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श्रृंगार

19 फरवरी 2022

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उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊँ,

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।


लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली,

फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली।


वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराउँ,

लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूँ ही बरस न पाऊँ।


वो हँस कर अपना दर्द छुपाये मैं कैसे सब कह जाऊँ,

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।


क़ातिल लगती तीखी आँखों से मीठा आघात करे,

जान भी तब बेजान हो जाये जब वो मुझसे बात करे।


उसकी भींगी ज़ुल्फों से जब छेड़खानी वो बात करे,

लगता कि पांचाल स्वयं ही अपने ऊपर घात करे।


वो अधरों से संघात करे मैं महल पुराना ढह जाऊँ,

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ।

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