रोला- रोला छंद दोहा का उलटा होता है l विषम चरण में ग्यारह मात्रा एवं सम चरण में तेरह मात्रा के संयोग सेनिर्मित [११+१३=२४ मात्रिक ] लोकप्रिय रोला छंद है l रोला छंद में ११,१३ यति २४ मात्रिक छंद है दो क्रमागत चरण तुकांत होते हैं काव्य रम
"छंद रोला मुक्तक”पहली-पहली रात निकट बैठे जब साजन।घूँघट था अंजान नैन का कोरा आँजन।वाणी बहकी जाय होठ बेचैन हो गए-मिली पास को आस पलंग बिराजे राजन।।-१खूब हुई बरसात छमा छम बूँदा बाँदीछलक गए तालाब लहर बिछा गई चाँदी। सावन झूला मोर झुलाने आए सैंया-
“रोला मुक्तक”करो जागरण जाग सुहाग सजाओ सजना। एक पंथ अनुराग राग नहिं दूजा भजना। नैहर जाए छूट सजन घर लूट न लेना- अपने घर दीवार बनाकर प्यार न तजना॥-१ शयन करें संसार रात जब आ फुसलाती। दिन का करें विचार दोपहर शिर छा जाती। बचपन बीता झार जवानी कि