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"सिंदूर "

27 सितम्बर 2021

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सिंदूर:-  किसी भी औरत की खुबसूरती को चार चाँद लगा देता है वो है उसका  श्रृंगार और सभी जानते हैं कि औरत का श्रृंगार सिंदूर के बिना पुरा नहीं माना जाता है।

सुहागिनो की पहचान है सिंदूर, सही मायनों में सिंदूर किसी भी औरत की जिंदगी में सबसे कीमती श्रृंगार होता है, जिस माँग में सिंदूर वो एक इज्जतदार औरत और जिस माँग मे सिंदूर नही वो बेचारी, अभागी, ना जाने क्या-क्या।

कभी किसी ने यह सोचा औरत तो सबूत दे देती है कि वो शादीशुदा है और अपने पति की लम्बी उम्र के लिए सिंदूर लगा लेती है, वो पुरा श्रृंगार अपने पति के लिए करती है क्योंकि वो अपनी माँग में अपने पति के लिए सिंदूर लगाकर रखती है, मगर कोई भी पति ऐसा कुछ करता है और जो कुछ भी करता है क्या वो तुलनात्मक रूप से सही है?

क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि कई औरतों अपने को सिंदूर की कीमत भी चुकानी पड़ती है ! जी हाँ  कीमत ! दुकानदार को पैसे दे कर नहीँ, पति को उसके नाम का सिंदूर लगाने की कीमत और वो इतनी ज्यादा कि औरत अगर चाहे तो उस कीमती से दुनियां के सारे कीमती ऐशो-आराम खरीद ले। मगर नहीं करती कोई औरत ऐसा क्योंकि सिंदूर से ही तो पहचान होती है औरत की,  लेकिन कभी कभी इसकी कीमत बहुत महंगी भी पङ जाती है।

एक ऐसी ही कहानी है स्नेहा की; जिसको चुकानी पङी अपने पति को अपनी मांग में भरे उस सिंदूर  की कीमत जो वो अपने ही पति के लिए लगाती थी।

स्नेहा को भी जब महसूस हुआ कि सिंदूर की कीमत उसे बहुत महंगी पड़ रही है वो अन्दर ही अन्दर इस रिवाज़ को गालियाँ दे रही थी कोस रही थी उस घङी को  जिस घङी उसकी शादी हुई थी। अक्सर अपनी माँ से वो सुना करती थी "बेटी बिना सिंदूर के औरत की कोई इज्जत नहीं होती समाज में"। 

पर अब स्नेहा यह सोच रही थी अगर वही सिंदूर भरने वाला जब उसकी इज्जत सरेआम खराब करें और अपने छोटे से औछे स्वार्थ के लिए एक पति ही अपनी पत्नी को जिसको वो सामाजिक रीति रिवाज से ब्याह कर लाया है दूसरों के सामने यूँ परोसे जैसे कोई मिठाई तो क्या फायदा ऐसे सिंदूर का और ऐसे पति के होने का?

मानव , स्नेहा का पति, एक ऐसा इन्सान जो अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता था स्नेहा की जब मानव  से शादी हुई तो उसे लगा उसे इतना स्मार्ट, समझदार और पैसे वाला पति और घर-बार मिला है उसकी तो किस्मत ही खुल गई, सब कुछ तो है मानव  के पास और क्या चाहिए जिंदगी में। लेकिन जल्दी ही यह भ्रम उस समय टूटा जब पहली बार मानव ने अपने परिवार वालों के सामने स्नेहा की बेइज्जती की थी उस पर हाथ उठाया और गंदी गंदी गालियां दी थी वो भी एक छोटी सी बात पर जिसमें उस की कोई ग़लती भी नही थी मगर बेचारी स्नेहा संस्कारों के कारण चुप चाप वो अपमान सह गई। मगर फिर ये सिलसिला ही चल निकला हर छोटी- छोटी बात पर गाली-गलौच, हाथ उठाना मानव की आदत बन चुका था और एक दिन, मानव- यह क्या बनाया है तुम ने तेरी माँ ने तुम्हें सिखाया नही खाना कैसे बनाते है( गंदी गाली देते हुए)। हर छोटी छोटी बातों पर डांटना और पीटना वो भी किसी के भी सामने । किस बात पर , कब, किस के सामने मानव स्नेहा की बेइज्जती कर दे पता नहीं चलता था और इसी बात का डर लगा रहता था स्नेहा को। वो अपनी तरफ से हर संभव कोशिश में लगीं रहती थी कि  मानव को खुश रखने में , कभी उसके पंसद का खाना बनाकर या जिस बात से मानव  को खुशी मिलें वो सब लेकिन इतना करने के बावजूद मानव  ढूंढ ही लेता था स्नेहा को डांटने या मारने  का बहाना। 

