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ग़ज़ल -बीते लम्हें

13 सितम्बर 2015

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featured imageआने वाला वक्त अगर, दोहराएगा बीते लम्हें , उन्हें पकड़ के रख लूंगा ,जो छूट गए पीछे लम्हें । रफ्ता-रफ्ता उमींदों की, चादर जब बुन जायेगी , थोडा रूककर के सुस्तायेंगे ,यादों के मीठे लम्हें । माँ की उंगली पकड़ ठुमक कर ,चला करेंगे इतराके , आयेंगे कल बचपन की ,चंचलता के नीचे लम्हें । अभी वक्त है ठहर जरा तू,बतिया ले मन की बातें , ना जाने फिर चुप्पी ओढ़े ,आ जाएँ पीछे लम्हें । नवयोवन की भाषा सचमुच ,इतनी ज्यादा बदल गई , समझ नहीं पाते माँ-बाबा ,बच्चों के खीचे लम्हें । नैतिकता औ संस्कार को ,निगल रहा है परिवर्तन , हमने जो अरमानो से ,जी भर कर के सींचे लम्हें ।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

आदरणीय अर्चना जी आपकी सकारात्मक प्रितिक्रिया हमारा उत्त्साह बढ़ातीं है ,धन्यवाद!

1 नवम्बर 2015

अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

आने वाला वक्त अगर, दोहराएगा बीते लम्हें , उन्हें पकड़ के रख लूंगा ,जो छूट गए पीछे लम्हें । बहुत खूब कहा है

31 अक्टूबर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

शर्माजी बहुत-बहुत धन्यवाद ,आपका प्रोत्साहन ,विचारों को संजीवनी प्रदान करता है !

17 सितम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

नैतिकता औ संस्कार को ,निगल रहा है परिवर्तन , हमने जो अरमानो से ,जी भर कर के सींचे लम्हें... बहुत सुन्दर रचना !

16 सितम्बर 2015

प्रोसुमन लता भदौरिया

प्रोसुमन लता भदौरिया

माँ की उंगली पकड़ ठुमक कर ,चला करेंगे इतराके , आयेंगे कल बचपन की ,चंचलता के नीचे लम्हें । --- सुन्दर । कोमल भावों का चित्रांकन !

13 सितम्बर 2015

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ग़ज़ल -बीते लम्हें

13 सितम्बर 2015
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आने वाला वक्त अगर, दोहराएगा बीते लम्हें ,उन्हें पकड़ के रख लूंगा ,जो छूट गए पीछे लम्हें ।रफ्ता-रफ्ता उमींदों की, चादर जब बुन जायेगी ,थोडा रूककर के सुस्तायेंगे ,यादों के मीठे लम्हें ।माँ की उंगली पकड़ ठुमक कर ,चला करेंगे इतराके ,आयेंगे कल बचपन की ,चंचलता के नीचे लम्हें ।अभी वक्त है ठहर जरा तू,बतिया ले

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"घुल जाऊँगा हवाओं में"

20 सितम्बर 2015
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मुझको महफूज़ रख, निगाहों में ,वरना घुल जाऊँगा, हवाओं में ।गर मेरा हाथ ,तुमने छोड़ दिया,ढूंढ ना पाओगे , दिशाओं में|प्रेम-धागों को, यूँ ना तोड़ो यारो,जोड़ दें वो दम नहीं,दवाओं में |तुम जो छू लो ,तो सकूँ आये,याद रख्खुँगा मैं, दुआओं में|दिल में जज्वात ,कुछ संजो लेना ,सिर्फ लुटना नहीं,अदाओं में । "हो गए बा

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