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अनसुलझी पहेलियों की खुली किताब हूं। दूसरों की नहीं अपनीशख्सियत का खुशनुमा एहसास हूं। अभी कई पन्ने पलटने बाकी है। कई उम्मीदों का मेला बाकी है। सफर अभी लंबा है। और इरादा भी पक्का है। हर पन्ना खास है। बस