समानता के बिना स्वतंत्रता नहीं आ सकती है,
और समानता के बिना बंधुत्व नहीं हो सकता है
समानता, स्वतंत्रता और बंधुता एक दूसरे की
पूरक हैं,समानता का अर्थ= राजनैतिक,सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षणिक समानता से है...लेकिन भारत के संविधान में सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक समानता के लिए कोई ठोस प्रावधान नहीं है,
तभी तो #बाबा_साहेब डॉ अंबेडकर ने 25 Nov 1949 को संविधान_सभा में कहा था कि.. .
समानता को स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता है, स्वतंत्रता से समानता को अलग नहीं किया जा सकता था ठीक इसी प्रकार समानता और स्वतंत्रता को बंधुता से अलग किया जा सकता है,
समानता के बिना स्वतंत्रता कुछ व्यक्तियों का अनेक व्यक्तियों पर वर्चस्व स्थापित कर सकता है, स्वतंत्रता विहीन समानता व्यक्तिगत उपक्रम का ह्रास करेगा,
बंधुत्व के बिना समानता और स्वतंत्रता अपना स्वाभाविक मार्ग ग्रहण नहीं कर सकते हैं, इनको लागू करने के लिए एक सिपाही की आवश्यकता है, यह तथ्य स्वीकार करते हुए हमें कार्य आरंभ करना चाहिए कि भारतीय समाज में दो बातों का पूर्ण अभाव है, इनमें से एक समानता है, सामाजिक स्तर पर हमारे भारत में हमारा एक ऐसा समाज है जो क्रमानुसार निश्चित असमानता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ कुछ व्यक्तियों की उन्नति और कुछ का पतन है।
आर्थिक स्तर पर हमारा एक ऐसा समाज है जिसमें कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास अथाह संपत्ति है और कुछ ऐसे हैं जो निपट गरीबी में जीवन बिता रहे हैं, 26 जनवरी 1950 को हम विरोधाभास के जीवन में प्रवेश करेंगे जहां राजनीतिक तौर पर तो समानता होगी, एक आदमी एक मत और एक मत की एक कीमत होगी लेकिन आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर विषमता होगी और यदि इस विषमता को संविधान के रास्ते दूर नहीं किया गया तो वे लोग जो इसका शिकार होंगे इस लोकतंत्र की इस रचना को जो संविधान सभा ने बहुत परिश्रम से बनाई है को ध्वस्त कर देंगे।"
बाबा साहेब डॉ अंबेडकर ने 18 मार्च 1956 को आगरा के ऐतिहासिक भाषण में जन समूह को संबोधित करते हुए कहा था___ कि तुम्हें एकजुट होकर निरंतर संघर्ष करना होगा और तुम्हें सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक गैर बराबरी मिटाने के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए यहां तक की खून बहाने के लिए भी तैयार रहना होगा.....
मगर अफसोस लोग राजनैतिक समानता को ही समानता समझ बैठे हैं, और जो लोग विषमता और गुलामी का जीवन जी रहे हैं उनको लोकतंत्र और संविधान की कतई समझ नहीं है और वे वर्तमान समस्याओं के कारणों को जानना/समझना नहीं चाहते हैं,
इसके विपरीत वे अंधभक्ति में लीन हैं
जय जयकार करके गुलामी का आनंद ले रहे हैं,
अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने देशवासियों को समानता स्वतंत्रता और बंधुता का व्यापक अर्थ समझाएं,
हम उन्हें बताएं कि संविधान के निर्माताओं ने संविधान में जाति व्यवस्था को आरक्षण के बहाने इसलिए जिंदा रखा है ताकि भारत के लोग हजारों जातियों में बंटे रहें और समानता, स्वतंत्रता और बंधुता के महान मूल्यों को समझ ही न सकें।
जय मानवता जय विज्ञा