1
लगता है सिंहासन मूक बना बैठा है
पहले वो जिसको मौनी कहता था
अब वो खुद मौन बना बैठा है
2
लगता है जनता अब तो कृद्ध दिखाई देती है
तुम्हारी इस चुप्पी में सवा अरब की चीख सुनाई देती है
लगता है जैसे तुम्हारी हार दिखाई देती है
3
इस चुप्पी के ताले का हल क्या है
इन बेमानी वादों में बल क्या है
क्या ये इस सिंहासन का श्राप है
या फिर इसमें भी नेहरू जी का हाथ है
4
लगता है सिंहासन गिरवी है जैसे कॉर्पोरेट की जुती में
या फिर लगता है जैसे तुम बंधी हो कॉर्पोरेट की संधि में
लगता है जैसे भूल हो गई
जनता की आँखों में जैसे धूल हो गई
5
मैं तुमको कहे देता हूं
रैली में ना जाकर कर तुम भाषण बोलों
जनता में जाकर अब तो तुम कुछ बोलों
ऐसा जनादेश बार-बार नहीं आता
कोई लाल क़िला भी बार-बार नहीं जाता।
~ शुभम महेश ~
यह भी पढ़े: हिंदी मेरी भाषा है – कविता | शुभम महेश द्वारा लिखी गयी
सिंहासन मूक बना बैठा है - शुभम महेश द्वारा लिखी गई | Shubham Mahesh