सावन के बादलों की तरह हम भी
कहीं उमड़-घुमड़ बस बरस पड़ें।
उत्तर,दक्षिण ,पूरब,पश्चिम कहीं भी
आओ किसी दिशा हम निकल पड़ें।
खेत,खलियानों,मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा
जगह-जगह पर,मोड़-मोड़ पर बरस पड़ें।
अमीर-गरीब,जात-पाँत से बंधन मुक्त
गली,मुहल्लों के हर रस्ते गुजर पड़ें।
काम करें कुछ ऐसा अपने जीवन में
सुख,शांति स्वर हर आँगन में गूँज पड़ें।