राजनैतिक पार्टियों का भविष्य. मैं कोई भविष्य वक्ता नहीं हूँ, पर विश्लेषण कर सकता हूँ. आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों की क्या स्थिति रहेगी यह बता सकता हूँ. शुरुवात कांग्रेस से करता हूँ क्योकि वो सबसे पुरानी पार्टी और अब तक सब से ज्यादा वक्त तक राज करने वाली पार्टी है. उसका फिलहाल कोई भविष्य नहीं है. लेकिन उसके लिए एक बहुत ही अच्छा वक्त है कि उन सब को बाहर जाने दे जिनकी विचार धारा कांग्रेसी नहीं है बल्कि सत्ता के लिए कांग्रेस में है या थे, ऐसे बहुत से लोग छोड़ चुके है या जल्दी छोड़ देंगे. उसके बाद कांग्रेस को सिर्फ उन लोगो को लेकर चलना होगा जो सत्ता के लिए नहीं बल्कि कांग्रेसी विचारधारा के लिए कांग्रेस से जुड़े. नेतृतव कौन कर रहा है यह ज़रूरी नहीं ज़रूरी यह है कि क्या वो कांग्रेसी विचारधारा के अनुसार चल रहा है? परिवारवाद समस्या नहीं है समस्या दिशा है कि किस दिशा में जा रहे है. अगर परिवारवाद गलत है तो राम का राजा होना भी गलत है? बीजेपी का अभी वक्त है और अभी कुछ साल रहेगी, जबतक लोगो का भ्र्म नहीं टूटता उसमे कुछ वक्त लगेगा. उनके पास हर मुद्दे को राष्ट्रवाद बनाने की कौशलता है, और ऐसे मुद्दे पैदा करने की क्षमता है, जबतक लोग इस सच्चाई को नहीं समझेंगे तबतक उनका राज रहेगा. उनके पास पैसा है , मिडिया साथ है, बड़े उद्योगपति साथ है और उन्होंने राजनीति को भी व्यवसाय बना दिया इसलिए हर जननेता उनसे जुड़ रहा है, लेकिन जब जनता को एहसास हो जाएगा की अब राजनीति व्यवसाय है तब वो उसे नकार देंगी पर उसमे वक्त लगेगा. बीएसपी का वक्त ख़त्म हो गया, काशीराम जी की उम्मीदों पर मायावती जी ने अपने स्वार्थ से पानी फेर दिया, अब वो सिर्फ विरोध में रहकर बीजेपी की मदद करने के अलावा कुछ नहीं कर रही और अब बीजेपी को भी उनकी ज़रूरत नहीं है इसलिए उनका सूर्यास्त हो गया. 2019 के चुनावों में उन्होंने महागठबंधन को तोड़ने का काम किया. एसपी का भी वक्त ख़त्म हो गया, मायावती ने उन्हें अपने जाल में फंसा कर उनका भविष्य भी खत्म करा दिया. उससे पहले एसपी ने कांग्रेस से गठबंधन किया था और आगे बहुत उम्मीदे थी पर मायावती जी ने खेल खेल दिया बीजेपी के इशारे पर और एसपी को कांग्रेस से दूर कर महागठबंधन को नुक्सान पहुंचाया. आरजेडी का वक्त भी ख़त्म हो गया उसका कारण भी मायावती जी है. उत्तरप्रदेश को देख आरजेडी ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन में खेल खेलना शुरू कर दिया और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली और अब इस वक्त उनकी बिहार में कोई अहमियत नहीं रही. अगले चुनाव में उन्हें धूल चाटने के लिए तैयार रहना चाहिए. नीतीश जी की पार्टी अब बीजेपी के अधीन है अगर राजनीति में बने रहना है तो बीजेपी के निर्देश पर ही काम करना होगा,वरना बीजेपी आज इस हालात में है कि बिहार में अकेले सरकार बना सकती है. दक्षिण भारत में अभी कुछ वक्त तक क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व रहेगा. हिंदी भाषी क्षेत्रो में बीजेपी की पकड़ अभी मज़बूत रहेगी. बंगाल में ममता का घर भी डगमगाएगा. उसकी ज़िम्मेदार भी ममता बनर्जी ख़ुद है, 2019 के चुनावों में उनकी प्रधानमत्री बनने की ख़्वाहिश ने उन्हें गठबंधन से दूर रखा जिसका नतीज़ा सामने है. उन्हें ये ख़्वाब बीजेपी के निर्देशों पर चंद्रबाबू ने दिखाए. नविन पटनायक भी जबतक बीजेपी के समर्थन में है तब तक है वरना अगली बार वो भी सत्ता से बाहर होंगे. कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी दोनों का वर्चस्व ख़त्म हो गया. अब कांग्रेस के पास मौका है कि जो लोग क्षेत्रीय दलों में बट गए थे उन्हें दोबारा इकट्ठा करे और अब किसी भी क्षेत्रीय दल से कोई समझौता सरकार बनाने के लिए ना करे बल्कि सिर्फ और सिर्फ अपनी सरकार बनाने की कोशिश करे या विपक्ष में बैठे समझोतो की राजनीति से किनारा कर ले. दिल्ली में केजरीवाल के लिए मुश्किल थी इसलिए उसने जल्दबाजी में काश्मीर के मामले में बीजेपी को स्पोर्ट कर दिया पर क्या इससे उसे सफलता मिलेगी? जो दिल्ली में अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा था , आज कश्मीर के लोगो के अधिकार छीन जाने पर केंद्र सरकार का समर्थन कर रहा है? उसके आप के बहुत से लोग अब बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. कांग्रेस के लिए बहुत अच्छा मौका है अपने को फिर से खड़ा करने का, किसी क्षेत्रीय दल की सहायता से नहीं बल्कि ख़ुद की ताकत से. उन सभी को जाने दे जो सत्ता के लिए पार्टी से जुड़े है, ऐसे लोग किसी भी दल के साथ वफ़ादारी नहीं करेंगे, वक्त आने पर उनको भी दग़ा देंगे.