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सुरजमनी

6 नवम्बर 2021

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सुरजमनी

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@चंद्र मोहन किस्कू 


रविवार को मैं देर से जागती हूँ ,क्योंकि वह छुट्टी का दिन है .छुट्टी की बात उठने पर क्या बच्चे ,क्या बड़े थोड़ा सा आंद सभी को लगता ही है .मुझे छुट्टियां बहुत पसंद है छुट्टी में क्या - क्या काम करना है यह पहले से तय करके रखती हूँ .जैसे छुट्टी मिलने पर रिश्तेदारों सड़ मिलने जाना ,सिनेमा देखने जाना आदि काम करती हूँ .अरे हाँ मुझे छुट्टी और एक कारन के चलते पसंद है क्योंकि  छुट्टी के दिन तो स्कूल नहीं जाना पड़ता .हर रोज स्कूल जाना और बच्चों को पढ़ाना सर दर्दवाली काम है .रविवार को इस सर दर्दवाली काम से छुटकारा मिलती है .

  सुबह उठकर मुँह -हाथ धोकर आँखों में चश्मा लगाकर अख़बार पढ़ना आरभ किया .यह अख़बार पढ़ना मेरी नशा है ,सुबह अख़बार न पढ़ने पर ठीक लगता ही नहीं .अख़बार की मुख्या पृठ की निचे की ओर की खबर पर आँखें गाड़ दी.खबर है --" एक नाबालिग लड़की का बलात्कार के बाद हत्या ." ऐसी खबर तो रोज ही अख़बार में जगह बनाी है ,ऐसा भी कहा जा सकता है ऐसी खबर न छपने पर अख़बार की बिक्री होगी ही नहीं . देखी यह घाटशिला की खबर है ,जहाँ मैं दस साल थी .वहाँ की एक स्कूल में शिक्षिका थी .फिर वह खबर को दरकिनार न कर सकी, बिना पढ़े रह न सकी.पढ़ी , मुगली नामक एक पंद्रह साल की लड़की को स्कूल से लौटते समय अकेली पाकर तीन लड़कों ने उनके साथ बलात्कार किया और धारदार छुरी से उसकी गला काटकर हत्या कर दी .फिर आगे पढ़ न पायी,आँखों से आंसू निकल आया .


 यदि मुझे ही इस अख़बार को पढ़कर इतना दुःख हुआ तो उस लड़की की माँ-बाप का क्या हुआ होगा ?

   यह खबर पढ़कर घाटिला में रहने की समय की बात याद हो गई.छोटी फूल जैसी लड़की जिसे मैं खूब प्यार करती थी ,वह सुरजमनीकी बात याद हो आई.अरे हाँ वह भी तो अभी तक में अाठरह साल की हो जाती .

 अभी -अभी बी.एड पास कर एक स्कूल में नौकरी पा गई.बहुत खुश हुई,अभी हमारी गरीबी और रहेगी नहीं .मेरी माँ-पिताजी मजदूरी कर मुझे पढ़ाई,जिनका परिणाम अब उन्हें मिला .अब उन्हें मजदूरी नहीं करना पड़ेगा .मेरी वेतन से ही हमारा तेल - नून का संसार चल जायेगा .

   मेरीस्कूल जाने के रस्ते में एक छोटा सा गाँव पड़ता है .उस गाँव की अधिकतर लोग गरीब है ,मजदूरी कर पेट पालते है .अरे हाँ मैं पहले सुरजमनी माई (बहन )का जिक्र किया था .वह इसी गाँव की थी .गुलमोहर पेड़ के निचे एक पुआल की झोपड़ी में अपनी माँ-बाप के साथ रहती थी .तब उसकी उम्र पांच साल थी ,स्कूल जाती नहीं थी .गाँव की अन्य बच्चों के साथ खेलती रहती थी और उसकी माँ-बाप सुबह से शाम तक ईंट-भट्टा में काम करते थे .मुझे देखते ही मुस्कान हँसी हँसती और दौड़कर घर के अंदर से फूल लाकर पकड़ाती थी .की गुलमोहर ,कभी पलाश तो कभी जंगली 'चाम्पा बाहा'(जंगल की एक  सुन्दर सुगन्धित फूल ).मैं भी प्रतिदिन उसकी गालों को चूमकर एक चॉकलेट पकड़ाती थी .एक तरह से यह कहा जा सकता है की वह मेरी जीवन में बहुत बड़ी जगह दखल कर गई थी .


  उस दिन प्रतिदिन की तरह सुरजमनी से मुलाात नहीं हुआ और प्रतिदिन की नियम अुसार फूल भी नहीं दी .उसी दिन महसूस हुआ अपने लोग जब दूर चले जाते है तो किस तरह कष्ट का अनुभव होता है .सुरजमनी मेरी रिश्तेदार न होने पर भी ;,वह मेरी करीब की बन गई थी .उस दिन स्कूल में ठीक लगा नं .बच्चों को पढ़ाने में मन लगा ही नहीं .स्कूल छुट्टी होने पर रह नहीं पायी,सीधे सुरजमी के घर को चली .उसकी माँ-बाप भी घर पर ही थे ,ईंट-भट्टा में काम करने गये नहीं थे .शायद जाते यदि सुरजमनी ठीक रहती .बेटी को बुखार है इसलिए गये नहीं है .हाँ ,अभी जाकर ठीक ला .मेरे पास जो रूपया था वह डॉक्टर की फीस और बच्ची की फल खरीदने के लिए देकर आयी.

 सुरजमनी बड़ी होने पर उसे एक स्कूल में भर्ती कर दी .सुरजमनी को पढ़ने की चाह थी ,बोलती थी वह भी मेरी तरह शिक्षिका बनेगी और बच्चों को पढ़ाएगी .बच्चों को पढ़ाना उसे बहुत पसंद थी .तीसरी कक्षा तक आते ही वह मोहल्ले की छोटे -छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान देना आरम्भ कर दी .पढ़ने में भी तेज़ थी .कविता बहुत जल्द याद कर डालती थी .उसकी पढाई के प्रति गंभीरता को देखकर स्कूल के शिक्षकगण बहुत खुश होते थे .चौथी कक्षा में वह स्कूल की कविता पथ प्रतियोगिता में प्रथम आयी थी .


  देखते -देखते सुरजमनी की पंद्रह साल  होते -होते वह कक्षा नवम तक पहुंच चुकी थी .पहुंचेगे भी क्यों नहीं ,पढ़ने में तो तेज़ थी ही उसके ऊपर वह किसी भी कक्षा में फेल नहीं हुई.और एक साल होते ही मैट्रिक पास कर जाती .मैं प्रतिदिन उसी रास्ते से आती-जाती रहती थी  ,बचपन की आदत के अनुसार वह फूल देना अब भी भूली नहीं थी .पता नहीं क्यों  ,मुझे ही फूल देती है और भी तो लोग है उसी रास्ते से आते -जाते रहते है .मैं भी उसकी पढाई का खबर लेती रहती थी .किताब-कॉपी न रहने पर खरीदकर ला देती थी .


   मंगलवार की दिन थी ,मैं प्रतिदिन की तरह तैयार होकर स्कूल जा रही थी .सुरजमनी की घर के बाहर लोगों की भीड़ देखी.पास जाने पर उसकी माँ की जोर -जोर से रोने की आवाज़ सुनाई दिया .कुछ समझ में नहीं आया .कल ही सब कुछ ठीक -ठाक था ,स्कूल की वार्षिक उत्सव पास थी .इसलिए सुरजमनी के लिए साड़ी लाकर दी थी .उसी उत्सव में मुख्य अतिथि के हाथों यह साड़ी पहनकर आदर्श विद्यार्थी की पुरस्कार ग्रहण करने की बात थी और उसी दिन स्वरचित कविता पाठ करनेवाली थी .अपनी कॉपी मुझे दिखाई थी स्वरचित पांच कविता के साथ .स्कूल की वार्षिक उत्सव को लेकर सुरजमनी बहुत खुश थी .ऐसी आनंद की मौहल ं सुरजमनी के लिए किस तरह का ग्रहण ?,लोगों की भीड़ को चीरकर अंदर को चली गई,देखि सुरजमनी चटाई पर सोई हुई है और उसकी माँ जोर -जोर से रो रही थी .सुरजमनी को क्या हुआ है .और पास जाने पर दिखाई दिया पेटीकोट उसकी ख़ून से लथपत है और ब्लाउज अनेक जगहों पर फटी हुयी है. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था .गाँव के ही एक औरत ने बताई ----"कल प्रतिदिन की तरह सुरजमनी की माँ-बाप ईंट-भट्टा में काम करने गये थे .इस समय ईंट-भट्टा में रात-दिन काम होता है .फिर क्या मौका देखकर वे भेड़िये ने सुरजमनी के साथ बलात्कार किया और गाला दबाकर मार डाला ."

  फिर सुन नहीं पायी,कान बजने लगा ,सर चकराने लगा और आँखों के सामने तारे नजर आये.खड़ी नहीं रह पाई,धड़ाम से गिर गई.मेरे होश आने से पहले ही सुरजमनी को श्मशान ले जाकर दफना दी गई थी .

  फिर वहां रह नहीं पायी,ट्रांसफर होकर इस नगर को आ गई.पर यहाँ भी कहाँ शांति से रह पा रही हूँ ,प्रतिदिन की अख़बारों में नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार की खबर पढ़ने को मिल रही है .अख़बार की उसी पैन पर सुरजमनी की भी फूलों जैसी चेहरा दिख जाती है और उसे याद कर जोर -जोर से रोने लगती हूँ .


©चंद्र मोहन किस्कू 

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