आखिर कब तक बचाता खुदा आपको ।
एक दिन लगनी ही थी बद्दुआ आपको ।
जुबां से गिराते रहे आप शोले ।
थे मजहबी नारों में नेता जी बोले ।
उठाओ बंदूकें और भून डालो सालों को ।
तिलक , जनेऊ व तलवार वालों को ।
आग झुग्गी में लगती रही शाम को ।
जाने कैसे लगा है धुआँ आपको ।
हमने देखे न भूले हैं मंजर कई ।
लाश खेतों में थी वो दिगम्बर कई ।
तब मरती रहीं गायें गौशालों में ।
आप जलाते रहे दीया उजालों में ।
✍️ धीरेन्द्र पांचाल