उनको शिकायत उनकी ख़ुशी में हम नाचते नहीं है,
छीन खुशियां हमारी पूंछते है हम खुश क्यूँ नहीं है.
पासबाँ को शिकायत ,बुलबुल नाचती नहीं है,
कैद कर पिंजरे में पूछें तू खुश क्यूँ नहीं है.
हाले मुल्क ये है कि जुबां को आज़ादी नहीं है,
हाकिम ही हो क़ातिल तो शिकायत कहाँ करे.
ज़ुल्म भी उनके रिआया पे है इनायत उनकी ,
जुबां खुली भी तो बनाया हमको काबिले-दार है. (आलिम)