बड़े दिन हो गए शायद
की तुम भी होगे रण में अधमरे से
तो सोचा मिल लूँ थोड़ा
तुम्हे मैं याद हूं या नहीं
मुझे तुम याद आये हो
तो सोचा मिल लूँ थोड़ा...!
अभी तो कदम रक्खा है
शिखर की पगडंडियों पर
शिखर की श्रृंखलाओं का
मुझे अनुमान कैसे हो
तुम्हे अनुभव है इनकी मार का
हर हाल का
तो सोचा मिल लूँ थोड़ा...!
बड़ा विचलित हूं जीवन में
हर एक बिंदु से जब राहे फूटती हैं
कभी तो राह ही वीरान में
अविरत चलती हैं
तभी तो मचल घर से उठ तुम्हारे पास आया हूं
की सोचा मिल लूँ थोड़ा...!
तुम्हे मैं याद हूं या नहीं
मुझे तुम याद आये हो
तो सोचा मिल लूँ थोड़ा...!