व्रत ग्रंथों और पुराणों में असंख्य उत्सवों का उल्लेख मिलता है। ‘उत्सव’ का अभिप्राय है आनन्द का अतिरेक। ’उत्सव’ शब्द का प्रयोग साधारणतः त्यौहार के लिए किया जाता है। उत्सव में आनन्द का सामूहिक रूप समाहित है। इसलिए उत्सव के दिन साज-श्रृंगार, श्रेष्ठ व्यंजन, आपसी मिलन के साथ ही उदारता से दान-पुण्य किये जाने का प्रचलन भी है। वसंत इसी श्रेणी में आता है।
’वसन्त्यस्मिन् सुखानि।’ अर्थात् जिस ऋतु में प्राणियों को ही नहीं, अपितु वृक्ष, लता आदि का भी आह्लादित करने वाला मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है, उसको वसन्त कहते हैं। वसंत प्रकृति का उत्सव है, अलंकरण है। इसीलिए इसे कालिदास ने इसका अभिनंदन ’सर्वप्रिये चारुतरं वसन्ते’ कहकर किया है।
वसंत में नृत्य-संगीत, खेलकूद प्रतियोगिताएं तथा पतंगबाजी का विशेष आकर्षण होता है। ‘हुचका, ठुमका, खैंच और ढ़ील के चतुर्नियमों में जब पेंच बढ़ाये जाते हैं तो देखने वाले रोमांचित हो उठते हैं। ऐसे में अकबर इलाहाबादी की उक्ति “करता है याद दिल को उड़ाना पंतग का।“ सार्थक हो उठती है। वसंत पंचमी के दिन जब आम जनमानस पीले वस्त्र धारण कर, वसन्ती हलुआ, पीले चावल और केसरिया खीर का आनंद लेकर उल्लास से भरी होती है, तब सुभद्राकुमारी चैहान देशभक्तों से पूछती है-
मैं शैल-शिला, नदिका, पुण्यस्थल देवभूमि उत्तराखंड की संतति, प्रकृति की धरोहर ताल-तलैयों, शैल-शिखरों की सुरम्य नगरी भोपाल मध्यप्रदेश में कर्मरत हूँ। मैंने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से एम.कॉम. किया है। घर और दफ्तर के बीच झूलते हुए इंटरनेट की दुनिया मेरे लिए 'घर से बाहर एक घर' है, जहाँ मैं एक ब्लॉगर www.kavitarawat.com के रूप में प्रतिष्ठित होकर कविता, कहानी, संस्मरण और समसामयिक विषयों पर सरलतम अभिव्यक्ति द्वारा देश-दुनिया से अपने आप को जोड़े रखती हूँ। मेरे कई लेख, कविता, कहानी और संस्मरण देश के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे, जिनसे मुझे लेखन के लिए प्रोत्साहन, मनोबल और ऊर्जा मिली।
मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं के साथ-साथ अपना कुछ सामाजिक दायित्व निर्वहन कर सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से उन्हें लेखबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ और अपने इस प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर रहूँ। D
हमारी भारतीय संस्कृति में विभिन्न धर्म, जाति, रीति, पद्धति, बोली, पहनावा, रहन-सहन वाले लोगों के अपने-अपने उत्सव, पर्व, त्यौहार हैं, जिन्हें वर्ष भर धूमधाम से मिलजुलकर मनाये जाने की सुदीर्घ परम्परा है। ये उत्सव, त्यौहार, पर्वादि हमारी भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की अनूठी पहचान कराते हैं। रथ यात्राएं हो या ताजिए या फिर किसी महापुरुष की जयन्ती, मन्दिर-दर्शन हो या कुंभ-अर्द्धकुम्भ या स्थानीय मेला या फिर कोई तीज-त्यौहार जैसे- रक्षाबंधन, होली, दीवाली, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि, क्रिसमस या फिर ईद जनमानस अपनी जिन्दगी की भागदौड़, दुःख-दर्द, भूख-प्यास सबकुछ भूलकर मिलजुल के उल्लास, उमंग-तरंग में डूबकर तरोताजा हो उठता है।
इन सभी पर्व, उत्सव, तीज-त्यौहार, या फिर मेले आदि को जब जनसाधारण जाति-धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मिलजुलकर बड़े धूमधाम से मनाता है तो उनके लिए हर दिन उत्सव का दिन बन जाता है। इन्हीं पर्वोत्सवों की सुदीर्घ परम्परा को देख हमारी भारतीय संस्कृति पर "आठ वार और नौ त्यौहार" वाली उक्ति चरितार्थ होती है।
आइए इन्हीं लोक जीवन के तीज त्यौहारों के रंग में रंगने के लिए आप भी धीरे-धीरे मेरे साथ-साथ चलते हुए थके हारे मन को तरोताजा कीजिए।