुरा है होता ।
सब वह मान - सम्मान खोता।।
गुण आचरण बनाओ आपै ।
तुझे निरख पहाड़ भी कापे।।
अच्छा - बुरा बाट है होता ।
चला बुरा पर वह है रोता।।
नाम कमाना सबको भाये ।
यही सोच सब मन में लाये।।
तुम सु करम से नाम कमाओ ।
करम किए जो वह फल पाओ।।
महावीर तुम हो अभिलाषी ।
प्रबल चाह है हो मधुभाषी।।
सोच राखो दीर्घ फल पाना ।
अवगुण छोड़ सगुण पर आना।।
अवधि अतिका बलवान होई ।
इसको रोक सकत ना कोई।।
हम रुकत हैं समय ना रुकता ।
यह कहीं भी कभी ना झुकता।।
कल चलने की सोच न करना ।
आज ही चलो कभी न डरना।।
कल को देखा ना है कोई ।
करे आज जो महान होई।।
चलने से पहले डर आता ।
पथिक जन को डरा है जाता।।
जो डरते पथ पे ना जाते ।
बाद में वह बहुत पछताते।।
इन भयों से नहीं है डरना ।
अपना लक्ष्य पूरा है करना।।
पथ तो बड़ा नहीं है होता ।
बड़ा समझ के पथ जन खोता।।
तुम भी ही महान बलबीरा ।
अति तेज चलो ना अति धीरा।।
सब है शक्ति तुम्हरे पासा ।
तू राजा है मन बन ना दासा।।
शक्ति अपना तुम बाहर लाओ ।
कर क्या सकते हो दिखलाओ।।
करम पूरा जब होगा तेरा ।
दूर होगा कोह अंधेरा।।
दूसरे को भी पास में लाओ ।
उसको भी तुम बड़ा बनाओ।।
पा जाओगे मंजिल अपना ।
पूरा होगा तेरा सपना।।
जो यह पढ़े पथिक चालीसा ।
वह तो अपना बदले दीसा।।
राहुल लिख के यह चौपाई ।
पथिक का सोच दिये बढ़ाई।।
राहुल कहा किए बिना , कोई करम न होय ।
बिना तरु के फल खोजे , बीज एक ना बोय।।
जन - सुधार पच्चीसा
जनों का मन प्यासा है , सदैव बढ़ती प्यास ।
किस वस्तु का प्यास है , उसका सब है खास।।
कंटकों में फूल है खिलता ।
खुशबुदार सुगंध है मिलता।।
उसी तरह से तुम भी खिलना ।
खुशबुदार सुगंध से मिलना।।
साधु ज्यों तुम भी बन जाओ ।
सही सोच को मन में लाओ।।
मदिरा मांस पीना न खाना ।
अपने तन को पवित्र बनाना।।
किसी जीव का जान न मारो ।
जीव रक्षा में तन - मन वारो।।
जीव की जान जो जन मारे ।
वो जीवन में सबसे हारे।।
जो इस जगत में कलुष करते ।
वो तम - पीड़ा से है मरते।।
पापी का सब कुछ मिट जाता ।
दुख के अलावा कुछ न आता।।
मात - तात को दुख जो देता ।
स्वर्ग का सुख कभी ना लेता।।
मात - तात सब धन हैं होते ।
अपने पुत्र को नेह भिगोते।।
इस जग में है कलुष समाया ।
बताओ कौन सुख है पाया।।
द्वेष सब लोग सबसे करते ।
सभी लोग आपस में मरते।।
जन - जन का काटत है गाला ।
सब हुए हैं खल कुडा नाला।।
किसी का कोई नहीं प्यारा ।
गया सुकरम गया गुण न्यारा।।
जैसा जो जन करम करेगा ।
वैसा ही परिणाम भरेगा।।
जो जन सदा बुराई करते ।
पाप घड़ा दिवस एक भरते।।
जीव - जंतु का जान न मारो ।
उनके जीवन को सवारों।।
जब जीवन तुम ना दे सकते ।
नहीं प्राण को तुम ले सकते।।
यह सब है कुदरत का कामा ।
छोड़ यह सब बनो बलधामा।।
तुम सुधरे तो जग सुधरेगा ।
