महानगर
उबलते अंडे साबाहर से ज्यों का त्योंअंदर विदग्ध जीवन कीकरुण चीख-पुकार महानगर है यहयहां साबूत कहांबचा होता है आदमीपेट अपने परिवार कासिरपर उठाएअपने नसीब को कोसताकब और कैसेपहुंच जाता है कोई आदमीइस अजगर के पेट मेंयह कहां पता चल पाताकिसी आदमी कोयहां अपने जीवन केअन्तिम दिनों