भारत के एक महान चिंतक, महान
देशभक्त, दार्शनिक, युवा सन्न्यासी, युवाओं के प्रेरणास्रोत और
एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। भारतीय
नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानंद को कहा जाए तो यह
अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अगर आज तक कोई शख़्सियत है जिसने भारतीय युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो हैं स्वामी विवेकानंद. विवेकानंद एक ऐसा व्यक्तितत्व है, जो हर युवा के लिए एक आदर्श बन सकता है. उनकी कही एक भी बात पर यदि कोई अमल कर ले तो शायद उसे कभी जीवन में असफलता व हार का मुंह न देखना पड़े.
'विवेकानंद' दो शब्दों द्वारा
बना है। विवेक+आनंद। 'विवेक' संस्कृत मूल का शब्द है। 'विवेक' का अर्थ
होता है बुद्धि और 'आनंद' का शाब्दिक अर्थ होता है- खुशियां
उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमुख
कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका
उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में
भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई
शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा
स्त्रोत साबित हो सकते हैं।
किसी भी देश के युवा उसका भविष्य होते हैं।
उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की
बागडोर होती है। आज के पारिदृश्य में जहां चहुं ओर
भ्रष्टाचार, बुराई, अपराध का बोलबाला है जो घुन बनकर देश को अंदर
ही अंदर खाए जा रहे हैं। ऐसे में देश की युवा
शक्ति को जागृत करना और उन्हें देश के प्रति कर्तव्यों का बोध कराना अत्यंत
आवश्यक है। विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज है
जो सारे युवाओं को नई चेतना से भर दे। उनके दिलों को भेद दे। उनमें नई ऊर्जा
और सकारात्कमता का संचार कर दे।
स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी
वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर
आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म
सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दु्ख और निराशा के बादल छाए हुए थे।
उन्होंने भारत के सोए हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का
प्रसार किया।
सन् 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में
बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो
चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं।
हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म
और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और
अब समय आ गया है भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे।
यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि
तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने
मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणत किए बिना न छोड़ें।
हमारे सामने यही एक महान आदर्श है और हर एक को
उसके लिए तैयार रहना चाहिए, वह आदर्श है भारत की विश्व
पर विजय। इससे कम कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं चलेगा, उठो
भारत...तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करो।
इस कार्य को कौन संपन्न करेगा?' स्वामीजी ने कहा
'मेरी आशाएं युवा वर्ग पर टिकी हुई हैं'।
स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी
उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं
की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है 'यदि तुम
स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने
के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो
पहले ‘अहं’ ही नाश कर डालो।' उन्होंने युवाओं को धैर्य,
व्यवहारों में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा
संघर्षरत् रहने का संदेश दिया।
आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों
के कारण जाना जाता है। आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के
स्त्रोत बने हुए हैं।
“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं
जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”
स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे इस वाक्य ने उन्हें विश्व विख्यात बना
दिया था. और यही वाक्य आज कई लोगो के जीवन का
आधार भी बन चूका है. इसमें कोई शक नहीं
की स्वामीजी आज भी
अधिकांश युवाओ के आदर्श व्यक्ति है. उनकी हमेशा से ये सोच
रही है की आज का युवक को शारीरिक
प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति करने की जरुरत है. आज के
युवाओ को अलग-अलग दिशा में भटकने की बजाये एक
ही दिशा में ध्यान केन्द्रित करना चाहिये. और अंत तक अपने
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिये. युवाओ को
अपने प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करना
चाहिये.
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का
आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-
'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।'
'उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच
जाओ।'
भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले स्वामी
विवेकानंद ने भारतीय युवाओं में स्वाभिमान को जगाया और
उम्मीद की नई किरण पैदा की।
भारतीय युवा और देशवासी भारतीय
नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद के जीवन और
उनके विचारों से प्रेरणा ले सकते हैं।
39
वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो
काम कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों
का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
स्वामी विवेकानंद भारत के महान सपूत, देशभक्त, समाज-
सुधारक और तेजस्वी संन्यासी थे। स्वामी विवेकानंद जी की
शिक्षाओं को जीवन में अपनाने का प्रयास करते हुए, उनको
शत्-शत् नमन करना हमारी सांस्कृतिक गरिमा की पहचान है।
अतः आज उनकी जयंती के इस शुभ अवसर पर हम पुनः उनका
स्मरण एवं वंदन करें।