बहु सुपरीनाम तुमको देगा।।
लड़ कर कोई क्या है पावा ।
अंत में अखिल बिखरी जावा।।
कलयुग युग का जन हैं कैसा ।
सब लड़ते है पशु के जैसा।।
राहुल लिख के यह चौपाई ।
जनो का राह दिए दिखाई।।
जो यह पढ़े सुधार पच्चीसा ।
वो सु मार्ग में बदले दीसा ।।
बुरा छोड़ अच्छाई पाओ ।
माता - पिता पद शिश नवाओ।।
सबमें पाप समा गया , सभी लाओ सुधार ।
सु मार्ग नहीं छुट पाए , तुम रहना तैयार।।
चींटी से क्या हम कम है
यह है चिंटियो की कहानी ,
परिश्रम करतीं हैं कर्म की दीवानी ।
एक पथ चुनती हैं मंजिल पाने को ,
पथ तो कठिन है फिर भी मन अपनाने को ।
यह चींटी कुछ पाने चलीं हैं ,
मिट्टी से घर बनाने चलीं हैं ।
झुण्ड है पर एक के पीछे एक ,
यह कैसी कतार है कहीं ना लेती टेक ।
यह कैसा नजारा है एक के पीछे एक ,
एक चाल से चल रही हैं दूरी है अनेक ।
दूरी लंबी है पर उसी पक्ती में आती है ,
जैसा एक करती है वैसा सब अपनाती हैं।
मंद - मंद गति से चल रही हैं ,
मंजिल उमंग में ढल रही हैं ।
एक ऐसा समय है आती ,
चींटी कर्म में सफल हो जातीं ।
अभिलाषा थी आवास बनाना ,
करके कर्म को दिखलाना ।
तुच्छ प्राणियों से क्या हम नम हैं ,
चींटी से क्या हम कम हैं ।
सब कुछ पाने वाला सबमें दम है ,
चींटी से क्या हम कम हैं ।।
तुम भी अब्दुल कलाम हो
बहुत कुछ कर सकते हो
कभी भी हार मत मानो ,
सब शक्ति भरी हुई है
अपने आप को पहचानो ।
अब्दुल एक इंसान थे
तुम भी तो इंसान हो ,
आज नहीं तो कल का
इस देश का महान हो ।
भानु भांति तुम जल सकते हो
भानु की ललाम हो ,
तुम भी अब्दुल कलाम हो
तुम भी अब्दुल कलाम हो।।1।।
वो नहीं जो कर पाए
वो भी तुम कर सकते हो ,
गागर में है सागर भरता
वह भी तुम भर सकते हो ।
ये ना समझो लघु हो तुम
नर लघु बिष से मरता है ,
जहां काम सूई है करती
तरवार नहीं करता है ।
जातिवाद ना पाला करो
तुम नमस्कार सलाम हो ,
तुम भी अब्दुल कलाम हो
तुम भी अब्दुल कलाम हो।।2।।
बेटी
माता बहन चाहिए , चाहिए भी घरवाली ,
फिर भी काहे कोख में , मरती हैं बेटियां ।
ये रानी लक्ष्मीबाई हैं , ये काल रूप कली हैं ,
यह रण बीच नहीं , डरती हैं बेटियां ।
सत्यवान बताई हैं , धीर वान बताई है ,
बछेंद्री जैसी जोस भी , भरती हैं बेटियां ।
पाप जब धरा पर , अधिक बढ़ जाता है ,
प्रचण्ड रूप काली की , धरती हैं बेटियां ।।
उस पार मुझको जाना है
आंधी तूफान है आ रहा
मुझको है रोक रहा ,
उस पार मैं जाना चाहता हूं
धूर समेटकर झोंक रहा ।
आंधी तूफान आने दो
इससे मैं ना डरता हूं ,
इन कठिन बाधाओं से
निडर मैं लड़ता हूं ।
इन बाधाओं से लड़कर
लक्ष्य अपना पाना है ,
उस पार मुझको जाना है
उस पार मुझको जाना है।।1।।
नौका मेरा कांप रही है
बीच धार में जानें से ,
मन में जोश उठ रही है
बाधाओं को पाने से ।
उस पार मैं चला जाऊंगा
विजय मेरा हो जाएगा ,
