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पोएट्री मनजमैंट

14 अगस्त 2016

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अब बासी शब्दकोशों पर

फफूंद की तरह उगे छन्दों में

उलझी हुई कविता

दाद खाज की तरह खुजलाती है

अंतःवस्त्र खोलकर

गुप्तांग दिखाती है

नंगे समय का यह नंगा सच है

ऊलजलूल सी पुरस्कार में गच है

इस बंद समय में कुछ खुलता है

उद्देश्यहीन भी उद्देश्य में झूलता है

फाटक के बाद दरवाजा

दरवाजे  के बाद खिड़की

खिड़की के पल्ले बंद हैं

कली मधुकर और मकरंद हैं

अब तो कविता कातिक की कुतिया है

आलोचक उसपर लपलपाता कुत्ता है

सौन्दर्य पर ऊगा बदजात  कुकुरमुत्ता है

अंधे समय का उदय होता प्रकाश है

पोएट्री मैनेजमेंट का बिग बॉस है

समय और सौन्दर्य से हैट कर खड़ी है

कविता किसी बिस्तर में पड़ी है

पुरस्कार की फूलझड़ी है ।

अनिल कुमार शर्मा

१४ / ०८ / २०१६






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रचनाएँ
anilkumarsharma
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26 अक्टूबर 2015
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मेरा भारत इतिहास में अपवाद हैपहले भी जातिवाद थाआज भी जातिवाद हैपहले ब्राह्मणवाद थाअब दलितवाद हैअगड़ा और पिछड़ा हैएक विचित्र झगड़ा हैअल्पसंख्यक में बहुसंख्यकऔर बहुसंख्यक में अल्पसंख्यकशीरे में जलेबी की तरह गड़ा हैकड़ाही और छनौटा पड़ा हैभट्ठी सुलग रही हैकोई नयी आग लग रही हैहवा भी ठग रही हैआदमी से औवल  जात ह

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यह देश लगभग सत्तर साल का बच्चा हैकुछ पका  तो अभी कुछ कच्चा हैहमारी जाति का गुंडातुम्हारी जाति के गुंडे से अच्छा हैजनता जनता से कहती हैजनता जनता से सुनती हैमन ही मन बहुत कुछ गुनती हैअपनी जाति   अपना  जनादेश हैएक विचित्र बहुमत का सन्देश हैइसमें राधा और घनश्याम हैदुर्वासा और परशुराम हैशास्त्रों में ब्र

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पोएट्री मनजमैंट

14 अगस्त 2016
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अब बासी शब्दकोशों परफफूंद की तरह उगे छन्दों मेंउलझी हुई कविता दाद खाज की तरह खुजलाती हैअंतःवस्त्र खोलकरगुप्तांग दिखाती हैनंगे समय का यह नंगा सच हैऊलजलूल सी पुरस्कार में गच हैइस बंद समय में कुछ खुलता हैउद्देश्यहीन भी उद्देश्य में झूलता हैफाटक के बाद दरवाजादरवाजे  के बाद खिड़कीखिड़की के पल्ले बंद हैंकल

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आज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी की

15 अगस्त 2016
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आज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी कीजय बोलो महात्मा ग़ांधी कीकुछ बाढ़ पीड़ित कुछ सूखे मेंकुछ भरे पेट कुछ भूखे मेंकुछ माल काटते चाँदी कीआज सत्तरवीं फसल कटी  आज़ादी कीसब झंडे डंडे का खेल रहाकिसको कौन ढकेल रहाजन गण मन गण गाते गातेअब नौबत आ गयी धक्काबाजी कीआज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी कीकोई नंगा भूखा सोया हैसूखी आँखों

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