स्नेहा ; मानव का हर काम करती उसको हर चीज हाथों में देना, घर से बहार का उसका काम करना, फिर भी स्नेहा; मानव को खुश नहीं कर पाती थी।  मानव को तो जैसे ऐसी कठपुतली चाहिए थी जिसके मुँह में आवाज ना हो और चुप चाप इशारों पर नाचती रहे उसका हर आदेश बिना सवाल किए मानती रहे। स्नेहा हमेशा यही सोच कर चुप रहती शायद उसका पति कभी तो उसकी क़दर जरूर करेगा लेकिन हर बार स्नेहा के साथ कुछ नया ही होता रहता था।

जब भी कभी स्नेहा ने कोशिश की भी पूछने की आप मेरे साथ ऐसे क्यों करते हो, आप मेरे से क्यों खुश नहीं रहते तो मानव यह बातें सुनकर और आगबबूला हो जाता और कहता "तुम क्या चाहती हो मैं तुम्हारी गुलामी करूँ? जोरू का गुलाम बन जाँऊ? और ऐसा तुम करती भी क्या हो ( गंदी गाली देकर) जो मैं खुश रहूँ या तुम्हारी तारीफ करूँ?" ऐसी जली-कटी बातें बोलकर मानव को एक पल भी एहसास नही होता था कि स्नेहा पर क्या बीतती होगी, उसे तो बस अपने से मतलब होता था।  स्नेहा ने अब बस अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया हो इसके कारण मानव की हिम्मत और बढ़ने लगी। स्नेहा के चुप रहने के कारण अब वो समझ गया था कि मैं कुछ भी करूँ यह मुझे छोड़ नही सकती और इधर स्नेहा यह सोचकर खमोश सी रहने लगी शायद वो उसकी खामोशी को समझ जाऐगा कभी ना कभी और कभी अगर  कोई बाहर वाला स्नेहा की तारीफ कर दे कोई तो मानव को जैसे किसी ने आग लगा दी हो उस दिन तो स्नेहा की शामत आ जाती, रात दर्द और आंसुओं मे कटती थी उसकी। 

एक दिन बाॅस की पार्टी में स्नेहा को मानव के साथ देखकर बाॅस हैरान होते हुए बोला "क्या यह तुम्हारी पत्नी है मानव?  तुमने तो कभी बताया भी नहीं! इतनी खुबसूरत हसीन पत्नी  है तुम्हारी!"  मानव ( हँसते हुए) क्यों सर आप मज़ाक कर रहे है।

बाॅस -  अरे सच्ची यार बिल्कुल भारतीय नारी आजकल भला कोई साड़ी में रहता है! सच्ची मानव तुम बहुत लक्की हो और ये इतनी हसीन है तो फिर तो खाना भी बहुत अच्छा बना लेती होगी मानव?

मानव -जी सर, स्नेहा अच्छा खाना बना लेती है कभी- कभी।

बाॅस - मिस्टर मानव कब बुला रहे हो डिनर पर; हमें भी मौका दो खाने का, (स्नेहा की तरफ देखते हुए) मेरा मतलब खाना खाने का।

मानव -  सर आपका ही घर है वो कभी भी आ जाए। 

बाॅस  - (स्नेहा को देखते हुए ) हाँ - हाँ जरूर अब तो आना ही पड़ेगा। मानव तुम बोल रहे थे ना  बिजनेस टूर का,  पर मैं सोच रहा हूँ इस बारे तुम्हें आगे करूँ। 

मानव - प्लीज सर मुझे एक मौका दें मैं पुरी कोशिश करूँगा अपना बेस्ट देने का आपको तो पता है सर मैं कितने सालों से ट्राई कर रहा हूँ। (स्नेहा को घुरते हुए) बाॅस -जरूर जरूर,  कुछ खाया आपने स्नेहा जी?

स्नेहा- हाँ जी मैंने खा लिया, थैंक्स ।

 बाॅस - मानव ध्यान रखना स्नेहा जी का, और स्नेहा जी कोई भी प्रोब्लम हो मानव की तरफ से तो  बस फोन कर दें आप मैं खबर लूंगा इसकी (हंसते हुऐ), ओह फोन कैसे करेंगी आप मेरा नम्बर तो होगा ही नहीं आपके पास! 

