१)
जप तप वंदन साधना, पूजन आठों याम।
विस्मृत मानव को सदा, अन्तर्मन में राम॥
२)
यत्र तत्र सर्वत्र है, रघु की जय-जयकार।
रामसिया का आगमन, आह्लादित संसार।।
३)
ईश दृष्टि सर्वत्र है, कण-कण में है राम ।
केवल दर्शन मात्र से, बनते बिगड़े काम ।।
४)
सारे जग में बह रही, राम नाम की धार।
राम नाम की नाव से,भवसागर हो पार।।
५)
राम नाम की ज्योत से,चमक उठा संसार।
छाई शीतल चांदनी,कृपा मिले अपार ।।
६)
कंचन सी मां जानकी,कुंदन समान लखन।
हिय में बसते केसरी,रघु हृदय ही भवन ।।
७)
तुलसी ने मानस रचा, किया नेक ये काम।
दुविधा सारी मिट गई, जपा राम का नाम।।
८)
युगों युगों से चल रहा, पाप पुण्य का मेल।
लेखा जोखा नियति का, राम श्याम का खेल।।
९)
मन का बंधन तोड़ कर, खोलो मन का द्वार।
रामचरित सुमिरन करो, उपजे नेक विचार।।
१०)
काम-क्रोध, मद-लोभ से, मुक्त रहे संसार।
नेक कर्म करते चलें, होंगे भव से पार।।
नंदिता माजी शर्मा ©®
मुंबई, महाराष्ट्र