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सुनील बाग़ी की डायरी

सुनील बाग़ी

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sunil bagi ki diri

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पुस्तक के भाग

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स्वतंत्रता दिवस

23 अगस्त 2016
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 कटी-फटी टूटी-फूटी उथडी-चिथड़ी हर-रोज डराती वादी में आओ जश्न मनाओ बच्चों लड़ती मरती बर्बादी मैं जिसने भारत मैया की अखियों में काला काजल पोता है | वही लालकिले से चीखे ||| ये केसा समझौता है ?? एक बरस में आजादी का ढोंग दिखाना बंद करो योजनाओं से खून चूसकर ढोल बजाना ब

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शराबबंदकरो‬

23 अगस्त 2016
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गाँव में प्रत्येक किलोमीटर पर शराब की दुकानें मध्यप्रदेश के स्वर्णिम प्रदेश की शोभा बढ़ रही हैं | गांव में आकर देखो हर घर में एक बूढी माँ एक बहन एक पत्नी भूख शोषण, अत्याचार से बिलख रही हैं , उनके बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं उनका बाप उनके हिस्से की रोटी पचास रुपए के पौवे में गटककर आता

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