मानव - सर मैं कल इसके फोन में  आपका नंबर सेव करके आपको मैसेज कर दूंगा ( मानव अपने बाॅस की ललचाई नज़रों को भांप चुका था) 

बाॅस- थैंक्स मानव ।

स्नेहा- सर अब हम चले बहुत देर हो रही है।

बाॅस- थोड़ी देर और रुक जाते मानव

स्नेहा - प्लीज सर बहुत देर हो रही है।

बाॅस - आप रुकती तो मुझे अच्छा लगता पर कोई बात नहीं इट्स ओके , बाय स्नेहा जी। 

स्नेहा को अच्छा नहीं लगा बाॅस का ऐसा व्यवहार देखकर, मानव मुझे आपके बाॅस कुछ ठीक नहीं लगे।

मानव - क्या मतलब (चिल्लाते हुए ) हद है स्नेहा ऐसा भी क्या किया उन्होंने एक तो तुम्हें इज्जत दे रहे थे देखा नहीं तुमने, मेरे कारण तुम्हें कितनी इज्जत मिल रही थी। वहाँ और भी कई लोग थे पता नही तुम अपने आपको क्या समझती हो, कोई हूर की परी नहीं हो और ना कोई राजकुमारी।

मानव की ऐसे बातें सुनकर स्नेहा बस चेहरा देखती रह गई उसका और अगली सबुह जैसे ही स्नेहा ने अपना फोन देखा मानव के बाॅस नवीन का मैसेज देखकर हैरान  सी गई मानव, मानव देखिए ज़रा।

मानव- क्या हुआ? कौन सी आफत आ गई?

स्नेहा - आपके बाॅस नवीन ने देखो क्या मैसेज किया इतना घटिया सा और वलगर!

मानव - देखूं जरा (हँसते हुए) उन्हें मज़ाक करने की आदत है कोई बात नहीं तुम गुडमोर्निग विश कर दो नहीं तो उन्हें बुरा लगेगा।

स्नेहा- (गुस्सा होते हुए) मैं नहीं करूंगी, मुझे  नहीं करनी बात प्लीज,  यह आपके बाॅस है आप समझे मेरे बाॅस नही हैं वो।

मानव- मैं तो हूँ ना तुम्हारा बॉस, फोन खिंचते हुए स्नेहा से "एक मैसेज क्या बोल दिया बस शुरू हो गई नहीं भेज सकती, मैं भेज देता हूँ अब बोलो क्या करोगी?

 धिरे -धिरे यह चीजें शुरू होने लगी, कभी कोई नानवैज चुटकुला, कभी कोई गंदी  पिक और एक बार तो एक पोर्न क्लिप भी भेज दी , स्नेहा को उस दिन बहुत शर्म महसूस हुई पर मानव ने वही बात "उनको मजाक करने की आदत है" और कुछ भद्दी गालियां दे कर चुप करा दिया।

 स्नेहा, बस मजबूर लाचार सी होगई और  मानव उसके फोन से हमेशा स्नेहा बनकर अपने बाॅस नवीन को जवाब देने लगा और चैट भी करने लगा। 

एक दिन मानव; स्नेहा से "पता है तुम कितनी लक्की हो मेरे बाॅस कभी भी ठीक से किसी से बात नही करते पर तुम से बात करना उन्हें पसंद है",  स्नेहा बस अन्दर ही अन्दर घुट रही थी। अब अक्सर मानव शराब पी कर घर आने लगा, कभी हिम्मत से स्नेहा पुछ ले तो जवाब मिलता " बाॅस को मना कर दूँ, कोई मिटिंग थी" और मिलती बार सारी गालियां और दर्द और आंसुओं से भरी रातें ।

फिर एक दिन मानव आया और चुपचाप आकर लेट गया।  स्नेहा ने पुछा कि क्या हुआ आपको?  ठीक तो हैं ना? (माथा छुते हुए) ।

मानव -  हाँ बस थोड़ा सा सिर दर्द है प्लीज तुम एक कप चाय बना दो।

स्नेहा - जी,  अभी लाई,  आज पहली बार मानव इतने प्यार से कैसे बात  कर रहे हैं!  ठीक तो है ना ! यह स्नेहा  सोचने लगी।तभी मानव (आवाज देते हुए ) सुनो अपनी भी चाय  ले आना साथ बैठकर चाय पीऐंगे। स्नेहा हैरान थी मगर खुशी थी उसको ।

