चान छुपउले जाली कहवाँ , घुँघटा तनिक उठाव ।
बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव ।
झुलस रहल धरती के काया छाया ना भगवान लगे ।
तोहरे बिना ये हो बदरी सब कुछ अब सुनसान लगे ।
लह लह लहके रेह सिवाने कातर नजर हटाव ।
बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव ।
पेंड़ कटत बा निशिदिन चिरईन के खोतवा बिरान भइल ।
खेत कियारी नदी कछारी सगरों जस शमशान भईल ।
जार रहल बा देहियां सूरज के तनिका समुझाव ।
बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव ।
गोरुअन के सुबिधा के दुबिधा घास खंचोली पाईं ना ।
गाय के थाने दूध ना उतरे दुःख बतावल जाई ना ।
पुरुवा के संग चुरुवा रोपले ठाढ़ ह पूरा गांव ।
बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव ।
अइसन का भकुआय गयल बाड़ू हमके समुझावा ।
हिय में कउनो पीर होखे त आवा बइठ बतावा ।
सुख दुःख मिलके बाँट लिहल जाइ पिपरा के छाँव ।
बदरिया हमरो केने आव । बदरिया हमरो केने आव ।
✍️ धीरेन्द्र पांचाल