पटरा पे चदरा बिछाय जालें सुती ।
खाए के नून भात मरचा आ रोटी ।
जिनिगी गरीब के अस होरहा भुजाता ।
त रामे क बरखा ह रामे क छाता ।।
मजूरे क देह मेह मारेला तान के ।
सेतिहा क हइये बा जांगर किसान के ।
पांजर में कांकर फंसाव ना दुखाता ।
त रामे क बरखा ह रामे क छाता ।।
मंडी भइल गोलबंदी बुझाता ।
साहब के लासा लगइहें सुजाता ।
आई बवंडर का करबा बिधाता ।
त रामे क बरखा ह रामे क छाता ।।
अरहर के दाल गेंहू सरसो के दाम हो ।
भागल अकाश भइल मड़ई निलाम हो ।
रावण के राज में का खईबा पराठा ।
त रामे क बरखा ह रामे क छाता ।।
~ धीरेन्द्र पांचाल