मानव - चाय बहुत अच्छी बनी है स्नेहा।स्नेहा- (आँखें भरते हुए) थैंक्स,  

मानव- स्नेहा साॅरी मैंने तुम्हें  कितना गलत समझा और तुम हमेशा मेरे लिए सोचती हो कितना प्यार करती हो मेरे से (मानव रोते हुए) मैं तुम्हारे लायक नहीं  हूँ, स्नेहा , एक बात बोलूं तुम मुझे छोड़ दो।

 स्नेहा-  (रोते हुए) ऐसे क्यों बोल रहे हो मानव आपको पता है मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, नहीं रह सकती आपके बिना। सच में! मानव गले लगाते हुए।

अब धीरे-धीरे मानव बहुत चेंज हो गया था अब हमेशा स्नेहा को घूमाने फिरने,  उसकी छोटी छोटी खुशियाँ का ध्यान रखने लगा था स्नेहा को लगा जैसे पुरी दुनियां की खुशियाँ उसकी झोली में आ गई हों,  हर वक्त मानव का बोलना "स्नेहा अपना ध्यान रखा करों और हाँ अपने पर जितना खर्च करना चाहती हो करा करो पर मुझे मेरी स्नेहा सबसे अलग चाहिए एकदम अलग", अच्छा स्नेहा तुम कुछ वेस्टर्न ड्रेस क्यों नहीं ट्राई करती हो इतनी खूबसूरत हो यार कभी कभी तो पहन ही सकती हो,  दुनिया को भी तो पता चला मानव की वाईफ हर कपड़े में खूबसूरत दिखती है।

स्नेहा - वो तो ठीक है पर मुझे अजीब सा फील होता है।

मानव-  अरे यार मैं हूँ ना, तुम्हें मेरी खातिर तैयार होना है चलो आज मैं तुम्हें अपनी पसंद की ड्रेस गिफ्ट करूँगा।

स्नेहा-  (गले लगाते हुए) मानव, आप मुझे बहुत प्यार करते हो ना ? 

मानव- (हँसते हुए)क्यों कोई शक है क्या?

स्नेहा - नहीं । 

स्नेहा खुश तो बहुत थी पर हैरान भी थी इतना चेंज कैसे आ गया मानव में उसे क्या पता था यह तुफान आने से पहले की दस्तक  थी जो उसे सुनाई नहीं दे रही थी।

एक दिन अचानक मानव घर आकर खमोश सा था और स्नेहा के "क्या हुआ, आज इतनी जल्दी आप आ गये?  सब ठीक तो है ना? 

मानव- हाँ -हाँ बस थोड़ा सा झगड़ा हो गया मेरा बाॅस से और मैंने काम छोड़ दिया।

स्नेहा- क्या?  स्नेहा पर  क्यों?

मानव- रहने दो ना यार।

स्नेहा - प्लीज क्या हुआ मुझे बताओ। 

मानव- यार वो बाॅस तुम्हारे बारे फालतू बोल रहे थे मेरे से रहा नहीं गया बस मैंने सुना दिया।

स्नेहा - मैंने पहले ही बोला था आपको वो सही नहीं लगे मुझे अब क्या करोगे आप?

मानव  -पता नहीं,  बस अभी एक ही बात की टेंशन लगीं हुई है कहीं बाॅस से वो जो लोन लिया था मैंने उसके लिए कोई पंगा ना कर दे।

स्नेहा - ऐसा कुछ नहीं होगा आप परेशान ना हो।

स्नेहा अब हमेशा पेरशान सी रहने लगी मानव  को चुपचाप देखकर । अचानक एक दिन बाॅस का फोन आया मानव को कि "लोन एक महीने में ही वापस चाहिए कंपनी को नहीं तो रिकवरी का केस कर दिया जाऐगा"।

 मानव- ऐसे कैसे कर सकते हैं आप।

स्नेहा - आप जाकर एक बार मिलें तो अपने बाॅस कुछ तो हल मिलेगा।

मानव-  तुम ठीक कहती हो मैं जाकर मिलता हूँ उन्हें। 

स्नेहा इधर पेरशान थी कि इतनी मुश्किल से मेरी और मानव  की जिंदगी में खुशियाँ आई और यह क्या हो गया! 

उस दिन देर रात तक मानव घर नहीं आया, स्नेहा पेरशान हो गई कहाँ चले गए मानव,  ना चाहकर भी स्नेहा को मानव के बाॅस को फोन करना पड़ा।

रिंग टोन बजती है " भिगे होंठ तेरे, प्यासा दिल मेरा" स्नेहा ने मन ही मन सोचा कितनी गंदी रिंगटोन है तभी, 

नवीन यानी बाॅस - जी स्नेहा जी, आज कैसे आपने याद कर लिया हमें! 

