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स्वर्गीय

5 अक्टूबर 2022

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       कुछ ही दिन बचे हैं अब मेरी जिंदगी के, और मैं जानता हूँ, कल मेरी मृत्यु हो जाने के बाद आप सब लोग मेरी पोस्ट पर RIP लिख कर अपनी संवेदनाएं तो अवश्य प्रकट करेंगे। कुछ मित्र जिनको मेरी बहुत सी बुराइयाँ अब दिखाई नहीं देंगी वो मेरे गुणों का भी वर्णन करेंगे। जिनसे आज मेरा अधिक परिचय नहीं है वो भी अपनी संवेदना तो प्रकट करेंगे ही। जिन साथियों से आज मेरा अधिक स्नेह नहीं है या बात नहीं होती वो भी (दुनियादारी की खातिर ही सही) अपना दुःख अवश्य प्रकट करेंगे।

       कारण की आज मैं यहाँ आपके बीच हूँ, आपके साथ हूँ और कल जब नहीं होऊँगा तो स्वर्गीय अर्थात स्वर्ग वासी हो जाऊँगा। तो क्या आज आपके बीच होने से ही मैं नारकीय हो गया हूँ? क्या इस धरती पर होना और अपने अलग विचार रखना व उन्हें सीधे प्रकट कर देना ही मेरा बड़ा दोष है। जिसके कारण कल स्वर्ग का वासी होने जा रहा मैं आज निकम्मा, नालायक, धूर्त व लम्पट हो गया हूँ। कल कौन जाने मुझसे पहले कोई और स्वर्गलोक को चला जाए, तब!

       बहुत विचित्र है मनुष्य भी जिसका आचार व विचार क्षणभर में बदल जाता है। पल भर पहले जिसका नाम सुनते ही मन में स्नेह, प्रसन्नता, घृणा, उदासीनता या क्रोध भर उठता था, उसके सांस छोड़ते ही हमारे मन मे से समस्त भाव विलुप्त हो जाते हैं। केवल एक ही भाव रह जाता है, दुःख व सम्वेदना का। इसका अर्थ तो ये हुआ कि हम उससे कभी प्रसन्न, उदासीन या क्रोधित थे ही नहीं। किन्तु, हम कहीं न कहीं उससे जुड़े तो थे ही शायद...

       प्रेम या स्नेह होने के जो कारण होते हैं लगभग वही कारण क्रोध या घृणा के भी होते हैं। हम प्रेम करते हैं क्योंकि हमें उस व्यक्ति से कुछ पाने की आसक्ति होती है, जैसे स्नेह, प्रेम, सहयोग, सम्मान, सेवा, धन या अन्य कुछ भी..। और इन्हीं सब कारणों से हम किसी व्यक्ति से घृणा भी करते हैं, जिससे हमें वह सब नहीं मिलता जो हम उससे आशा करते हैं। किंतु जैसे ही वह व्यक्ति शरीर त्याग करता है, उस व्यक्ति विशेष से लगी हमारी समस्त आशाएं स्वयं ही मर जाती हैं। और पीछे रह जाता है एक दुःख या संवेदना का भाव (कभी कभी क्षणिक ही सही)।

       यदि हम किसी से भी अपेक्षा ही न रख कर केवल अपने जीवन को जीने के लिए जिएं तो संभवतः राग व द्वेष स्वतः ही स्वर्गवासी हो जाएं। किन्तु, इसमें भी कुदरत की एक विचित्रता छुपी है। यदि हम केवल जीवन जीने के लिए ही जियें तो शायद मनुष्य भी अन्य पशुओं के ही समान हो जाए। तब न संसार मे परिवार होगा, न समाज होगा, न कोई नया विचार होगा और न ही मनुष्य कोई निर्माण कार्य करेगा। फिर यह संसार एक वन के समान हो जाएगा। शायद इसीलिए संसार के निर्माता ने हम मनुष्यों को बुद्धि देने के साथ साथ ये 'विकार' भी दिए हैं। क्योंकि आज आधुनिक साइंस भी स्वीकार करती है कि, केवल मैटर व एन्टी मैटर ही विशाल ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकते इसके लिए एक और जरूरी तत्व डार्क मैटर भी हैं।

       लेकिन मेरे स्वर्गवासी होने से पूर्व आप एक बार इस लेख को पढ़कर मेरे विचारों से सहमत या असहमत तो हो ही सकते हैं।

       आपका.....             धमेंद्र जोशी

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जीवन का सार मृत्यु पर पूर्ण होना ही है।

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