संत श्रेष्ठ श्री नागरी दास जी ने कहा है
इश्क गली महबूब कि यहां ना आवे कोय।
आवे सो जीवे नहीं जीवे सो बौरा होय।
प्रेम के रास्ते पर जो आता है वह पागल हो जाता है और इस रास्ते पर जीने वाला हर इंसान पागल ही होता है।
पहली बात इश्क के नशे में चूर इंसान जिंदा नहीं रहता है, अगर जिंदा रहता भी है तो वह बुरी तरह से पागल हो जाता है। यह पागलपन उसकी ताकत हो जाती है।
आजकल लोग चिल्लाते घूमते हैं कि मेरा उनसे से प्रेम हो गया, अरे बावरे ! प्रेम चिल्लाने की चीज नहीं है, प्रेम तो जिया जाता है जिया।
वह भी कदम कदम पर आंसू बहा के, ठोकरें खा के, हृदय को दबा दबा कर चीख चीख के जिया जाता है।
जिससे प्रेम होता है उससे कोई कामना नहीं होती, कोई चाह नहीं होती, कोई इच्छा नहीं होती , यहां तक जो आप चाहते हैं उसका पूरा होने का कोई वहां पर परिणाम ही नहीं होता।
अज्ञेय ने कहा है-
मैं कब कहता हूं प्यार करूं तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले।
अरे महाराज प्यार में तो मिलन की भी इच्छा पूरी नहीं होती।
तिल तिल तड़पना ही तो प्यार है।
किसी सुंदरी के रूप पर मोहित हो जाना, उसको अपना हृदय दे बैठना , उससे कोई चाह रखना
यह प्यार नहीं ,
अरे पगले ! यह तो वासना है वासना।
वासना कभी प्रेम नहीं हो सकती, वासना इंद्रियों की तृप्ति के लिए होती है। वाह भी ऐसी तृप्ति जो कभी शांत नहीं होती। थोड़ी देर के लिए शांत होती है फिर जाग उठती है। उसको शांत करने के लिए दौड़ते रहते हैं, दौड़ते रहते हैं ,दौड़ते रहते हैं।
हाय, ना जाने यह वासना क्या-क्या करा लेती है?
उसके नाम रखते घूमते हैं हम।
कभी हम उसे इश्क कहते हैं तो कभी हम उसे प्यार कहते हैं।
कभी हम उसे लव कहते हैं तो कभी हम उसे अपनी जिंदगी कहते हैं।
अजीब है यह जिंदगी! कभी भी समाप्त ना होने वाली भूख को हम तृप्ति मान लेते हैं। कभी ना मिटने वाली प्यार को हम प्रसन्नता मान लेते हैं।
वासना का रास्ता धोखा देता है सिर्फ धोखा, लेकिन प्रेम का पंथ कभी धोखा नहीं देता, हमेशा आनंद देता है आनंद।
प्रेम तो मीरा की तरह झूमना सिखाता है, वासना गणिका की तरह रोना सिखाती है। प्रेम गोपियों की तरह मदमस्त हो जाना सिखाता है, वासना मिट जाना सिखाती है।
ऐसा मिटना जिसका न आदि है न अंत।
मीरा के इकतारे से निकलने वाली आवाज प्रेम का परिपाक है,
गोपियों का कृष्ण के वियोग में तड़प तड़प कर जीना और उद्धव के संदेश सुनाए जाने पर भी उपेक्षा कर देना यह प्रेम का परि पुष्ट स्वरूप है।
गोपियों ने जो बियोग सहा ,क्या है किसी में सामर्थ्य?
वहां कोई वासना नहीं थी, वहां कोई चाह नहीं थी बस एक मात्र अपने प्रियतम के प्रति प्रेम था।
मीर कहते हैं -
आह किस ढबसे रोइए कम- कम ,
शौक हद से ज्यादा है हमें।
प्यार में दो चार आंसु गिरा कर कोई स्वयं को प्रेमी नहीं डरता सकता मेरी डंके की चोट पर कह रहा है कि यहां पर हद से ज्यादा रोना पड़ेगा।
हमें क्या पता था हम तो दीवाने बन कर चल दिए, लेकिन जब रास्ता देखा तो इतना पतला था और फिसलन भरा था कि वहां एक कदम चलना भी मुश्किल था। ऐ प्यार के मारग, तू काहे को इतना निष्ठुर बन बैठा।
चाह मेरी नहीं कोई सुर धाम की,
चाह हमको नहीं भोग और काम की।
चाह मेरी यही प्यार करके जियूं,
इश्क की राह पर मैं जहर भी पियूं।।
अरे महाराज, कहां ही किसने था कि आपको यहां पर अमृत मिलेगा।
यह तो आग का दरिया है यहां डूब के जाना है। पता नहीं उबरना हो अथवा ना हो।
गारंटी का कोई काम नहीं इस बाजार में।
बख्शी हंसराज ने कभी कहा था-
कठिन पंथ यह पांव धरे को ,खाड़े की सी धारा ।
नेमी कटि कटि परत बीच ही , उतरत पारा।।
चले तो बड़ी मौज से थे , क्या पता था कि इतना रास्ता कठिन होगा!
कट कट के गिर जाना होगा इस रास्ते में!!!!
हाय रे, भयंकर नशे में था! कुछ सोचा समझा ही नहीं।
लेकिन अब पता चला कि यहां पर तो पागल होना ही पड़ेगा।
कट कट के जीना ही पड़ेगा।
कदम कदम पर रोना ही पड़ेगा।
चल , जी लेते हैं प्यार की जिंदगी।
There is a pleasure sure in being mad,
Which none but mad men know.
निश्चित रूप से पागल तो होना ही था होना ही पड़ेगा।
पागलपन, बेहोशी ,बेचैनी हाय हाय हाय
बस इस प्यार के राह पर इसी में मजा है। अब इनसे दूर होना भी सजा लगता है।
यही तो गीता का अनन्य प्रेम भाव है ।
शायद बाइबल में इसी को करुणा से ईश्वर के पास जाने का रास्ता बताया गया है।

रास्ता कठिन है, लंबा है,
कबीर ने इसी रास्ते को कहा है
लंबा मारग दूरि घर विकट पंथ बहु मार।
जब तुम ही लिया गया है तो निभाया भी जाएगा लेकिन हां प्रेम को वासना मत समझ बैठना।
प्रेम पवित्र है यज्ञ की आहुति की तरह।
प्रेम पवित्र है गंगा की लहरों की तरह।
लेकिन वासना कलुषित है नाली के कीड़ों की तरह। मत डालो उसे प्रेम रूपी पियूष में।
आचार्य अनुज कुमार शर्मा "रामानुज"