राजतंत्र से भारत ने सफर शुरू किया था और लोकतंत्र तक पहुँच गया था, क्या अब फिर से हम राजतंत्र की तरफ वापिस जा रहे है? बहुत से लोगो के ही नहीं सबके मन में यह विचार ज़रूर उठेगा कि अब वापिस राजतंत्र का आना नामुमकिन है, राजतंत्र के बाद हम गुलामी की ओर बढ़ चले थे, तो क्या फिर से गुलामी की ओर चले जाएंगे, यहाँ भी लोगो का मानना है कि अब ऐसा नहीं हो सकता. जी हाँ अब ना तो राजतंत्र वापिस आएगा और ना उसके बाद गुलामी. आज माहौल बदल चूका है, अब कोई राजा नहीं बनेगा और ना ही कोई देश गुलाम. विज्ञान में एक सिद्धांत है जिसे विकासवाद यानी एवोलुशन कहते है. बन्दर से इंसान तक का सफर हुआ, लेकिन इंसान के भीतर का जानवर तो खत्म नहीं हुआ? वैसे ही अब राजतंत्र और गुलामी का विकास हो रहा है और जो कुछ आएगा वो बन्दर की तरह नहीं आएगा, यानि इंसान नाम के जानवर की तरह आएगा. पिछले कुछ वर्षों से इसकी नीव रखी जा चुकी है और अब उस नीव पर दीवारे चुनी जा रही है, और बहुत जल्दी राजतंत्र का नया विकासशील राजमहल खड़ा हो जाएगा, प्रजा जो बड़ी मुश्किल से, बहुत सी कुर्बानियों के बाद जनता बनी थी जल्दी ही विकासशील प्रजा बन जायेगी और फिर विकासशील गुलाम. सुनने में पहेली लग रहा होगा, पर यह पहेली नहीं सच्चाई है और जब तक इस सच्चाई को समझोगे तब तक तो गुलाम बन चुके होंगे. इस विकासशील गुलामी की बात करने से पहले इतिहास के कुछ पन्ने पलट लेते है. इंसान भी कभी जंगलों में बंदरों या बनमानुषों की तरह एक समाज बना कर रहता रहा होगा, उनका नेता कोई ताकतवर बन्दर या बनमानुष हुआ करता होगा जो उन्हें दूसरे बनमानुष समूहों से बचाता होगा, आपस में लड़ाइयां भी होती होंगी, और बाहुबल से उन लड़ाइयों को जीता जाता रहा होगा. ऐसे ही समाज का विकास शुरू हुआ होगा और शारीरिक ताकतवर लोग अपने समाज की रक्षा करते होंगे. उनमे सबसे ज्यादा ताकतवर को नेता बना दिया जाता होगा, यहां कोई वंशवाद की प्रथा नहीं रही होगी एक जनतांत्रिक तरीका रहा होगा नेता चुनने का. नेता को कुछ ख़ास अधिकार भी रहते होंगे, जिन अधिकारों के लिए हर किसी बन्दर या बनमानुष का मन ललचाता होगा और वो अपने नेता को चुनौती भी देते रहे होंगे. लड़ाई अपने इलाके के खाद्य समाग्री पर या खूबसूरत जवान बंदरी के लिए होती होगी, बाहु बल से जीता या हारा जाता होगा. लाखों वर्ष ऐसा चलता रहा होगा लेकिन विकास तो होना ही था, उस वक्त विकास की गति बहुत धीमी रही होगी इसलिए लाखों वर्ष यूँही निकल गए, फिर दौर आया होगा हथियारों का, पत्थर के हथियारों से लेकर लकड़ी के बनाये हथियारों का. अब बाहुबल से ज्यादा इन हथियारों पर लड़ाइयां होने लगी होंगी, हम अभी इसे युद्ध नहीं कह सकते सिर्फ लड़ाई ही कह सकते है क्योकि युद्ध भी लड़ाई का विकासशील परिवर्तन ही है. फिर शायद लोहे या धातुओं की खोज हो गई होगी और उन धातुओं से भारी भारी गदा बनाई गई होगी और उन्हें लड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया होगा. भारी गदा उठाने के लिए भी शरीर का ताकतवर होना ज़रूरी रहा होगा? इसलिए ताकतवर लोग ही समाज के मुखिया रहे होंगे. लेकिन जब इन सब का विकास हो रहा होगा तो बनमानुष के शरीर का भी विकास हो रहा होगा और उसके साथ ही विकास हो रहा होगा दिमाग का. यही से कहानी में और विकास में परिवर्तन आना शुरू हुआ होगा. ताकत के साथ तेज़ दिमाग का होना भी ज़रूरी हो गया होगा. और यही से शुरू होगा विकास का दूसरा दौर. (भाग-१, आलिम)