shabd-logo

जातिवाद

26 अक्टूबर 2015

210 बार देखा गया 210
मेरा भारत इतिहास में अपवाद हैपहले भी जातिवाद थाआज भी जातिवाद हैपहले ब्राह्मणवाद थाअब दलितवाद हैअगड़ा और पिछड़ा हैएक विचित्र झगड़ा हैअल्पसंख्यक में बहुसंख्यकऔर बहुसंख्यक में अल्पसंख्यकशीरे में जलेबी की तरह गड़ा हैकड़ाही और छनौटा पड़ा हैभट्ठी सुलग रही हैकोई नयी आग लग रही हैहवा भी ठग रही हैआदमी से औवल  जात हैसंवैधानिक करामात हैजाति ही जीती हैजाति  ही मरती हैजिसमे राजनीति  चरती हैअब इंसानियत डरती हैअब यहाँ बंजर है और परती हैअनिल कुमार शर्मा24/10/2015
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अनिल जी, भारत देश वस्तुतः अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के लिए अनूठा देश है । एक ओर जाति-धर्म और संप्रदाय को लेकर यदि नकारात्मक सोच रखने वाले चंद लोग हैं तो दूसरी ओर एक विशाल जन समुदाय भारत की विविधता एवं 'अनेकता में एकता' के गुणगान करते नहीं थकता । इस बात का अनुमान उन भारतीय मूल के लोगों को बेहतर है जो अन्य देशों में रह रहे हैं । इसलिए जाति-धर्म के झगड़े भुलाकर लोगों को उन्नति की राह चलना चाहिए । देश में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन हमारी एकता और अखंडता के आगे सब बौने हो जाते हैं । धन्यवाद !

27 अक्टूबर 2015

8
रचनाएँ
anilkumarsharma
0.0
कंगाल होता जनतंत्र
1

कंगाल होता जनतंत्र

26 अक्टूबर 2015
0
3
1

2

जातिवाद

26 अक्टूबर 2015
0
1
1

मेरा भारत इतिहास में अपवाद हैपहले भी जातिवाद थाआज भी जातिवाद हैपहले ब्राह्मणवाद थाअब दलितवाद हैअगड़ा और पिछड़ा हैएक विचित्र झगड़ा हैअल्पसंख्यक में बहुसंख्यकऔर बहुसंख्यक में अल्पसंख्यकशीरे में जलेबी की तरह गड़ा हैकड़ाही और छनौटा पड़ा हैभट्ठी सुलग रही हैकोई नयी आग लग रही हैहवा भी ठग रही हैआदमी से औवल  जात ह

3

जातिवाद

13 जून 2016
0
1
1

यह देश लगभग सत्तर साल का बच्चा हैकुछ पका  तो अभी कुछ कच्चा हैहमारी जाति का गुंडातुम्हारी जाति के गुंडे से अच्छा हैजनता जनता से कहती हैजनता जनता से सुनती हैमन ही मन बहुत कुछ गुनती हैअपनी जाति   अपना  जनादेश हैएक विचित्र बहुमत का सन्देश हैइसमें राधा और घनश्याम हैदुर्वासा और परशुराम हैशास्त्रों में ब्र

4

आज़ाद दुःख

14 अगस्त 2016
0
0
0

ऐ मेरे आज़ाद दुःखबुद्धिभोजियों के देश मेंअब तुझे क्या मिलेगालगता है इस  परिवेश से  कोई ज़मींन सरक रही हैहवाओं का रुख किधर हैनहीं पता किसी दिशा काअंत नहीं  काली निशा कासपनों की  तरह टूट जाती हैसुबह होते कितनी जिंदगीघर जैसा लगते हुए भीअब यहाँ कोई घर नहीं हैथक गए अब  सारे रास्तेबाकी कोई सफर नहीं हैकोल्हू

5

पोएट्री मनजमैंट

14 अगस्त 2016
0
2
0

अब बासी शब्दकोशों परफफूंद की तरह उगे छन्दों मेंउलझी हुई कविता दाद खाज की तरह खुजलाती हैअंतःवस्त्र खोलकरगुप्तांग दिखाती हैनंगे समय का यह नंगा सच हैऊलजलूल सी पुरस्कार में गच हैइस बंद समय में कुछ खुलता हैउद्देश्यहीन भी उद्देश्य में झूलता हैफाटक के बाद दरवाजादरवाजे  के बाद खिड़कीखिड़की के पल्ले बंद हैंकल

6

आज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी की

15 अगस्त 2016
0
0
0

आज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी कीजय बोलो महात्मा ग़ांधी कीकुछ बाढ़ पीड़ित कुछ सूखे मेंकुछ भरे पेट कुछ भूखे मेंकुछ माल काटते चाँदी कीआज सत्तरवीं फसल कटी  आज़ादी कीसब झंडे डंडे का खेल रहाकिसको कौन ढकेल रहाजन गण मन गण गाते गातेअब नौबत आ गयी धक्काबाजी कीआज सत्तरवीं फसल कटी आज़ादी कीकोई नंगा भूखा सोया हैसूखी आँखों

7

यह कौन सा कालखंड है

22 फरवरी 2018
0
1
0

गांव वाले मेरा गांव पूछते हैंशहर वाले मेरा शहर पूछते हैंजाति वाले मेरी जाति पूछते हैंधर्म वाले मेरा धर्म पूछते हैंदेश वाले मेरा देश पूछते हैंप्रदेश वाले मेरा प्रदेश पूछते हैंराष्ट्र वाले मेरा राष्ट्र पूछते हैंखुदा वाले मेरा खुदा पूछते हैंपार्टी वाले मेरी पार्टी पूछते

8

जब कभी मेरा मुझसे सामना होता है

26 फरवरी 2018
0
1
0

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए