गाँधी जी ने आज़ादी का जश्न नहीं मनाया था. गाँधी जी जिन्हे पूरी दुनियां इस आज़ादी का नायक बता रही थी, वही इस जश्न में शामिल नहीं हुए. दुनिया में शायद गांधीजी पहले व्यक्ति थे और शायद आखिरी जो अपनी जीत का जश्न ना मनाये. आज तो लोग दूसरों के काम का श्रेय लेकर जश्न मना लेते है? लेकिन उन्होंने नेहरू और पटेल को अपने साथ नहीं लिया, उनका जवाब था कि अब तक इस आज़ादी की जंग में हम साथ थे लेकिन अब तुम दोनों सरकार में हो और देश को चलाना है, इसलिए तुम जनता के साथ मिलकर जश्न मनाओ, मेरा काम अभी खत्म नहीं हुआ.
गांधी जी का आजादी जश्न में शामिल नहीं होना
गांधीजी के लिए सिर्फ अंग्रेज़ों से आज़ादी सच्ची आज़ादी नहीं थी, जनता को समान अधिकार मिलना, मज़हब के नाम पर जाति के नाम पर बटवारे को खत्म करना, असमानता को दूर करना, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, दलितों और महिलाओं को समानता के अधिकार ऐसे बहुत सार मुद्दे थे जिनसे अभी उन्हें लड़ना था, इसलिए उनका मानना यही था कि उनका काम पूरा नहीं हुआ. नेहरू और पटेल को इस काम में अपने से दूर रखने का मकसद यही था कि अब उन पर देश को संभालने और चलाने की ज़िम्मेदारी है, उन्होंने तो नेहरू जी को अपने साथ ना जाने के लिए ही नहीं कहा बल्कि उन कहा कि तुम तो इस हिंदुस्तान के जवाहर हो, तुम्हे और पटेल को नए हिन्दुस्तान की नींव रखनी है इसलिए तुम दिल्ली में ही रहो. गांधी जी खुद बंगाल में चले गए जहाँ हिन्दू-मुसलमान दंगे हो रहे थे, अपने साथ मौलाना अब्दुल कलाम को लेगये. पूरा हिन्दुस्तान जश्न मना रहा था और गांधी जी बंगाल में पैदल घूम कर शांति बनाने की कोशिश कर रहे थे. पंजाब में जो काम पुलिस और फ़ौज़ की गोलियों से नहीं हुआ वो काम गाँधी जी के सत्यग्रह से पूरा हो गया, बंगाल में शान्ति हो गई और उसके बाद गाँधी जी पंजाब जाना चाहते थे वहां के दंगो को रोकने पर पटेल के कहने पर दिल्ली में रुक गए क्योकि दिल्ली में भी दंगे शुरू हो चुके थे और तभी उन ताकतों ने जो मुल्क में शान्ति नहीं चाहते थे उनकी हत्या कर दी.
गाँधी जी ने एक बार अपने 135 साल जीने की इच्छा बताई थी, लेकिन आज़ादी के बाद के दंगो ने उन्हें तोड़ दिया और आखिरकार उन्हें कहना पड़ा मेरी अब और ज्यादा जीने की इच्छा नहीं है. आज आज़ादी का जश्न मनाते हुए अपने से कुछ सवाल भी पूछ लेने चाहिए, क्या हमने गांधी के सपने पुरे कर दिए या आज हम गांधी के हत्यारों के साथ मिलकर गाँधी वाद को तहस नहस करने में लगे है ? गाँधी जैसे लोग रोज़ पैदा नहीं होते पर हिंसा फैलाने वाले हर पल पैदा होते है और अगले पल में मिट भी जाते है. शांति और अहिंसा के अलावा और कोई रास्ता नहीं है मानव सभ्यता को बचाने का, नफ़रत और हिंसा इस सभ्यता को निगल जायेगी. 15 अगस्त एक और बात के लिए याद करना चाहिए और वो है दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति की घोषणा. इसके साथ ही सोच लेना चाहिए कि उस वक्त नाज़ी और फ़ासिस्ट सोच के नेताओं की वज़ह से कितने बेगुनाह मारे गए थे. अगस्त के महीने में हिरोशिमा और नागासाकी को भी याद कर लेना चाहिए. (आलिम)