सुनो मोटो, ये मत सोचना की मैंने तुम्हें भुला दिया है हां अब शिकायत नही करूँगा, शिकायत तो अपनो से होती है और मैं तो .... पता है मैंने तुम्हें आज भी सहेज के रखा है अपने चिठ्ठीवो मे ,अपने एहसासों मे
उनको शिकायत उनकी ख़ुशी में हम नाचते नहीं है, छीन खुशियां हमारी पूंछते है हम खुश क्यूँ नहीं है. पासबाँ को शिकायत ,बुलबुल नाचती नहीं है, कैद कर पिंजरे में पूछें तू खुश क्यूँ नहीं है. हाले मुल्क ये है कि जुबां को आज़ादी नहीं है, हाकिम
तैयार की जाती है औरतें इसी तरह रोज छेदी जाती है उनके सब्र की सिल हथौड़ी से चोट होती है उनके विश्वास पर और छैनी करती है तार – तार उनके आत्मसम्मान को कि तब तैयार होती है औरत पूरी तरह से चाहे जैसे रखो रहेगी पहले थोड़ा विरोध थोडा दर्द जरुर निकलेगा आहिस्ते – आहिस्ते सब गायब और पुनश्च दी जाती है धार क्रूर