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सुभाष चंद्र बोस___पर्त्-2

1 नवम्बर 2021

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Part:- 2
इसी बीच दूसरा विश्वयुद्द छिड़ गया।बोस जी को मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आजादी हासिल की जा सकती है।उनके इसी विचारो को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कोलकाता मे नजरबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की मदद से वहाँ से भाग निकले वह अफगानिस्तान और सोवियतसंघ होते हुए जर्मनी पहुंचे।
इस राजनीती मे आने से पहले ही बोस जी ने सारी दुनिया का भ्रमण पहले ही कर लिया था।वह 1933 से 1936 तक यूरोप मे रहे।उस टाइम हिटलर जो जर्मनी का तानाशाह था,हिटलर और इंग्लैंड के बीच नहीं बनती थी और जर्मनी उनसे अपना कोई पुराना बदला भी लेना चाहता था।इसी न्यूज़ से बोस जी को हिटलर के रूप मे भविष्य का मित्र दिख गया।क्योंकि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है।उनका मानना था की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनितिक गतिविधियों के साथ साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग कि भी जरुरत पड़ती है।
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रचनाएँ
सुभाष चंद्र बोस____
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Part:- 1 दोस्तों मैं एक साइंस का स्टूडेंट रहा हूँ।इसलिए मेरा ज्यादा झुकाव साइंस कि तरफ ही है।फिर भी मैं हिस्टॉरिकल चीजों पर लिखना मुझे अच्छा लगता है और वो महत्वपूर्ण विचारऔर किये गए काम जो दूसरों से अलग करती हो। सुभाष चंद्र बोस एक बड़ा नाम देश की आजादी मे इन्होने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।इन्हें हम नेता जी के नाम से जानते है।और ये ऐसे नेता थे जिन्होंने वो बड़ा काम किया जो शायद गाँधी जी और बड़े नेता भी नहीं कर पाये इन्हें मैं हमेशा गाँधी जी से कम स्थान नहीं दूँगा और ये स्पेशल क्यों थे मैं बताता हूँ आपको...और एक जरुरी बात गांधीजी को सर्वप्रथम महात्मा इन्होनें ही कहा था। बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक मे एक संपन्न बंगाली परिवार मे हुआ था।इनके पिताजी जानकीनाथ बोस पेशे से एक जानेमाने वकील थे।ये अपने 14 भाई-बहन मे 9वे नंबर पर थे।इनकी रूचि पढ़ने मे अच्छी थी तो इनकी प्रारम्भिक पढ़ाई भारत मे ही और उसके बाद (इंडियन सिविल सर्विस) भारतीय प्रशासनिक सेवा कि पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा।अंग्रेजी शासन मे भारतीयों को सिविल सर्विस मे जाना बहुत कठिन था फिर भी इनकी रूचि को देखते हुए इन्हें वहाँ भेजा गया और तब इन्होने अपने आपको साबित भी किया और 4थ इन्होने सिविल सर्विस के परीक्षा मे चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत मे बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए ये अपनी नौकरी छोड़कर भारत वापस आ गए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। कांग्रेस मे रहते हुए इनके विचार गाँधी जी से बिलकुल मेल नहीं खाते थे और गाँधी जी इनसे बिलकुल भी खुश नहीं थे एक बार इनके द्वारा कांग्रेस के ही एक सदस्य और गाँधी जी के प्रिय को इन्होने एक चुनाव मे भारी मतों से हरा दिया था तब से इनसे गाँधी जी हमेशा रुष्ठ रहते थे उनकी इस जीत को गाँधी जी ने अपनी हार माना जिसे देखते हुए इन्होने कांग्रेस पार्टी ही छोड़ दी। ये गाँधी जी को कभी अपने से अलग नहीं मानते थे चाहे इनके विचार गाँधी जी से मेल ना खाते रहे हो लेकिन इनके मकसद एक थे दोनों का ही मकसद भारत कि आजादी था।और ये बोस जी भली भांति जानते थे इनके विचार मेल ना खाने का एक रीज़न ये भी था कि गाँधी जी नरम चरमपंथी विचारधारा से थे और ये गरम चरमपंथी विचारधारा से नया खून और पुराने खून मे कुछ तो अंतर होना भी चाहिए। इसी बीच दूसरा विश्वयुद्द छिड़ गया।बोस जी को मानना था कि....

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