बीच-बीच में सुंदरी की आंखें नींद से बंद होती रहती है। थोड़े देर में सुंदरी नींद में सो जाती है ।अचानक जब सुंदरी की नींद टूटती है ।तो वह घड़ी की तरफ देखती है। सुबह के 4:00 बज रहे हैं। सावित्री का कुछ पता नहीं था। इतनी ही देर में उसे दरवाजे पीटने की आवाज आती है। उसका सब्र टूटता है। वह दौड़कर दरवाजे के पास जाती है ,और दरवाजा खोलती है ।दरवाजे पर सावित्री फटा पुराना हाथों में थैला लिए खड़ी रहती है। सावित्री के तन पर पीले रंग की मैली साड़ी रहती है। बाल आधे सफेद और आधे काले रहते हैं ।पैरों में काले रंग की चप्पल और हाथों में दो चार चूड़ियां रहती हैं। सुंदरी दौड़कर मां को रोते हुए गले लगाती हैं।
सुंदरी – मां इतनी देर कैसे हो गई ? मन में बुरे–बुरे ख्याल आ रहे थे। मैं डर गई थी।
सावित्री बिटिया कहती हुई सावित्री तुरंत सुंदरी को गोद में लेती है।
सावित्री– आज जमींदार की पत्नी मीरा को तेज बुखार हो गया था। जिसके कारण वह अस्पताल गई थी ।और मुझे उनके बेटे के पास उनकी सुरक्षा और जरूरतों के लिए रुकना पड़ा।
सुंदरी मीरा का हाल पूछती हुई
सुंदरी– मां अभी वह कैसी है?
सावित्री– थोड़ी बहुत राहत है।
सावित्री हाथ मुंह धोकर बैठती है। और सुंदरी से कहती है।
सावित्री – सुंदरी जरा मेरा थैला लेकर मेरे पास आओ। सुंदरी सामने टेबल पर रखा थैला लेकर आती है। और सावित्री को पकड़ते हुए
सुंदरी– मां इसमें क्या है ?
सावित्री एक काली पन्नी निकालते हुए
सावित्री– इसमें तुम्हारे लिए बर्गर है। मुझे पता है कि तुम भूखी होगी ,पर मैं समय से ना आ पाई। चलो अब बर्गर को खाकर अपनी भूख मिटा लो ।
सुंदरी सावित्री से पूछती हैं
सुंदरी– मां आपने कुछ खाया?
सावित्री– हां जमीदार के घर खाकर आई हूं ।
सुंदरी जैसे ही बर्गर खाने जाती है। हरीश तुरंत उठकर सुंदरी के हाथों से बर्गर लेकर जोर-जोर से खाने लगता है ।जैसे कितने दिनों का भूखा है ।सुंदरी अपने पापा को देखती रह जाती है ।
सावित्री गुस्से में
सावित्री–इस जालिम भरी दुनिया में मैंने तुम्हारे जैसा जालिम बाप नहीं देखा ।
हरीश एक हाथ से सावित्री का बाल पकड़कर दूसरे हाथों से उसके मुंह को दबाते हुए ।
हरीश –मेरे सामने अपना मुंह खोलने की हिम्मत कैसे की तुमने।
हरीश अपनी पैंट की बेल्ट उतारता हुआ।
हरीश आज तुम्हें देर रात तक घर से बाहर रहने का नतीजा दिखाता हूं ।
सावित्री हरीश का हाथ पकड़ते हुए कहती हैं।
सावित्री– नशे की दुनिया से बाहर निकलकर खुद की मेहनत से अपना पेट भरने की सोचो।
हरीश– तुमको अपने पति से जुबान चलाते हुए शर्म नहीं आती।
सावित्री हरीश का हाथ पकड़कर।
सावित्री– हरीश तुम्हारी एक बेटी हैं। उसकी परवाह करो अपनी नही तो तो कम से कम अपनी बेटी के भविष्य की चिंता करो।
सुंदरी की तरफ देखकर और भी क्रोधित हो जाता है। आंखो को गुस्से में लाल कर अपने क्रोध बेकाबू होकर घर का समान इधर–उधर फेकते हुए जोर जोर से चिलाता है।
दो-तीन बेल्ट सावित्री पर चलाता है, और फिर घर से चला जाता है ।
सावित्री रोती हुई लंबी लंबी सांसे खींचती है। सुंदरी अपने पापा के राक्षस जैसे बर्ताव से बेहद डर जाती है। सुंदरी सावित्री के पास जाकर कहती है।
सुंदरी– मां चुप हो जाओ आंसू पोछती हुई ।जब मैं बड़ी हो जाऊंगी। तो आपको एक अच्छी जिंदगी दूंगी। सावित्री सुंदरी को गले लगाती है। सुंदरी की मासूम बातें सुनकर उसकी दर्द गायब हो जाते हैं।