आधी रात में मेरी कँपकँपी सात रजाइयों में भी न रुकी सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया सातों रजाइयाँ गीली बुखार एक सौ छह, एक सौ सात हर साँस पसीना-पसीना युग को पलटने में लगे लोग बुख़ार से नहीं मरते मृ
नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर
कैसी - कैसी होती रात दिल मे सपने बोती रात मैं पलकों में नींद लिए हूँओढ़ चद्दरा सोती रातहार बड़ी दिन कहता हैआशा नई जगाती रातरूठा हुआ हूँ खाली मैंसाथ में मेरे होती रात नया सवेरा आएगा बसआशा
रात की बगिया मे
आओ स्वागत हैं तुम्हारा..
तुम्हें लोरी गाकर स
हम जानते है।हम जानते है कि सबकी अपनी जिंदगी है।पर परिवार सबकी बिरीथिंग पावर है।हम जानते है कि समुंदर का पानी पी नही सकते।उसके शैलाब और उफान से दुनियां काँपती है।हम जानते है अकेले जीने में मजा आता है।मरने के बाद का जनशैलाब, खुद की पहचान होती है।हम जानाते है अमीरी जामा बहुत सुंदर होता है।वह सुंदरता भी
काली काली रात में काले काले बादलों को देखकरकाला हो गया मैं अब काल देव भी काले रथ में आ रहे है काले काले बादलों को देखकर अब नजरो के सामने दोनों आ चुके है काले काले बादलों को देखकर ये भी काले मैं भी कालासारा जहां है काला काले काले बादलों को देखकरअब प्राण ले जा रहे है मे
पेड़ की छांव में डाल खोजना, उड़ -उड़ कर रसीले फूलो को खोजना मेरा काम है। फूलो के पराग पुंकेसरो से रस चूसना काम है मेरा। अपने दोस्तों हमजोलियों को उस डाल तक लाना काम है मेरा। हम एक दूसरे से कैसे लिपटती/लिपटते है तुम क्या जानो? तुम तो बस इतना जानते हो कि मुझे डंक चुभना आता है।तुम हकीकत को क्या समझोगे कि
और कितनी दूरपूछू गर एक सवाल माँ से मै कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ?यह शायद ही माँ बता पाए तू कौन हैं, कहाँ से आया हैं?बस वह अपनी व्यथा ही कह सकती, तू कैसे आया हैं?हैं इश्क हमे उनसे बस एक रात का, हम बिस्तर हुए| रात याद हैं मुझे जबसे धड़कने बढ़ी,और तू बढने लगा|हा मेरी कोख मे
नैनों से दिल में उतर गई|दिल में थी सुबह, शाम कर गई |बहे नीर रातों में उसके लिए|गीला बिस्तर वह कर गई|बदलते रहे करवटे रात भर |न उसका कोई न अपना कोई| नैनों से दिल में उतर गई|दिल में थी सुबह, शाम कर गई |बड़ी मुद्दतो से बसाई तस्वीर उसकी अपने आँसूओमें|पूछ न सके उसका पता, दिल पर कई
Aao ki koii khvaab bunen kal ke vaste - sahir ludhianvi आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्तेवरना ये रात आज के संगीन दौर कीडस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ- दिलता- उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकेंगो हम से भा
आज देर रात तक तेरे गुड नाईट के इंतजार में जागता रहा,मूंदी नम आंखो से मोबाइल की स्क्रीन को ताकता रहा।ये कहकर कि सो गया होगा तू मनाया मैने मेरे मन को,मन मुझसे दूर और मैं मन से दूर सारी रात भागता रहा।कोई खता अगर हुयी हो तो बता देता मुझको मेरे दोस्त,मैं रात भर चाँद से तुझको मनाने की भीख माँगता रहा।लडते
"छंद रोला मुक्तक”पहली-पहली रात निकट बैठे जब साजन।घूँघट था अंजान नैन का कोरा आँजन।वाणी बहकी जाय होठ बेचैन हो गए-मिली पास को आस पलंग बिराजे राजन।।-१खूब हुई बरसात छमा छम बूँदा बाँदीछलक गए तालाब लहर बिछा गई चाँदी। सावन झूला मोर झुलाने आए सैंया-
जरा सा चूमकर, उनींदी सी पलकों को,कुछ देर तक, ठहर गई थी वो रात,कह न सका था कुछ अपनी, गैरों से हुए हालात,ठिठक कर हौले से कदम लिए फिर,लाचार सी, गुजरती रही वो रात रुक-रुककर।अंजान थी वो, उनींदी स्वप्निल सी आँखें,,मूँदी रही वो पलकें, ख्वाबों में डूबकर,न तनिक भी थी उसको, बिलखते रात की खबर,गुजरती रही वो रात