प्रीत की रीत सदा चली आई।
भला कैसे कोई बचें भाई।।
मैं भी प्रीत डगर पर चल पड़ी।
दिल से दिल की बात चल पड़ी।।
एक दूजे में अक्श छुपा रखा है।
इशारों-इशारों में बातें कर रहे हैं।।
जमाने की निगाहों से बचा रखा है।
खुद को खुद से छुपा रखा है।।
हमारी प्रीत तो रुहानी है अंश।
प्रीत से प्रीत की मिठास बना रखा है।।
प्रीत में मेरा महबूब मेरी रुह में बसता है।
जीवन की हर रीत में मुझे संभालें रखता है।।
प्रीत डगर फूलों व कांटों दोनों का सफर है।
कभी खुशी तो कभी गम प्रीत का हमसफ़र है।।