बेजुबानों को बचाने की गजब साजिश चली ,
देखकर व्यापार मरघट को पसीना आ गया ।
देखते ही देखते तकनीक ऐसी आ गई ,
छेदकर नथुनों को हमको दूध पीना आ गया ।
हो गए हैं बन्द बूचड़खाने जो अवैध थे ,
वैध वाले हंस रहे हैं क्या जमाना आ गया ।
ये औरंगजेब के दुश्मन मोहब्बत गाय से इनको ,
सियासी रंग ऐसा देखकर बछड़ों को रोना आ गया ।
बगावत कर नहीं सकता सियासी भेड़ियों से मैं ,
सूखती गंगा में भी हमको नहाना आ गया ।
~ धीरेन्द्र पांचाल