सागर की लहरें... न जाने …
सागर की लहरें.... न जाने....
किस से मिलने की आस लेकर
आती हैं... किनारे तक
और जाती है, लौट वापस
न जाने कितने ही तौहफे
लेकर आती हैं अपने साथ
ये लहरें... और फिर
छोड़ जाती हैं किनारे पर ही
अपनी हजारों सीपियाँ....
ये लहरें... दबा लेती हैं
कितने ही राज़.
अपने आने की शोर में
और जाती है लौट ख़ामोशी से....
न दिन का होश है, न रात की सुध है
ये तो बस आती हैं निरंतर
न जाने किसी से मिलने की आस लेकर
इठलाती हुई
और लौट जाती है धीरे से, दबी हुई सी
न जाने कितने बरस की तमन्ना लिए हुए
अपने ही जेहन में...
और फिर किसी से बिना कुछ कहे ही
लौट जाती हैं. चुप-चाप ...