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भगवत गीता के उपदेश के बारे में

पहला अध्याय अर्जुन का उदास हो जाना संजय राजा धृतराष्ट को रणभूमि का हाल सुनाता है - पांडवो और कौरवो की फौजे रणभूमि मे सजधज से खरी है ! दुर्योधन पांडवो की फ़ौज पर नज़र डालता है और अपने गुरु द्रोणाचार्य जी से कहता है - जरा पांडवो की फौज पर, जो आपके शिस्य यानी राजा द्रुपद के बेटे ने आरास्ता की है , नज़र डालिये ! जरा उनके सूरमाओ को देखिये और अपने सरदारों पर भी तवज्जुह डालिये ! भीष्म , कर्ण वगैरह कैसे कैसे जान पर खेलने वाले बहादुर युद्ध के लिए तैयार है ! मुझे अपनी फौज, हालाँकि इसके सेनापति भीष्म है , नाकाफी और पांडवो की फौज , जिसके सेनापति भीम है, जबरदस्त मालूम होती है ! इसलिए सब सिपाहियों और सरदारों के लिए मुनासिब है की जहाँ कही भी नियुक्त हो भीष्म की रक्षा का पूरा ख्याल रखे ! दुर्योधन का दिल बढ़ाने के लिए भीष्म पितामह अपना शंखनाद बजाकर घोर नाद पैदा करते है जिसको सुनकर दूसरे सरदार भी अपने अपने संख फूँकते है और पाँडवो की फ़ौज के सरदार भी शंख बजाकर जमीन और आसमान शोर से भर देते है ! शंख का बजना युद्ध की त्यारि की घोषणा है ! उस वक़्त अर्जुन भी रणक्षेत्र में आता है और धितराष्ट्र के बेटो को जंग के लिए मुस्तैद देखकर अपनी कमान संभालता है और अपने रथवान यानी कृष्ण महाराज से कहता है - जरा रथ को दोनों फौजो के बीचोबीच खरा कर दीजिये जिससे मालूम हो जाये की जुंग में किन किन से सामना पड़ेगा और मै देख सकूँ कि धृतराष्ट के दुर्बुद्धि बेटे को लड़ कर ख़ुश करने के लिए कौन कौन सुरमा आये हैं ! संजय ने बयान किया कि अर्जुन के ये वचन सुन कर कृष्ण जी ने हाँक कर दोनों फौजो के बीच खड़ा कर दिया और कहा - अर्जुन ! देखो वह है कौरवो की फौज ! अर्जुन नज़र घुमाता है और देखता है की जिनसे जंग करनी है वे सब रिश्तेदार ही है.

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