0.0(0)
1 फ़ॉलोअर्स
2 किताबें
हाशिये पर से अपनी आँखों को शून्य में टांगकर हाशिए पर से देखा किया मैंने सुबह दोपहर और शाम का बारी-बारी से घर की दहलीज़ पर आना और देह चुराकर चला जाना दिन भर कई छोरों सेहोती र