मुहूर्त का अर्थ है सही समय का चुनाव। किसी समय-विशेष में किया गया कोई कार्य शीघ्र सफल होता है तो कोई कार्य तरह-तरह के विघ्नों के कारण पूरा ही नहीं हो पाता! यहाँ प्रस्तुत है सही मुहूर्त चुनने की सरल विधि ----------------
व्यक्ति की कुंडली यह जानकारी देती है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्म के कारण वर्तमान जन्म में क्या कुछ भोग सकता है या यों कहें कि व्यक्ति शारीरिक, बौद्धिक, भौतिक या आध्यात्मिक क्षेत्र में कितनी ऊँचाई तक उठ सकता है।
मुहूर्त के सही समय के चुनाव द्वारा व्यक्ति अपने द्वारा भोगे जाने वाले
कर्मफल को उचित दिशा में प्रवाहमान कर सकता है। मुहूर्त सही समय के चुनाव द्वारा यह तो संभव नहीं है कि आप हर क्षेत्र में अधिकतम सुखदायक स्थिति को प्राप्त करें क्योंकि व्यक्ति को कुल मिलाकर कितनी दूरी या ऊँचाई प्राप्त करनी है या तो कुंडली या जन्म समय की ग्रहों की स्थिति द्वारा भली-भांति आंकलित किया जा सकता है तथापि जो कुछ भी आपकी कुंडली में है, उसे अधिकतम किस रूप में किस प्रकार के सही समय चुनाव द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, मुहूर्त उसे इंगित करता है।
यदि हम किसी कुंडली में देखें कि व्यक्ति विशेष को ‘संतानसुख’ की संभावना न्यूनतम है तो मुहूर्त इस दिशा में हमारी कुछ हद तक सहायता अवश्य कर सकता है। पहले तो उस व्यक्ति हेतु उपयुक्त
स्त्री का चुनाव करना होगा, जिसका संतान भाव प्रबल योगकारक हो, दूसरा, विवाह मुहूर्त भी ऐसा हो जब संतानोत्पत्ति के कारण ग्रह अपनी शुभतादायक रश्मियां बिखेर रहे हों। इसी प्रकार से अन्य क्षेत्रों में भी मुहूर्त का चुनाव करके संबंधित भाव, ग्रह को सबल रखते हुए ऋणात्मक भावों को बौना बना देने का सफल प्रयास किया जा सकता है।
ज्योतिष में मुहूर्त का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है और इस विषय पर अनेक स्वतंत्र ग्रंथों का निर्माण हुआहै। सही मुहूर्त के चुनाव में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि हमें अपने कार्य एक
निश्चित सीमावधि में पूर्ण करने होते हैं और उस समय सभी बातें हमारे मनोनुकूल नहीं हो सकतीं।
मान लें कि हमें बृहृस्पति मेष राशि में चाहिए और वह मीन में भ्रमण कर रहा है तो उसके लिए हमें लगभग एक वर्ष रूकना होगा। कभी किसी कार्य को तो इतना रोका जा सकता है किंतु कुछ कार्यों में शीघ्रता अनिवार्य होती है अतः वहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ही ध्यान देकर ‘अधिकतम शुभ समय’ का चुनाव मजबूरी होती है।
मुहूर्त के चुनाव में पंचांग की भूमिका सर्वोपरि होती है। ये पांच अंग हैं:
1. तिथि (चंद्र दिन), 2. वार(सप्ताह का दिन जैसे सोमवार आदि), 3. नक्षत्र (तत्कालीन व जन्म नक्षत्र भी), 4. योग (चंद्र + सूर्य दिन), 5. करण (तिथि का आधा दिन)।
उपरोक्त पांच अंगों में भी तिथि नक्षत्र और वार विशेष महत्व के हैं।
मुहूर्त, जैसा कि पूर्व में कहा गया है, का सही चुनाव व्यापक अध्ययन चाहता है और निष्णात हाथों से ही यह सही रूप में प्रकट होता है। अतः यहां सामान्य जन की जानकारी के लिए उपयोगी ‘मुहूर्त’ के चुनाव की ही चर्चा उपयुक्त होगी।मुहूर्त में नक्षत्र का स्थान सबसे ऊपर है अतः सर्वप्रथम थोड़ी चर्चा नक्षत्रों के स्वभाव या प्रकृति पर:
अश्विनी, पुष्य, हस्त (अभिजित भी): नर्म नक्षत्र हैं। इनका चुनाव मनोरंजन के कार्य में, आभूषणों के धारण करने में, दवा के देने, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के खोलने, खेल व यात्रा में उपयुक्त होता है।
भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभद्रा मघा: भयानक नक्षत्र हैं। इनका धोखेबाजी, जेल, अग्नि,घृणित कर्मों से संबंधित है।
कृतिका, विशाखा: मिश्रित नक्षत्र हैं और इनमें दैनिन्दन कार्यों को किया जा सकता है।
रोहणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद: स्थिर नक्षत्र हैं अतः इनका चुनाव ऐसे कार्यों में उपयुक्त होगा जहां लंबे समय तक की स्थिरता को महत्ता देनी है।
चित्रा, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती: नर्म नक्षत्र हैं, जिनका चुनाव नृत्य, संगीत, अर्थात कला की शिक्षा लेते समय, शारीरिक संबंध बनाते समय, महत्वपूर्ण कार्यों में, नये परिधान पहनते समय, साज-सज्जा में उपयोगी होता है।
मूल, ज्येष्ठ, आद्र्रा, अश्लेषा: तीखे नक्षत्र हैं। इनका चुनाव, जादू-टोने, दुष्कर्म करने, युद्ध/सेना आदि में भरती या लड़ाई आदि के साज-सामान खरीदने या उनकी शिक्षा लेने में किया जा सकता है।
श्रावण, घनिष्ठा, शतभिषा, पुनवर्सू, स्वाति: चर नक्षत्र हैं अतः इनका उपयोग वाहनों की खरीद फरोख्त में, बागवानी आदि में उपयुक्त होता है।
घनिष्ठा के तीसरे चरण से रेवती के अंतिम चरण तक का समय ‘नक्षत्र पंचक’ के नाम से जाना जाता है और इसमें विशेष महत्व के कार्यों को करने से बचा जाना चाहिए।
दैनिक कार्यों में कुछ जो छोटे-मोटे महत्व के कार्य होते हैं उनमें निम्नलिखित विधि का प्रयोग करने में सफलता पायी जा सकती है:
जन्म नक्षत्र से जिस समय कार्य किया जाना हो उस समय का नक्षत्र गिनकर नौ (9) से भाग दें।यदि भाग जाता है तो ठीक है अन्यथा वैसे ही रहने दें। यदि भाग देने पर शेष एक... आदि बचता है तो निम्न फल होने चाहिए:
1. शरीर को कष्ट, 2. धन व समृद्धि, 3. भय, हानि, 4. धन व समृद्धि, 5. बाधाएं, 6. मनोकामना पूर्ति, 7.भय, कष्ट 8. शुभ, 9. परम शुभ।
चंद्रमा का महत्व
मुहूर्त में चंद्रमा की स्थिति को विशेष स्थान मिलता है अतः मुहूर्त के समय चंद्रमा की स्थिति शुभ होनी चाहिए। जन्मकालीन चंद्रमा और तत्कालीन चंद्रमा परस्पर 8, 12 स्थानों में विशेष रूप से नहीं होने
चाहिए। जैसे यदि किसी कि जन्मराशि वृश्चिक है तो उसे उन दिनों का त्याग करना होगा जब चंद्रमा मिथुन राशि (8-अष्टम) में या तुला राशि (12-द्वादश) में भ्रमण कर रहा होगा।
विशेष महत्व के कार्यों में ‘पंचक’ का उपयोग फलदायी होता है और इसके द्वारा अनुकूल समय को भली प्रकार से रेखांकित किया जा सकता है। यों तो इसकी कई विधियां हैं तथापि एक सहज विधि निम्न है:
1. तिथि (जो भी उस समय विशेष पर हो)
2. वार (रविवार को यहां 1 से, सोमवार को 2 से... आदि प्रदर्शित करते हैं।)
3. नक्षत्र (जिसकी गणना अश्विनी से होती है।)
4. लग्न (समय विशेष पर जो भी लग्न उदय हो रहा हो जैसे मेष-1, वृष-2, इनका सबका योग कर नौ (9) से भाग देने पर एकादि शेष में निम्न फल होते हैं:
1. भय, कष्ट 2. आग से भय, 4. अशुभ फल, 6. दुष्परिणाम, 8 रोग। शेष 3, 5, 7 या 0 हो तो यह शुभ परिणामदायी होगा।
उदाहरण: मान लें कोई व्यक्ति अश्विनी नक्षत्र, (द्वितीया तिथि बुधवार (=4) को कन्या लग्न के मध्य महत्वपूर्ण कार्य करना चाहता है तो -
नक्षत्र संख्या अश्वनि 1
तिथि द्वितीया 2
वार बुधवार 4
लग्न कन्या 6
कुल योग 13
इसमें नौ (9) का भाग देने पर शेष बचा-4। चार शेष का अर्थ है - अशुभ फल। अतः व्यक्ति को इस समय को छोड़ अन्य शुभ समय का चुनाव करना चाहिए।