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मुझे मोती की माला की चाह नहीं, तू लहरों के चूमे हुए, रेत में लिपटे हुए, कुछ कोरे सीपी ले आना, उन्हें पिरोकर एक हार बना लूँगी | मुझे सोने के कंगन नहीं लुभाते कभी, तू शहर के पुराने बाज़