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रूपयों का वो डेरा !!!

21 जून 2023

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फैला हो चारों दिशा में,

गगन, जल और धरा में,

अभिलाषित मन की बस है यही अभिलाषा ।

दिखा दे एक बार सही उस नीले अंबर पर बिखरा रूपयों का वो डेरा,

चाहूँ जब मैं, अपने पँख खोल, उड़ के,

ले आऊँ दो-चार बंडल,

सपनो को करूँ पूरा मैं,

कर दूं  इस महंगाई का हल,

हाहाकार और आपाधापियों से बस मैं ढूँढू  ऐसा इक किनारा,

दिखा दे एक बार सही उस नीले अंबर पर बिखरा रुपयों का वो डेरा ।

न चाहूँगा कोई प्रेम कभी,

न माँगूँगा कोई प्रियसी कभी,

खुले आँखों से ही देख लूँगा बस...

हैं मैं एक झलक उसकी छवि,

महत्वाकांक्षा के मुंडेरों पर खड़ा मैं,

सोचूं की हो जाये कभी तो ऐसा कोई स्वर्णिम सवेरा,

दिखा दे एक बार सही उस नीले अंबर पर बिखरा रुपयों का वो डेरा,

दिखा दे एक बार सही उस नीले अंबर पर बिखरा रुपयों का वो डेरा ।।

प्रयासी कवि

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