स्नेहा- वो मानव आज आप से मिलने आए थे क्या?  

बाॅस- हाँ -हाँ,  आया तो था पर क्यों? स्नेहा - मानव अभी तक घर नही आए हैं।

बाॅस-  क्या? आप पेरशान ना हों,  मैं पता करता हूँ।

(सारी  रात नवीन के घर ना आने पर स्नेहा के मन में बहुत सारी बातें आने लगी। सुबह 5 बजते ही जैसे ही घर की डोर बेल बजी)

 स्नेहा - मानव! कहाँ थे आप पुरी रात, आपको पता है ? मैं कितनी पेरशान सी हो गई थी , कहाँ थे आप ?

मानव- बिना कुछ बोले अन्दर जाकर बैड पर लेट गया।

स्नेहा - क्या हुआ  आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे? प्लीज मुझे बहुत डर लग रहा है। 

मानव- कुछ नहीं हुआ सब ठीक है, तुम पेरशान ना हो सब ठीक हो जायेगा।

स्नेहा- ऐसे कैसे नहीं कुछ हुआ है? आप पुरी रात घर नहीं  आए,  ना मेरा फोन उठा रहे थे, कुछ तो बात हुई है आप मुझ से कुछ छुपा रहे हो, प्लीज मुझे बताएँगे क्या हुआ?

बार बार स्नेहा के पूछने पर मानव चिल्लाते हुए हाँ - हाँ हुआ है मैं कल मरने जा रहा था सोच लिया था मैंने अब मुझे नहीं जीना है, परेशान हो गया हूँ स्नेहा कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। क्या करूँ कुछ नहीं समझ आ रहा है कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही ऊपर से कंपनी के लोन की टेंशन है कैसे होगा स्नेहा ?

स्नेहा - आप पेरशान ना हो सब ठीक हो जायेगा।

मानव -  कुछ नहीं ठीक होने वाला है मुझे पता है कुछ नहीं हो सकता है। 

मानव  को पेरशान देखकर स्नेहा भी अब पेरशान हो गई थी स्नेहा मानव  को ऐसे उदास देखकर सोचने लगी मुझे हीषकुछ करना चाहिए आज मानव को मेरी जरूरत है मैं मानव के बाॅस के पास जाऊँगी और बात करूँगी शायद वो समझ जाए और मानव को थोड़ा सा वक्त दे दे लोन चुकाने के लिए यही सोचकर अगले दिन सुबह तैयार होते हुए देखकर मानव पूछने लगा "कहाँ जा रही हो इतनी सुबह?"

स्नेहा - मुझे कुछ काम है  मैं थोङी देर में आ जाऊँगी। 

मानव- ओके,  प्लीज ध्यान से जाना।

स्नेहा के जाते ही मानव ने आपने बाॅस नवीन को फोन किया और कहा हमारा प्लान कामयाब हो रहा है  सर, शायद स्नेहा आपके पास आ रही है जैसे अपने बोला था वैसा ही मैंने किया पर प्लीज सर उसे जरा सी भी भनक नहीं लगनी चाहिए कि ये मेरा और आपका प्लान है नहीं तो इतने महिनों की मेरी मेहनत चौपट  हो जाऐगी।

बाॅस - ओके, मानव,  चलो फोन रखो अब कभी भी  स्नेहा आ जाऐगी बाय, ऐंड गुड जाब।

तभी डोरबैल बजती है, बाॅस दरवाजा खोलकर ( स्नेहा को देखकर) आज कैसे आप मेहरबान हो गईं?

स्नेहा - आपने क्यूँ खोला दरवाजा कोई नौकर नहीं है?

बॉस- नहीं, और ना कोई ओर मैं यहाँ अकेला रहता हूँ, आइए अंदर आइए, बैठिए, क्या पेश करूँ आपकी खिदमत में ।

स्नेहा - झिझकते हुए सर मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।

बाॅस - हाँ हाँ जरूर पर पहले मुझे सर कहना बंद करो, काॅल मी नवीन ओनली, बोले क्या बात करनी है स्नेहा? 

(नवीन के स्नेहा जी को स्नेहा बोलने का अंदाज बेहद गंदगी भरा था जैसे कोई कुत्ता लार टपका रहा हो उसने एक अजीब सी आह भरी थी उसने स्नेहा को देखकर।)

स्नेहा- नज़रें झुका कर,  सर ।

(नवीन कहा ना सिर्फ नवीन कहिए मुझे अच्छा लगेगा आपके ग़ुलाबी होठों से मेरा नाम।) बाॅस ने टोकता हुऐ कहा ।

स्नेहा- ( अपना गुस्सा पर काबू रखते हुऐ) नवीन आप मानव को कुछ वक्त दे उन्हें जैसे ही नौकरी मिल जाएगी वो आप का लोन चुका देगा प्लीज आपकी हेल्प की बहुत जरूरत है सर मानव को भी नहीं पता मैं आपसे मिलने आई हूँ ।

नवीन -  मुस्कराते हुए क्या बात है स्नेहा जी आप तो बहुत प्यार करतीं हैं अपने पति से पर यह मेरे बस की बात नहीं है नहीं तो मैं आपकी जरूर मदद करता साॅरी स्नेहा जीडडड( जी पर जोर देते हुऐ)

स्नेहा - (उदास होते हुए) ओके सर कोई बात नहीं, फिर कुछ और उपाय तलाशती हूँ और उठने लगी। तभी नवीन ने स्नेहा को बैठने रहने का इशारा कर कहा "अच्छा स्नेहा  आप क्या क्या कर सकती हैं मानव के लिए? 

स्नेहा - बहुत कुछ या कुछ भी।

नवीन- वैसे मैं आपकी मदद एक शर्त पर कर सकता हूँ आप  मेरे लिए कुछ करें मैं आपके लिए कुछ !

स्नेहा -  घुरते हुए मतलब क्या है आपका?

नवीन- आप इतनी भी बच्ची नहीं हैं।

स्नेहा - आप बोलना क्या चाह रहे हैं  साफ साफ कहिऐ।

नवीन- देखिए  स्नेहा,  मैंने जब से आपको देखा है बैचैन सा हो गया हूँ हर वक्त आप मेरे दिमाग में छाई रहती है मैं सब लोन माफ कर दूंगा और मानव को और अच्छी पोस्ट पर रख लूंगा बस आप मेरी बन जाए और मुझे खुश कर दें किसी को कुछ नहीं पता चलेगा यह मेरा वायदा है बाकी आप सोच लें ।

स्नेहा - (आगबबूला होते हुए );आपकी इतनी हिम्मत भी कैसे हुई और यह सब कैसे बोल सकते हैं मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी आपसे मदद लेने की उम्मीद से आपके पास आ गई । 

नवीन- स्नेहा जी,  मुफ्त में किसी को कुछ नहीं मिलता आज की दुनिया में,  मैंने आपको बस ऑफर दिया जबरदस्ती नहीं की आगे आप समझदार हैं कुछ वक्त देता हूँ आपको अगले शनिवार तक का यह मेरे फ़ार्म हाउस का पता है आपका मन बदल जाए तो आ सकती हैं मैं इंतजार करूँगा। आने से पहले फोन कर देना मैं मानव को फोन कर के नौकरी पर रखने का बता दूंगा और साथ ही साथ एक हफ्ते के लिए बाहर भी भेज दूंगा तब तक आप मुझे खुश करती रहना, किसी को कानों कान खबर नहीं होगी और उसके आने से पहले आप घर पर वापिस होंगी।

स्नेहा - मुझे नहीं चाहिए आपकी मदद, छी।( कार्ड फेंक देती है)

नवीन- कोई बात नहीं मैसेज कर दूंगा पता फार्महाऊस का,  वक्त का पता नहीं होता स्नेहा जी।

 स्नेहा के जाने के बाद मानव को फोन करते हुए " मानव  वो इतनी जल्दी नहीं तैयार होगी मुझे लगता है तुम्हें कुछ और नाटक करना पङेगा,  वो तो ठीक है सर पर आपको अपना वायदा याद तो है ना ?, नवीन - हाँ, हाँ मानव तुम परेशान ना हो  अब तुम वो करो जिसे देखते ही वो ना चाहते हुए भी मेरे पास आ जाए। 

मानव-  जी सर बस समझो आपका काम हो गया। 

इधर स्नेहा रास्ते में  हुए यही सोच रही थी "मैंने ऐसी ग़लती कैसे कर दी मुझे जबकि पता था उस इन्सान की नीयत अच्छी नहीं है मैं मानव को सब कुछ बता दूंगी घर जाकर इससे पहले उन्हे पता चले और वो मुझे गलत समझे"।

जैसे ही स्नेहा घर पहुंची घंटी बजाती है पर दरवाजा ना खोलने के कारण हङबङाते हुए अपने पास रखी चाभी से लाॅक खोलते हुए अन्दर गई मानव की कलाई को खून से लथपथ देखकर यह क्या किया आपने मानव?

