shabd-logo

सब कहने की बात है

15 नवम्बर 2021

17 बार देखा गया 17

सब कहने की बात है,क्या मिलन कभी हो पाता?

दिवस-रैन क्या मिल पाते,क्या मिलते सांझ-सकारे।

नील गगन में चांद-सितारे,रहते हैं सब न्यारे -न्यारे।

भूल- भुलैया,आंख-मिचौनी,खेल रहे हैं सारे ।।

आंगन-गलियां कभी मिली ना,कभी मिले ना द्वारे।

कुछ लमहों का मिलन संजोकर,तुरतहि होते न्यारे।

गलियाँ पहुँचातीं मुकाम सोच,द्वारे पहुंँचाते चौबारे ।

तू-तू,मैं-मैं की विरुदावलि, करती आँगन न्यारे।।

मिलन कभी ना होते देखा,धरती और गगन का।

दूर गगन में इंद्र धनुष ने,धोखा दिया  मिलन का ।

सतरंगी परछाईं में भी,गगन धरनि से मिल पाता?

सब कहने की बात है,क्या मिलन कभी हो पाता?

विरही चकवा-चकवी का,क्या मिलन कभी हो पाया?

रही बहाती अश्रु चकोरी ,क्या चांद कभी मिल पाया?
सुइयां चलती रहीं घड़ी की, समय साथ ना दे पाया?

सब कहने का बात है,क्या समय साथ में चल पा‌या?

यौवन संग चला ना बचपन,बुढ़ापा संग चल पाया?

जीवन -मृत्यु कभी मिले ना, कोई इन्हें मिला पाया?

कौन साथ कब तक चल पाया,कोई सत्य बता पाया।?

सब कहने की बात है,कोई संग कहाँ तक चल पाया ?

   स्वरचित

                        शारदा भाटी

                  डी.-१८-बीटा-१-ग्रेटर नोएडा।



शारदा भाटी की अन्य किताबें

.........😊😊😊😊😊😊

.........😊😊😊😊😊😊

खूबसूरत प्रस्तुति

15 नवम्बर 2021

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए