बरसात का मौसम था ।बहुत तेज बारिश हो रही थी। 16 साल की सुन्दरी कमरे में बैठी अपनी मां सावित्री का इंतजार कर रही थी। मां कब आएगी बहुत देर हो चुकी है ,मन ही मन वह खुद से सवाल करती है। भूखी सुन्दरी खिड़की के पास बैठी अपनी मां की प्रतीक्षा कर रही थी ।रात के 9:00 बज चुके थे । सुन्दरी घर में अकेली डरी हुई बैठी थी ।प्यास से गला सूखा था पर मां की प्रतीक्षा में खिड़की से दूर नहीं होना चाहती थी। उसे अपनी मां की चिंता हो रही थी। हालांकि घर पर सुंदरी के पापा हरीश भी नहीं थे। किंतु उसे अपने पापा की आदतें बहुत अच्छी तरह से पता थी। कि वह हर रोज इसी समय पर शराब के नशे में चूर होकर घर पहुंचते है। बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच उसे दरवाजे पीटने की आवाज सुनाई देती है । सुन्दरी दरवाजे के पास जाकर
सुंदरी - कौन है दरवाजे पर?
हरीश - नशे की आवाज में
मैं हूं
सुंदरी दरवाजा खोलती हुई कहती है
सुंदरी - हां पापा खोलती हूं|
सुंदरी दरवाजा खोलती है
हरीश नशे में चूर अंदर आता है|
बारिश के कारण हरीश के सारे कपड़े गीले हो गए हैं| वह सुंदरी को अपनी लाल आंखों से देखता है| हरीश के कपड़ों से पानी टपक रहा था |सुंदरी दौड़कर सूखा कपड़ा और कुर्सी ले आती है |हरीश को कुर्सी पर बिठाकर उसके बालों को पूछते हुई।
सुंदरी - पापा रात के 9:30 बज चुके हैं ।अभी तक मां नहीं आई है।
हरीश सुंदरी की बात अनसुनी करते हुए।
हरीश-कुछ खाने को है घर में ? मुझे बहुत भूख लगी है|
सुंदरी- घर पर आज राशन नहीं था। मां कहकर गई थी। कि 6:00 बजे तक आऊंगी फिर राशन लेने चलेंगे।
हरीश सुंदरी को झटकते हुए नशे में लड़खड़ाते हुए रसोई घर में पहुंचता है। इधर-उधर नजर दौड़ाने पर उसे एक अमरुद दिखता है। हरीश अमरुद लेकर चाकू खोजने लगता है। चाकू ना मिलने पर वह अमरुद दातों से काटते हुए रसोई घर से बाहर निकलता है ।सुंदरी के भूख की परवाह किए बिना वह थोड़ी ही देर में सो जाता है। सुंदरी भूख से तड़पते और मां के लिए बेचैन होकर खिड़की के पास खड़ी रहती है। बीच-बीच में घड़ी को निहारती हुई मन ही मन सोचती है ।कभी इतनी देर नहीं हुई मां को आने में अब रात के 11:00 बज चुके हैं। हरीश गहरी नींद में खर्राटे मारता है ।और सुंदरी अभी भी मां के इंतजार में खिड़की के पास खड़ी है।