यह मेरा अडिग सोच है
मेरा लक्ष्य मिल जाएगा ।
जीवन की यह है लड़ाई
यह जीवन भर अपनाना है ,
उस पार मुझको जाना है
उस पार मुझको जाना है।।2।।
मैं एक धीर पुरुष हूं
धैर्यवान ना छोड़ूंगा ,
एक बार मैं हार जाऊंगा
लक्ष्य कभी ना मोडूंगा ।
वीरता का है पहचान
यह दहाड़कर बोलना ,
जो पहले से कायर है
उनका भी मुख है खोलना ।
तुम भी वीरता को अपनाओ
तुम्हें भी वीर कहाना है ,
उस पार मुझको जाना है
उस पार मुझको जाना है।।3।।
क्यों पीछे मुड़ता है
परिस्थितियों से जूझकर
हार मनाते क्यों हो ,
तुम्हें अभी पता नहीं है
महापुरुषों ज्यों हो ।
कैसा तुझमें शक्ति भरा है
सायद तुझे पता नहीं है ,
अजमाकर के देख लो
कब मिल जाए पता नहीं है ।
बहा दो खून पसीना
खून पसीना धार बनेगा ,
लगाकर देख लो गोता
मोती मुक्ताहार बनेगा ।
परिस्थितियां विकट में
क्यों अब जुड़ता है ,
क्यों पीछे मुड़ता है
क्यों पीछे मुड़ता है।।1।।
भूमिका यह सरल रहेगी
सरल तुमको बनना है ,
जो किसी ने सोचा ना हो
वैसा तुमको करना है ।
विष तुमने पी लिया तो
मधु मिलना बाकी है ,
कांटों पर जब चल गए तो
फल मिलना बाकी है ।
आंधी तूफा भूधर तुमको
देखो तुमको रोक रहा है ,
तुम आगे ना चल जाओ
आंख में रेत खोक रहा है ।
कांटों में जब फंसा ही है तो
क्यों ना इनसे जूझता है ,
क्यों पीछे मुड़ता है
क्यों पीछे मुड़ता है।।2।।
अब ये सांस कह रही हैं
सारे जख्म कह रहे हैं ,
अब सिकंदर बनेगा तू
तेरे कर्म कह रहे हैं ।
समुन्द्र तो समुन्द्र है
उसमें नदियां मिलती है ,
समुन्द्र मिलने नहीं जाता
अनन्त गुण खिलती है ।
अनन्त गुण कर्म हो जब
उसे कोई रोक ना पायेगा ,
जैसा बोया है तू बीज
वैसा फल भी आयेगा ।
पथ पर जब चल दिए तो
क्यों ना इनसे जुड़ता है ,
क्यों पीछे मुड़ता है
क्यों पीछे मुड़ता है।।3।।
चेतावनी **
इस काव्य के साथ गलत व्यवहार ना करें
जिससे ना आपको परेशानी हो ना मुझे कोई परेशानी हो ।
मैं यह बात इसलिए बता रहा हूं कि बहुत लोग होते हैं जो दूसरे का लिखा हुआ काव्य या रचना को चुराकर अपना नाम बताते हैं कि मैं लिखा हूं , लेकिन ऐसा इस काव्य के साथ आप नहीं कर सकते हैं क्योंकि पहले से ही मेरे पास इसका कांपी राइट है ।
इस चेतावनी के बावजूद यदि आप गलती करते हैं तो पकड़े जाने पर कानूनी कारवाही होगी और अर्थदंड देना पड़ेगा ।
Rahul kumar gond
अपना परिचय
मेरा नाम राहुल कुमार गोंड है तथा पिता का नाम रामानंद गोंड है और माता का नाम गीता देवी है । मैं भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कुशीनगर जिले में पड़रहीं उर्फ पकड़ी नामक ग्राम में रहता हूं । मुझसे संपर्क करने के लिए नीचे दिए गए मोबाईल नम्बर व ई मेल के माध्यम से संपर्क करें ।
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