प्रेम का
दूसरा नाम ही त्याग है।
राधा का प्रेम कान्हा
के लिये सदैव पूजनीय रहा ....
परन्तु फिर रुक्मणी के
प्रेम को नज़रअंदाज़
किया जाना उचित है.....
"हाँ"....
सच तो यही है प्रेम हमेशा
त्याग मांगता है,,
कभी अपने लिए तो,
कभी अपनों के लिए...!!
-हार्दिक महाजन