मानव-  मुझे माफ कर दो स्नेहा मैं अब जिन्दा नहीं रहना चाहता हूँ कुछ नहीं बचा मेरे पास , ना नौकरी, ना इज्जत और ना अब यह घर बचेगा। 

 स्नेहा - (रोते हुए ऐसा ) कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाऐगा पहले आप चलो मेरे साथ डाक्टर के पास ।

मानव - नहीं स्नेहा मैं नहीं  जाऊँगा कुछ ठीक नहीं होगा तुम्हें कुछ नहीं पता तुम्हारे बस में तो कुछ भी नहीं  है अगर होता तो मुझे पता है चाहे कुछ भी हो जाए तुम मेरी मदद जरूर करती।

स्नेहा - (अचानक सोचते हुए)  मैं बोल रही हूँ ना सब ठीक हो गया है आपके बाॅस का मुझे फोन आया था रास्ते में  आपसे मिलना चाहते हैं।

मानव- क्या!

स्नेहा - (रोते हुए)  हाँ पर अभी चलो मेरे साथ डाक्टर के पास ।

मानव- अच्छा तुम कहती हो तो ठीक है मैं तुम्हारे पर भरोसा कर लेता हूँ।

मानव  की यह हालत देखकर स्नेहा ने सोच लिया वो मानव को ऐसे बर्बाद नहीं  होने देगी चाहे उसके लिए कुछ भी  करना पड़े।

स्नेहा ने मौका देख कर बाॅस को फोन करते हुए मुझे आपकी शर्त मंजूर है पर आप  मानव को फोन करके सब सभाँल लें प्लीज।

नवीन -  हाँ स्नेहा जी जरूर जब आप इतना कुछ कर सकती है तो मैं क्यों नहीं कल सब ठीक हो जाऐगा और हाँ पता मैसज कर दिया है कहो तो मानव के जाने के बाद गाङी भेज दूं? ( हंसता हुऐ)

अगले दिन मानव को सुबह ही नवीन का फोन आया और जैसे ही मानव घर आया अपने बाॅस से मिल कर बहुत खुश होते हुए " स्नेहा तुम सच बोल रही थी सब ठीक हो गया मुझे लोन चुकाने के लिए और वक्त भी दिया बल्कि  उस दिन के लिए माफ़ी मांगी मेरे से और मेरी पोस्ट और बड़ी कर दी आज मैं बहुत खुश हूँ पर मुझे एक हफ्ते के लिए बहार भेज रहे हैं कुछ काम से स्नेहा समझ गई  नवीन ने अपने कहे अनुसार सब ठीक कर दिया और क्यूँ  उसे बहार भेज रहे हैं पर मुझे तो शनिवार तक का वक्त दिया था फिर इतनी जल्दी यह सब हो क्या रहा है ख़ैर मानव को खुश देखकर स्नेहा कुछ नहीं बोली। 

अगले दिन जैसे ही मानव गया, बाॅस अचानक से घर पहुँच गया और उसको आया देख स्नेहा एकदम चौंकते हुऐ आप?

नवीन-  हाँ (अन्दर आते हुए) मैंने सोचा जो कल करे सो आज क्यों नहीं फिर हमारे पास एक हफ्ता है क्यो स्नेहा? आपको याद तो है ना आपका वादा?

और इतना कहकर  स्नेहा को अपनी बाहों में उठा कर बैडरूम में ले गया और उससे अपनी हवस पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

आज स्नेहा ने  अपने सुहाग की खातिर अपने आप को हमेशा के लिए जिंदा मार दिया था और खुद की इज्जत और खुद के शरीर का सौदा कर लिया था अपने सुहाग को बचाने के लिए । उस रात नवीन स्नेहा को अपने फार्महाऊस ले गया और  उसके साथ जब मन चाहे मन मर्जी करने लगा,  तीन चार दिन ही हुऐ थे कि एक दिन अचानक स्नेहा ने सुना बाॅस को बातें करते हुए "यार तेरी वाइफ  बङी मस्त है, यार मुझे तो लगता है मेरा कभी मन ही नहीं भरेगा उसको चखने से( हँसते हुए ) क्यूँ ना  टूर एक हफ्ता और बढ़ा दूं?"

