“रोला मुक्तक”
करो जागरण जाग सुहाग सजाओ सजना।
एक पंथ अनुराग राग नहिं दूजा भजना।
नैहर जाए छूट सजन घर लूट न लेना-
अपने घर दीवार बनाकर प्यार न तजना॥-१
शयन करें संसार रात जब आ फुसलाती।
दिन का करें विचार दोपहर शिर छा जाती।
बचपन बीता झार जवानी किसने देखा-
चौथापन विलराल कपाल नियति की पाती ॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी