बढ़ते जायेगा
अरे वो
धर्म की नाम पर
काला धंधा करनेवाले
तुमलोग क्या ये सोच रहे हो
कि मेरी मृत्यु हो गई है
तुम्हारे कामों में
बाधा नहीं डाल सकुऊँगा
अरे वो
बुरा सोचनेवाले
दूसरों को ठगनेवाले
तुमलोग क्या ये सोच रहे हो
कि मेरी देह मिट्टी मे मिल गई है
तुम्हारे काले धंधे में
मजबुत दिवार बन नहीं पाऊँगा
अरे वो
अन्धविश्वसी
ओझाओं के बातों में
आनेवाले लोग
केवल मेरी देह और प्राण
का ही तो नाश किए हो
मेरी सोच और कामों का
क्या करोगे?
मन्द वायु और बहते पानी जैसा
वह आगे की ओर बढ़ते जायेगा.
(यह कविता डा. नरेन्द्र डाभलकर की स्मृति में लिखा गया है)