 

तभी स्नेहा ताली बजाते हुए अन्दर आकर " क्या बात है आपको शर्म नहीं आई ऐसा करते हुए, आपको तो सज़ा मिलनी चाहिए मैं  अभी पुलिस में फोन करती हूँ कि आपने कैसे मेरे साथ धोखा किया है मेरी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया है।

नवीन - माफ़ करें स्नेहा जी मुझे कुछ भी  बोलने से पहले ज़रा अपने मानव जी से पूछ लें उसने ऐसा क्यों किया यह उसका ही दिमाग था।

स्नेहा - नहीं आप झूठ बोल रहे हैं मैंने सुना है आपने ही उसको मजबूर किया होगा, नौकरी पर वापिस लेने के बाद।

 

नवीन- मुझे पता था,  स्नेहा तुम मुझे ही गलत समझोगी, तुम्हें जो लगता है ना मानव किसी काम से बाहर गया है वो यहीं इसी शहर में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ एक होटल में है और ऐश कर रहा है और हाँ तुम मुझ पर जो ऊँगली उठा रही हो तुम्हारे तो अपने पति ने यह सौदा किया था मुझ से स्नेहा जी, वो महिनों से आपका ख्याल रखना आपसे प्यार भरी बातें करना उसी प्लान का हिस्सा था।

स्नेहा को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था मानव  ऐसे कर सकता है जैसे ही वो नवीन के बताए होटल मे गई हाॅल मे चारों तरफ आवाज आ रही थी हैप्पी बर्थडे टू यू की और जब स्नेहा ने देखा मानव किसी और औरत के मुँह में केक डालते हुए तो टूट कर बिखर गई वो " वाह -वाह मानव  क्या बात है कुछ दिन पहले मरने वाला इन्सान आज अपनी ही बीबी से झूठ बोल कर किसी दूसरी औरत के साथ उसका जन्मदिन मना रहा है वाह, शाबाश और मैं अपने सुहाग अपने सिंदूर की खातिर सब कुछ लुटा चुकी हूँ "

मानव-   तुम यहाँ कैसे और यह क्या तमाशा कर रही हो चलो घर, मैं घर जाकर बात करता हूँ ।

स्नेहा - कौन सा घर यहाँ अपना ही पति अपने बाॅस के साथ अपनी ही  वाइफ का सौदा करता है एक बेहतरीन प्लान बनाकर वाइफ को मजबूर करता है और बाॅस को अपनी वाईफ के साथ सोने के लिए भेजता है और खुद किसी और औरत के साथ सोता है वाह , अच्छा प्लान था। तुम्हें  आदत होगी ऐसी गंदगी में रहने की मुझे नहीं। आखिर क्यों किया  तुमने मेरे साथ ऐसा, क्या कमी की थी मैंने तुम्हें खुश रखने में,  क्यों किया (एक तमाचा मारते हुए)।

 मानव-  (गाल सहलाते हुऐ बोखला कर गाली देते हुऐ)  क्या बोले जा रही हो एक तो तुम खुद बदचलन औरत हो ऊपर से मुझ पर इल्जाम,  मैंने कब बोला तुम मेरे बाॅस पास जाओ मेरे से छुप कर तुम गई थी मिलने और खुद अपनी मर्जी से रिलेशन बनाए थे  ना जाने कितने वक्त से ये सब कर रही थी जब मुझे पता चला तो बाॅस को बोलकर नौकरी से निकलवा  दिया वाह रे! भारतीय नारी  वो तो भला हो बाॅस का उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया और मुझे दोबारा नौकरी पर रख लिया  और आज यहाँ आकर तुम दुनिया के आगे यह साबित करना चाह रही थी कि मैं गलत हूँ।

स्नेहा- वाह - वाह  और कितना झूठ बोलेगे आप? मुझे नहीं पता था जिस इन्सान से मैंने शादी की, जिसका सिंदूर मैने हमेशा अपनी मांग में सजा कर रखा और जिसके कारण अपना घर- बार छोङ के  आई थी उसके सिंदूर की कीमत इतनी बड़ी होगी मैं आज सब के आगे बोलती हूँ हम सब सोचते हैं ना जो औरत सिंदूर लगाती है वो ही पतिवर्ता होती है लेकिन जिसका पति मानव जैसा हो उसे अपनी माँग अपने साफ कर लेनी चाहिए ।

आज मैंने इस सिंदूर की कीमत चुका दी है नहीं चाहिए ये सिंदूर मुझे ( पोंछते हुए ) मुझे ऐसे सिंदूर की कोई जरूरत नहीं जिसकी कीमत इतनी बड़ी थी। आज चुका दी है मैंने "कीमत सिंदूर की"।


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"इश्क- यूँ ही"
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अमीर इश्क के गरीब किस्से ....

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